2 ነገሥት 4 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

2 ነገሥት 4:1-44

የመበለቲቱ ዘይት

1የነቢያት ማኅበር ወገን ከሆነው የአንደኛው ሚስት፣ “አገልጋይህ ባሌ ሞቷል፤ እርሱም እግዚአብሔርን የሚፈራ ሰው እንደ ነበር አንተ ታውቃለህ፤ አሁን ግን ባለ ዕዳ ሁለት ወንዶች ልጆቼን ባሪያ አድርጎ ሊወስዳቸው መጥቷል” ስትል ወደ ኤልሳዕ ጮኸች።

2ኤልሳዕም፣ “ታዲያ እኔ ምን እንዳደርግልሽ ትፈልጊያለሽ? በቤትሽ ምን እንዳለ ንገሪኝ” አላት።

እርሷም፣ “አገልጋይህ ከጥቂት ዘይት በቀር በቤቷ ምንም ነገር የላትም” አለች።

3ኤልሳዕም እንዲህ አላት፤ “እንግዲያው ሂጂና ከጎረቤቶችሽ ሁሉ ጥቂት ሳይሆን ብዙ ማድጋ ተዋሺ፤ 4ገብተሽም መዝጊያውን በአንቺና በልጆችሽ ላይ የኋሊት ዝጊው፤ ዘይቱንም በማድጋዎቹ ሁሉ ጨምሪ፤ እያንዳንዱ ማድጋ ሲሞላም ወደ አንድ በኩል አኑሪው።”

5ስለዚህ ትታው ሄዳ መዝጊያውን በራሷና በልጆቿ ላይ የኋሊት ዘጋችው፤ ማድጎቹን እያቀረቡላትም እርሷ ትሞላ ጀመር። 6ማድጋዎቹ ሁሉ ከሞሉ በኋላ ልጇን፣ “ሌላ ማድጋ አምጣ” አለችው።

እርሱ ግን፣ “ምንም የቀረ ማድጋ የለም” ሲል መለሰላት። ከዚያም ዘይቱ መውረዱን አቆመ።

7እርሷም ሄዳ ይህንኑ ለእግዚአብሔር ሰው ነገረችው። እርሱም፣ “ሄደሽ ዘይቱን በመሸጥ ዕዳሽን ክፈይ፤ የተረፈውም ለአንቺና ለልጆችሽ መተዳደሪያ ይሁን” አላት።

የሱነማዪቱ ልጅ ከሞት ተነሣ

8አንድ ቀን ኤልሳዕ ወደ ሱነም ሄደ። በዚያም አንዲት ሀብታም ሴት ነበረች፤ እርሷም ምግብ እንዲበላ አጥብቃ ለመነችው፤ በዚያም ባለፈ ቍጥር ምግብ ለመብላት ወደ ቤቷ ይገባ ነበር። 9ሴቲቱም ባልዋን እንዲህ አለችው፤ “ይህ አዘውትሮ በደጃችን የሚያልፍ ሰው፣ ቅዱስ የእግዚአብሔር ሰው መሆኑን ዐውቃለሁ፤ 10ስለዚህ በሰገነቱ ላይ አንዲት ትንሽ ክፍል ቤት ሠርተን ዐልጋና ጠረጴዛ፣ ወንበርና ፋኖስ እናስገባለን፤ ከዚያም ወደ እኛ በሚመጣበት ጊዜ ሁሉ ማረፊያ ትሆነዋለች።”

11አንድ ቀን ኤልሳዕ ወደዚያው መጥቶ ወደ ማረፊያ ክፍሉ በመውጣት ጋደም አለ። 12አገልጋዩን ግያዝንም፣ “ሱነማዪቱን ጥራት” አለው፤ በጠራትም ጊዜ መጥታ በፊቱ ቆመች። 13ኤልሳዕም፣ “ ‘ለእኛ ስትይ በጣም ተቸግረሻል፤ ምን እንዲደረግልሽ ትፈልጊአለሽ? ለንጉሡ ወይስ ለሰራዊቱ አዛዥ የምንነግርልሽ ጕዳይ አለን?’ ብለህ ጠይቃት” አለው።

ሴቲቱም መልሳ፣ “እኔ እኮ የምኖረው በገዛ ወገኖቼ መካከል ነው” አለችው።

14ኤልሳዕም፣ “ታዲያ ምን ይደረግላት” ሲል ጠየቀ።

ግያዝም፣ “ልጅ እኮ የላትም፤ ባሏም ሸምግሏል” አለ።

15ኤልሳዕም፣ “በል እንግዲያው ጥራት” አለው፤ እርሱም ጠርቷት መጥታ በራፉ ላይ ቆመች። 16ኤልሳዕም፣ “የዛሬ ዓመት በዚሁ ጊዜ ወንድ ልጅ ትታቀፊያለሽ” አላት፤

እርሷም፣ “አይደለም ጌታዬ፣ አንተ የእግዚአብሔር ሰው ሆይ፤ ኋላ አገልጋይህን መዋሸት እንዳይሆንብህ!” አለችው።

17ሴትዮዋም ፀነሰች፤ ኤልሳዕ እንደ ነገራትም በተባለው ጊዜ ወንድ ልጅ ወለደች።

18ሕፃኑ አደገ፤ አንድ ቀንም አባቱ ከዐጫጆች ጋር ወደ ነበረበት ቦታ ሄደ። 19አባቱንም፣ “ራሴን! ራሴን!” አለው። አባቱም አገልጋዩን፣ “ተሸክመህ ወደ እናቱ አድርሰው” አለው።

20አገልጋዩም አንሥቶ እናቱ ዘንድ አደረሰው፤ ልጁም እስከ እኩለ ቀን ድረስ በእናቱ ጭን ላይ ተቀመጠ፤ ከዚያም ሞተ። 21ወደ ላይ ወጥታም በእግዚአብሔር ሰው ዐልጋ ላይ አስተኛችው፤ በሩንም ዘግታበት ወጣች።

22ከዚያም ባሏን ጠርታ፣ “ወደ እግዚአብሔር ሰው በፍጥነት ደርሼ እንድመለስ አንድ አገልጋይና አንድ አህያ ላክልኝ” አለችው።

23ባሏም፣ “ዛሬ ወደ እርሱ መሄድ ለምን አስፈለገሽ? መባቻ ወይም ሰንበት አይደለም” አላት።

እርሷም፣ “ምንም አይደል፤ ልሂድ” አለችው።

24ከዚያም አህያውን ጭና አገልጋይዋን፣ “ቶሎ ቶሎ ንዳ፤ እኔ ካልነገርኩህ በቀር ለእኔ ብለህ አታዝግም” አለችው። 25ስለዚህ ተነሥታ የእግዚአብሔር ሰው ወዳለበት ወደ ቀርሜሎስ ተራራ ሄደች።

የእግዚአብሔር ሰው በሩቁ ሲያያት አገልጋዩን ግያዝን እንዲህ አለው፤ “ሱነማዪቱን አየሃት፤ ያቻትና! 26በል ሩጠህ ሂድና፣ ‘ምነው ደኅና አይደለሽምን? ባልሽ ደኅና አይደለምን? ልጅሽስ ደኅና አይደለምን?’ ብለህ ጠይቃት።”

እርሷ፣ “ሁሉ ነገር ደኅና ነው” አለች።

27የእግዚአብሔር ሰው ወዳለበት ተራራ ስትደርስም እግሩ ላይ ተጠመጠመች፤ ግያዝ ሊያስለቅቃት ሲመጣ፣ የእግዚአብሔር ሰው ግን፣ “እጅግ ዐዝናለችና ተዋት! እግዚአብሔር ይህን ለምን ከእኔ እንደ ሰወረውና እንዳልነገረኝ አልገባኝም” አለ።

28እርሷም፣ “ጌታዬ፤ ለመሆኑ እኔ ልጅ እንድትሰጠኝ ጠይቄህ ነበርን? ‘አጕል ተስፋ እንዳትሰጠኝ’ አላልሁህምን?” አለችው።

29ኤልሳዕም ግያዝን፣ “እንግዲህ ወገብህን ታጠቅ፤ በትሬን ያዝና ሩጥ፤ መንገድ ላይ ሰው ብታገኝ ሰላም አትበል፤ ማንም ሰው ሰላም ቢልህ መልስ አትስጥ፤ በትሬንም በልጁ ፊት ላይ አድርግ” አለው።

30የልጁ እናት ግን፣ “ሕያው እግዚአብሔርን፤ በሕያው ነፍስህም እምላለሁ፣ ፈጽሞ ትቼህ አልሄድም” አለችው፤ ስለዚህ ተነሥቶ ተከተላት።

31ግያዝም ቀድሟቸው ሄዶ በትሩን በልጁ ፊት ላይ አደረገ፤ ነገር ግን ድምፅም፣ ምላሽም አልነበረም። ስለዚህ ግያዝ ወደ ኤልሳዕ ተመልሶ፣ “ልጁ አልነቃም” አለው።

32ኤልሳዕ ወደ ቤት ሲገባም ልጁ ሞቶ በዐልጋው ላይ ተጋድሞ ነበር። 33ወደ ውስጥም ገባ፤ ከዚያም በሩን በራሱና በልጁ ላይ ዘግቶ ወደ እግዚአብሔር ጸለየ።

34በዐልጋው ላይ ወጥቶም በልጁ ላይ ተጋደመና አፉን በአፉ፣ ዐይኑን በዐይኑ፣ እጁን በእጁ ላይ አደረገ። ሙሉ በሙሉ እንደተዘረጋበትም፣ የልጁ ሰውነት መሞቅ ጀመረ። 35ኤልሳዕም ተነሥቶ በቤቱ ውስጥ ወዲያና ወዲህ ከሄደ በኋላ ወደ ዐልጋው ወጥቶ እንደ ገና በልጁ ላይ ሙሉ ለሙሉ ተዘረጋበት፤ ልጁም ሰባት ጊዜ አስነጠሰውና ዐይኖቹን ከፈተ።

36ኤልሳዕም ግያዝን ጠርቶ፣ “ሱነማዪቱን ጥራት፤” አለው፤ እርሱም ጠራት። እንደ መጣችም፣ “በይ ልጅሽን ውሰጂ” አላት። 37እርሷም ገብታ በእግሩ ላይ ወደቀች፤ በምድርም ላይ ተደፋች፤ ልጇንም ይዛ ወጣች።

መርዛሙ ወጥ

38ኤልሳዕ ወደ ጌልገላ ተመለሰ፤ በዚያም አገር ራብ ነበረ። የነቢያት ማኅበር በፊቱ ተቀምጠው ሳለ አገልጋዩን፣ “ትልቁን ምንቸት ጣድና ለእነዚህ ሰዎች ወጥ ሥራላቸው” አለው።

39ከእነርሱም አንዱ ቅጠላ ቅጠል ለማምጣት ወደ ሜዳ ወጥቶ፤ ዱር በቀል ሐረግ አገኘ፤ ከሐረጉም ላይ የቅል ፍሬ ለቅሞ በልብሱ ሙሉ ይዞ ተመለሰና ቈራርጦ በወጡ ምንቸት ውስጥ ጨመረው፤ ምን እንደ ሆነ ግን ማንም አላወቀም። 40ሰዎቹ እንዲመገቡትም ወጡ ወጣ፤ ገና አንደ ቀመሱትም፣ “የእግዚአብሔር ሰው ሆይ፤ በምንቸቱ ውስጥ የሚገድል መርዝ አለ!” ብለው ጮኹ፤ ሊመገቡትም አልቻሉም። 41ኤልሳዕም፣ “እስቲ ዱቄት አምጡልኝ” አለ። ያንንም በምንቸቱ ውስጥ ጨምሮ፣ “እንዲመገቡት ለሰዎቹ አቅርቡላቸው” አለ። በምንቸቱም ውስጥ ጕዳት የሚያስከትል ነገር አልተገኘም።

አንድ መቶ ሰው ተመገበ

42አንድ ሰው ከበኵራቱ ፍሬ የተጋገረ ሃያ የገብስ ሙልሙልና ጥቂት የእሸት ዛላዎች በአቍማዳ ይዞ ከበኣልሻሊሻ ወደ እግዚአብሔር ሰው መጣ። ኤልሳዕም አገልጋዩን፣ “ሰዎቹ እንዲበሉት ስጣቸው” አለው። 43አገልጋዩም፣ “ይህን እንዴት አድርጌ ለመቶ ሰው አቀርባለሁ?” ሲል ጠየቀ፤

ኤልሳዕ ግን፣ “እንዲበሉት ለሰዎቹ ስጣቸው፤ እግዚአብሔር፣ ‘በልተው ይተርፋቸዋል’ ይላልና” አለው። 44ከዚያም አቀረበላቸው፤ እግዚአብሔር እንደ ተናገረውም በልተው ተረፋቸው።

Hindi Contemporary Version

2 राजा 4:1-44

विधवा स्त्री और तेल पात्र

1भविष्यद्वक्ता मंडल के भविष्यवक्ताओं में से एक की पत्नी ने एलीशा की दोहाई दी, “आपके सेवक, मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है. आपको मालूम ही है कि आपके सेवक के मन में याहवेह के लिए कितना भय था. अब हालत यह है कि जिसका वह कर्ज़दार था वह मेरे दोनों पुत्रों को अपने दास बनाने के लिए आ खड़ा हुआ है.”

2एलीशा ने उससे पूछा, “मैं तुम्हारे लिए क्या करूं? बताओ क्या-क्या बाकी रह गया है तुम्हारे घर में?”

उस स्त्री ने उत्तर दिया, “आपकी सेविका के घर में अब तेल का एक पात्र के अलावा कुछ भी बचा नहीं रह गया है.”

3एलीशा ने उससे कहा, “जाओ और अपने सभी पड़ोसियों से खाली बर्तन मांग लाओ और ध्यान रहे कि ये बर्तन गिनती में कम न हों. 4तब उन्हें ले तुम अपने पुत्रों के साथ कमरे में चली जाना और दरवाजा बंद कर लेना. तब इन सभी बर्तनों में तेल उण्डेलना शुरू करना. जो जो बर्तन भर जाएं उन्हें अलग रखते जाना.”

5तब वह वहां से चली गई. अपने पुत्रों के साथ कमरे में जाकर उसने दरवाजा बंद कर लिया. वह बर्तनों में तेल उंडेलती गई और पुत्र उसके सामने खाली बर्तन लाते गए. 6जब सारे बर्तन भर चुके, उसने अपने पुत्र से कहा, “और बर्तन ले आओ!”

पुत्र ने इसके उत्तर में कहा, “अब कोई बर्तन नहीं है.” तब तेल की धार थम गई.

7उसने परमेश्वर के जन को इस बात की ख़बर दे दी. और परमेश्वर के जन ने उस स्त्री को आदेश दिया, “जाओ, यह तेल बेचकर अपना कर्ज़ भर दो.” जो बाकी रह जाए, उससे तुम और तुम्हारे पुत्र गुज़ारा करें.

एलीशा द्वारा शूनामी स्त्री के पुत्र का पुनर्जीवन

8एक दिन एलीशा शूनेम नाम के स्थान पर गए. वहां एक धनी स्त्री रहती थी. उसने एलीशा को विनती करके भोजन पर बुलाया. इसके बाद जब कभी एलीशा वहां से जाते थे, वहीं रुक कर भोजन कर लेते थे. 9उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “सुनिए, अब तो मैं यह समझ गई हूं कि यह व्यक्ति, जो हमेशा इसी मार्ग से जाया करते हैं, परमेश्वर के पवित्र जन हैं. 10हम छत पर दीवारें उठाकर एक छोटा कमरा बना लें, उनके लिए वहां एक बिछौना, एक मेज़ एक कुर्सी और एक दीपक रख दें, कि जब कभी वह यहां आएं, वहां ठहर सकें.”

11एक दिन एलीशा वहां आए और उन्होंने उस कमरे में जाकर आराम किया. 12उन्होंने अपने सेवक गेहज़ी से कहा, “शूनामी स्त्री को बुला लाओ.” वह आकर उनके सामने खड़ी हो गई. 13एलीशा ने गेहज़ी को आदेश दिया, “उससे कहो, ‘देखिए, आपने हम दोनों का ध्यान रखने के लिए यह सब कष्ट किया है; आपके लिए क्या किया जा सकता है? क्या आप चाहती हैं कि किसी विषय में राजा के सामने आपकी कोई बात रखी जाए, या सेनापति से कोई विनती की जाए?’ ”

उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं तो अपनों ही के बीच में रह रही हूं!”

14तब उन्होंने पूछा, “तब इस स्त्री के लिए क्या किया जा सकता है?”

गेहज़ी ने उत्तर दिया, “उसके कोई पुत्र नहीं है, और उसके पति ढलती उम्र के व्यक्ति हैं.”

15एलीशा ने कहा, “उसे यहां बुलाओ.” जब वह स्त्री आकर द्वार पर खड़ी हो गई, 16एलीशा ने उससे कहा, “अगले साल इसी मौसम में लगभग इसी समय तुम्हारी गोद में एक पुत्र होगा.”

वह स्त्री कहने लगी, “नहीं, मेरे स्वामी! परमेश्वर के जन, अपनी सेविका को झूठी आशा न दीजिए.”

17उस स्त्री ने गर्भधारण किया और अगले साल उसी समय वसन्त के मौसम में उसने एक पुत्र को जन्म दिया—ठीक जैसा एलीशा ने उससे कहा था.

18बड़ा होता हुआ वह बालक, एक दिन कटनी कर रहे मजदूरों के बीच अपने पिता के पास चला गया. 19अचानक उसने अपने पिता से कहा, “अरे, मेरा सिर! मेरा सिर!”

पिता ने अपने सेवक को आदेश दिया, “इसे इसकी माता के पास ले जाओ.” 20सेवक ने उस बालक को उठाया और उसकी माता के पास ले गया. वह बालक दोपहर तक अपनी माता की गोद में ही बैठा रहा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई. 21उस स्त्री ने बालक को ऊपर ले जाकर उस परमेश्वर के जन के बिछौने पर लिटा दिया और दरवाजा बंद करके चली गई.

22तब उसने अपने पति को यह संदेश भेजा, “मेरे पास अपना एक सेवक और गधा भेज दीजिए कि मैं जल्दी ही परमेश्वर के जन से भेंटकर लौट आऊं.”

23पति ने प्रश्न किया, “तुम आज ही क्यों जाना चाह रही हो? आज न तो नया चांद है, और न ही शब्बाथ.”

उसका उत्तर था, “सब कुछ कुशल ही होगा.”

24तब उसने गधे को तैयार किया और अपने सेवक को आदेश दिया, “गधे को तेज हांको! मेरे लिए रफ़्तार धीमी न होने पाए, जब तक मैं इसके लिए आदेश न दूं.” 25वह चल पड़ी और कर्मेल पर्वत पर परमेश्वर के जन के घर तक पहुंच गई.

जब परमेश्वर के जन ने उसे अपनी ओर आते देखा, उन्होंने अपने सेवक गेहज़ी से कहा, “वह देखो! शूनामी स्त्री! 26तुरंत उससे मिलने के लिए दौड़ो और उससे पूछो, ‘क्या आप सकुशल हैं? क्या आपके पति सकुशल हैं? क्या आपका पुत्र सकुशल है?’ ”

उसने उसे उत्तर दिया, “सभी कुछ सकुशल है.”

27तब, जैसे ही वह पर्वत पर परमेश्वर के जन के पास पहुंची, उसने एलीशा के पैर पकड़ लिए. जब गेहज़ी उसे हटाने वहां पहुंचा, परमेश्वर के जन ने उससे कहा, “ऐसा कुछ न करो, क्योंकि इसका मन भारी दर्द से भरा हुआ है. इसके बारे में मुझे याहवेह ने कोई सूचना नहीं दी है, इसे गुप्‍त ही रखा है.”

28तब उस स्त्री ने कहना शुरू किया, “क्या अपने स्वामी से पुत्र की विनती मैंने की थी? क्या मैंने न कहा था, ‘मुझे झूठी आशा न दीजिए?’ ”

29एलीशा ने गेहज़ी को आदेश दिया, “कमर कस लो और अपने साथ मेरी लाठी ले लो और चल पड़ो! मार्ग में अगर कोई मिले तो उससे हाल-चाल जानने के लिए न रुकना. यदि तुम्हें कोई नमस्कार करे तो उसका उत्तर न देना. जाकर मेरी लाठी उस बालक के मुंह पर रख देना.”

30तब बालक की माता ने एलीशा से कहा, “जीवित याहवेह की शपथ और आपकी शपथ, मैं आपके बिना न लौटूंगी!” तब एलीशा उठे और उस स्त्री के साथ चल दिए.

31गेहज़ी ने आगे-आगे जाकर बालक के मुंह पर लाठी टिका दी, मगर वहां न तो कोई आवाज सुनाई दिया गया और न ही उसमें जीवन का कोई लक्षण दिखाई दिया. तब गेहज़ी ने लौटकर एलीशा को ख़बर दी, “बालक तो जागा ही नहीं!”

32जब एलीशा ने घर में प्रवेश किया, वह मरा हुआ बालक उनके ही बिछौने पर ही लिटाया हुआ था. 33तब एलीशा कमरे के भीतर चले गए और दरवाजा बंद कर लिया, वे दोनों बाहर ही थे. एलीशा ने याहवेह से प्रार्थना की. 34तब वह जाकर बालक के ऊपर लेट गए. उन्होंने अपना मुख बालक के मुख पर रखा, उनकी आंखें बालक की आंखों पर थी और उनके हाथ बालक के हाथों पर. जब वह उस बालक पर लेट गए, तब बालक के शरीर में गर्मी आने लगी. 35फिर वह नीचे उतरे और घर के भीतर ही टहलते रहे. तब वह दोबारा बिछौने पर चढ़ गए और बालक पर लेट गए. इससे उस बालक को सात बार छींक आई और उसने आंखें खोल दीं.

36एलीशा ने गेहज़ी को पुकारा और आदेश दिया, “शूनामी स्त्री को बुलाओ.” तब गेहज़ी ने उसे पुकारा. जब वह भीतर आई, उन्होंने उस स्त्री से कहा, “उठा लो अपने पुत्र को.” 37वह आई और भूमि की ओर झुककर एलीशा के पैरों पर गिर पड़ी. इसके बाद उसने अपने पुत्र को गोद में उठाया और वहां से चली गई.

एलीशा द्वारा घातक भोजन की शुद्धि

38एलीशा दोबारा गिलगाल नगर को लौट गए. इस समय देश में अकाल फैला था. भविष्यद्वक्ता मंडल इस समय उनके सामने बैठा हुआ था. एलीशा ने अपने सेवक को आदेश दिया, “एक बड़े बर्तन में भविष्यद्वक्ता मंडल के लिए भोजन तैयार करो!”

39एक भविष्यद्वक्ता ने बाहर जाकर खेतों में से कुछ साग-पात इकट्ठा किया. वहीं उसे एक जंगली लता भी दिखाई दी, जिससे उसने बड़ी संख्या में जंगली फल इकट्ठा कर लिए. उसने इन्हें काटकर पकाने के बर्तन में डाल दिया. उसे यह मालूम न था कि ये फल क्या थे. 40जब परोसने के लिए भोजन निकाला गया और जैसे ही उन्होंने भोजन खाना शुरू किया, वे चिल्ला उठे, “परमेश्वर के जन, इस हांड़ी में मौत है!” वे भोजन न कर सके.

41एलीशा ने आदेश दिया, “थोड़ा आटा ले आओ.” उन्होंने उस आटे को उस बर्तन में डाला और कहा, “अब इसे इन्हें परोस दो, कि वे इसे खा सके.” बर्तन का भोजन खाने योग्य हो चुका था.

सौ अतिथियों के लिए बीस रोटियां

42बाल-शालीशाह नामक स्थान से एक व्यक्ति ने आकर परमेश्वर के जन को उपज के प्रथम फल से बनाई गई बीस जौ की रोटियां और बोरे में कुछ बालें लाकर भेंट में दीं. एलीशा ने आदेश दिया, “यह सब भविष्यद्वक्ता मंडल के भविष्यवक्ताओं में बांट दिया जाए कि वे भोजन कर लें.”

43सेवक ने प्रश्न किया, “यह भोजन सौ व्यक्तियों के सामने कैसे रखा जाए?”

एलीशा ने अपना आदेश दोहराया, “यह भोजन भविष्यद्वक्ता मंडल के भविष्यवक्ताओं को परोस दो, कि वे इसे खा सकें, क्योंकि यह याहवेह का संदेश है, ‘उनके खा चुकने के बाद भी कुछ भोजन बाकी रह जाएगा.’ ” 44तब सेवक ने भोजन परोस दिया. वे खाकर तृप्‍त हुए और कुछ भोजन बाकी भी रह गया; जैसा याहवेह ने कहा था.