አስቴር 3 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

አስቴር 3:1-15

ሐማ አይሁድን ለማጥፋት የሸረበው ሤራ

1ከዚህም ነገር በኋላ ንጉሥ ጠረክሲስ የአጋጋዊውን የሐመዳቱን ልጅ ሐማን ከፍ ከፍ አደረገው፤ ከሌሎቹም መኳንንት ሁሉ ከፍተኛውን ሥልጣን በመስጠት አከበረው። 2ንጉሡ ስለ እርሱ ይህ እንዲደረግለት አዝዞ ስለ ነበር፣ በንጉሡ በር ያሉት የመንግሥቱ ሹማምት ሁሉ ለሐማ ተንበርክከው እጅ በመንሣት አክብሮታቸውን ይገልጡለት ነበር። መርዶክዮስ ግን ወድቆ አልሰገደለትም፤ አክብሮትም አላሳየውም።

3ታዲያ በንጉሡ በር ያሉት የንጉሡ አገልጋዮች መርዶክዮስን፣ “የንጉሡን ትእዛዝ ለምን ትተላለፋለህ?” ሲሉ ጠየቁት። 4ይህንም በየቀኑ ይነግሩት ነበር፤ እርሱ ግን አልተቀበላቸውም። አይሁዳዊ መሆኑን ነግሯቸው ስለ ነበር፣ የመርዶክዮስ ባሕርይ እስከ መቼ ሊቀጥል እንደሚችል ለማየት ሲሉ ይህንኑ ለሐማ ነገሩት።

5ሐማም መርዶክዮስ ወድቆ እንዳልሰገደለትና እንዳላከበረው ሲያይ እጅግ ተቈጣ። 6ይልቁንም መርዶክዮስ ከእነማን ወገን መሆኑን በተረዳ ጊዜ፣ መርዶክዮስን ብቻ መግደል እንደ ኢምንት ቈጠረው፤ ስለዚህ ሐማ በመላው የጠረክሲስ መንግሥት ውስጥ የሚገኙትንና የመርዶክዮስ ወገን የሆኑትን አይሁድ ሁሉ ለማጥፋት ዘዴ ፈለገ።

7ንጉሥ ጠረክሲስ በነገሠ በዐሥራ ሁለተኛው ዓመት ኒሳን በተባለው በመጀመሪያው ወር፣ ቀኑንና ወሩን ለመለየት ፉር የተባለ ዕጣ ሐማ ባለበት ጣሉ፤ ዕጣውም አዳር በተባለው በዐሥራ ሁለተኛው ወር ላይ ወደቀ።

8ከዚያም ሐማ ንጉሥ ጠረክሲስን እንዲህ አለው፤ “በአሕዛብ መካከል በመንግሥትህ አውራጃዎች ሁሉ ተሠራጭቶና ተበታትኖ የሚኖር አንድ ሕዝብ አለ፤ ይህም ሕዝብ ከሌሎች ሕዝቦች ሁሉ የተለየ ልማድ ያለውና የንጉሡንም ሕግ የማይታዘዝ ነው፤ ታዲያ ይህን ሕዝብ ዝም ማለቱ ለንጉሡ አይበጅም። 9ነገሩ ንጉሡን ደስ የሚያሰኘው ከሆነ፣ እነርሱን ለማጥፋት ዐዋጅ ይውጣ፤ እኔም ይህን ተግባር ለሚፈጽሙ ሰዎች የሚውል ዐሥር ሺሕ መክሊት ብር ወደ መንግሥት ግምጃ ቤት አስገባለሁ።”

10ስለዚህ ንጉሡ የቀለበት ማኅተሙን ከጣቱ አውልቆ የአይሁድ ጠላት ለሆነው ለአጋጋዊው ለሐማዳቱ ልጅ ለሐማ ሰጠው። 11ንጉሡም ሐማን፣ “ገንዘቡን እዚያው ያዘው፤ ሕዝቡንም እንዳሻህ አድርገው” አለው።

12ከዚያም በመጀመሪያው ወር ዐሥራ ሦስተኛው ቀን የንጉሡ ጸሓፊዎች ተጠሩ። እነርሱም የሐማን ትእዛዝ በሙሉ በየአውራጃው ፊደልና በየሕዝቡ ቋንቋ፣ ለንጉሡ እንደራሴዎች፣ ለልዩ ልዩ አውራጃ ገዦችና ለልዩ ልዩ ሕዝቦች መኳንንት ጻፉ። ይህም የተጻፈው በራሱ በንጉሡ ጠረክሲስ ስም ሲሆን፣ የታተመውም በራሱ ማኅተም ነበር። 13አዳር በተባለው በዐሥራ ሁለተኛው ወር፣ በዐሥራ ሦስተኛው ቀን ወጣት፣ ሽማግሌ፣ ሴትና ሕፃን ሳይባል አይሁድ ሁሉ በዚያኑ ዕለት እንዲጠፉ፣ እንዲገደሉና እንዲደመሰሱ፣ ሀብታቸውም እንዲዘረፍ ደብዳቤ ለንጉሡ አውራጃዎች ሁሉ በመልእክተኞች እጅ ተላከ። 14ለእያንዳንዱም አውራጃ ሕዝብ እንዲታወቅ፣ እነርሱም ለዚያ ቀን ዝግጁ እንዲሆኑ፣ የዋናው ዐዋጅ ቅጅ ሕግ እንዲወጣና ወደ እያንዳንዱም አውራጃ እንዲላክ ተደረገ።

15መልእክተኞቹ በንጉሡ ትእዛዝ ተቻኵለው ወጡ፤ ዐዋጁም በሱሳ ግንብ ተላለፈ። ንጉሡና ሐማ ለመጠጣት ተቀመጡ፤ የሱሳ ከተማ ግን ግራ ተጋብታ ነበር።

Hindi Contemporary Version

एस्तेर 3:1-15

यहूदियों के विरुद्ध हामान द्वारा षड़यंत्र

1इन घटनाओं के बाद राजा अहषवेरोष ने अगागी हम्मेदाथा के पुत्र हामान को वर्णन किया. राजा ने उसे उन सभी के ऊपर अधिकार प्रदान कर उसे सम्मानित किया, जो राजा के साथ शासक थे. 2राजमहल परिसर के द्वार पर सभी अधिकारी-सेवक झुककर हामान को दंडवत किया करते थे क्योंकि राजा के ही ओर से उसके संबंध यह आदेश प्रसारित किया जा चुका था. परंतु मोरदकय न तो झुकता था और न उसको दण्डवत् करता था.

3एक अवसर पर प्रवेश द्वार पर नियुक्त राजा के अधिकारियों ने मोरदकय से प्रश्न किया, “तुम राजा की आज्ञा का पालन क्यों नहीं करते?” 4जब वे मोरदकय को प्रतिदिन इसका स्मरण दिलाते रहे और फिर भी उसने उनकी चेतावनी की ओर ध्यान नहीं दिया, तब उन्होंने इस विषय का उल्लेख हामान से किया, कि वे यह मालूम कर सकें कि मोरदकय का विचार स्वीकार्य होगा अथवा नहीं, क्योंकि मोरदकय उन पर यह प्रकट कर चुका था कि वह एक यहूदी है.

5जब हामान ने यह देखा कि मोरदकय न तो उसके सामने झुकता है और न ही उसका आदर करता है, तब हामान क्रुद्ध हो गया! 6क्योंकि उन्होंने उसे यह भी सूचित किया था, कि मोरदकाय किस समुदाय से था. इस कारण हामान यह युक्ति करने लगा कि किस रीति से समस्त यहूदियों को नष्ट किया जा सकता है, जो मोरदकय के सजातीय थे, जो अहषवेरोष के साम्राज्य में फैल गये थे.

7राजा अहषवेरोष के शासन के बारहवें वर्ष के पहले महीने निसान में हामान के सामने दिन-दिन तथा महीने-महीने करके बारहवें महीने के लिए अर्थात् अदार के लिए पुर अर्थात् चिट्ठी डाली गई.

8हामान ने राजा अहषवेरोष से निवेदन किया, “आपके सारे साम्राज्य में कुछ विशेष जाति समूह के लोग बिखरे हुए रह रहे हैं. इनका अपना नियम है, जो सभी अन्यों से अलग हैं. ये वे हैं, जो राजा के नियम को महत्व नहीं देते. इन्हें बने रहने देना राजा के लाभ में न होगा. 9यदि यह राजा को उत्तम लगे, यह राजाज्ञा प्रसारित की जाए, कि इन्हें नष्ट कर दिया जाए. मैं स्वयं कोषाधिकारियों के हाथ में दस हजार चांदी के सिक्‍के सौंपूंगा, कि जो जो राजाज्ञा का पालन करेगा, उन्हें दी जायें.”

10इस पर राजा ने अपनी उंगली से राजकीय अंगूठी निकाली और यहूदियों के शत्रु अगागवासी हम्मेदाथा के पुत्र हामान को सौंप दी. 11राजा ने हामान को आश्वासन दिया, “तुम्हें धनराशि भी दी जा रही है और सहायक भी. अब तुम्हें जो कुछ ज़रूरी लगे वही करो.”

12तब प्रथम महीने की तेरहवीं तिथि पर राजा के लेखकों को आमंत्रित किया गया और हामान द्वारा दी गयी राजाज्ञा सारे साम्राज्य के हर एक राज्य के हाकिमो एवं राज्यपालों के नाम तथा प्रजा पर नियुक्त अधिकारियों के लिए उसी राज्य की भाषा एवं अक्षर में लिखवा दी गई. यह राजाज्ञा अहषवेरोष के नाम में लिख दी गई थी. तथा इस पर राजा की राजमुद्रा की मोहर लगा दी गई थी. 13ये चिट्ठी सारे साम्राज्य के हर एक राज्य को चिट्ठी संदेशवाहकों द्वारा दी गई थी. इनमें संदेश यह था: यहूदियों का संहार हो, उन्हें नष्ट कर दो, उन सभी का अस्तित्व ही समाप्‍त कर दो, चाहे युवा हों, वृद्ध हों, स्त्रियां हों, अथवा बालक हों, यह एक ही दिन में पूरा हो, बारहवें महीने अदार की तेरहवीं तिथि पर. इसी दिन उनकी संपत्ति भी लूट ली जाए. 14इस लेख की एक प्रति हर एक राज्य में लोगों के सामने इस घोषणा के साथ सौंपी जाए कि समस्त लोग उस विशेष दिन के लिए तैयार रहें.

15राजा के आदेश पर संदेशवाहक तुरंत चले गए. राजाज्ञा को गढ़नगर शूशन में जाहिर कर दिया गया. राजा एवं हामान साथ बैठे हुए दाखमधु में मस्त थे जबकि शूशन नगर में घबराहट फैल चुकी थी.