መዝሙር 102 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

መዝሙር 102:1-28

መዝሙር 102

በክፉ ጊዜ የቀረበ ጸሎት

በዐዘነና ልመናውን በእግዚአብሔር ፊት ባፈሰሰ ጊዜ፣ የተጨነቀ ሰው ጸሎት።

1እግዚአብሔር ሆይ፤ ጸሎቴን ስማ፤

ጩኸቴም ወደ አንተ ይድረስ።

2በመከራዬ ቀን ፊትህን ከእኔ አትሰውር፤

ጆሮህን ወደ እኔ አዘንብል፤

በጠራሁህ ቀን ፈጥነህ መልስልኝ።

3ዘመኔ እንደ ጢስ ተንኖ ዐልቋልና፤

ዐጥንቶቼም እንደ ማንደጃ ግለዋል።

4ልቤ ዋግ እንደ መታው ሣር ደርቋል፤

እህል መብላትም ዘንግቻለሁ።

5ከጩኸቴ ድምፅ የተነሣ፣

ዐጥንቴ ከቈዳዬ ጋር ተጣበቀ።

6የምድረ በዳ እርኩም መሰልሁ፤

በፍርስራሽ መካከል እንዳለ ጕጕት ሆንሁ።

7ያለ እንቅልፍ አድራለሁ፤

በቤቴ ጕልላት ላይ እንዳለ ብቸኛ ወፍ ሆንሁ።

8ጠላቶቼ ቀኑን ሙሉ ይዘልፉኛል፤

የሚያክፋፉኝም ስሜን እንደ ርግማን ቈጥረውታል።

9ዐመድ እንደ እህል ቅሜአለሁና፤

መጠጤንም ከእንባ ጋር ቀላቅያለሁ።

10ከቍጣህና ከመዓትህ የተነሣ፣

ወደ ላይ አንሥተኸኝ የነበርሁትን መልሰህ ጣልኸኝ።

11ዘመኖቼ እንደ ምሽት ጥላ ናቸው፤

እኔም እንደ ሣር ደርቄአለሁ።

12እግዚአብሔር ሆይ፤ አንተ ግን ለዘላለም በዙፋንህ ተቀምጠሃል፤

ስምህም ከትውልድ እስከ ትውልድ ይኖራል።

13ትነሣለህ፤ ጽዮንንም በርኅራኄ ዐይን ታያለህ፣

ለእርሷ በጎነትህን የምታሳይበት ዘመን ነውና፤

የተወሰነውም ጊዜ ደርሷል።

14አገልጋዮችህ በድንጋዮቿ ደስ ይሰኛሉ፤

ለዐፈሯም ይሳሳሉ።

15ሕዝቦች የእግዚአብሔርን ስም፣

የምድርም ነገሥታት ሁሉ ክብርህን ይፈራሉ።

16እግዚአብሔር ጽዮንን መልሶ ይሠራታልና፤

በክብሩም ይገለጣል።

17እርሱ ወደ ችግረኞች ጸሎት ይመለከታል፤

ልመናቸውንም አይንቅም።

18ወደ ፊት የሚፈጠር ሕዝብ እግዚአብሔርን ያወድስ ዘንድ፣

ይህ ለመጭው ትውልድ እንዲህ ተብሎ ይጻፍ፤

19እግዚአብሔር በከፍታ ላይ ካለው መቅደሱ ወደ ታች ተመልክቷልና፤

ከሰማይም ሆኖ ምድርን አይቷል፤

20ይኸውም የእስረኞችን ጩኸት ይሰማ ዘንድ፣

ሞት የተፈረደባቸውንም ያድን ዘንድ ነው።”

21ስለዚህ የእግዚአብሔር ስም በጽዮን፣

ምስጋናውም በኢየሩሳሌም ይታወጃል፤

22ይህም፣ ሕዝቦችና መንግሥታት፣

እግዚአብሔርን ለማምለክ በአንድነት ሲሰበሰቡ ይሆናል።

23ብርታቴን መንገድ ላይ ቀጨው፤102፥23 ወይም በኀይሉ ብርታቴን ቀጨው

ዕድሜዬንም በዐጭሩ አስቀረው።

24እኔም እንዲህ አልሁ፤

“አምላኬ ሆይ፤ በዘመኔ እኩሌታ አትውሰደኝ፤

ዘመናትህ ከትውልድ እስከ ትውልድ ይኖራሉ።

25አንተ ከጥንት ምድርን መሠረትህ፤

ሰማያትም የእጆችህ ሥራ ናቸው።

26እነርሱ ይጠፋሉ፤ አንተ ግን ጸንተህ ትኖራለህ፤

ሁላቸው እንደ ልብስ ያረጃሉ፤

እንደ መጐናጸፊያም ትለውጣቸዋለህ፤

እነርሱም ወዲያ ይጣላሉ።

27አንተ ግን ያው አንተ ነህ፤

ዓመቶችህም ከቶ አያልቁም።

28የአገልጋዮችህ ልጆች ተደላድለው ይኖራሉ፤

ዘራቸውም በፊትህ ጸንቶ ይኖራል።”

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 102:1-28

स्तोत्र 102

संकट में पुकारा आक्रांत पुरुष की अभ्यर्थना. वह अत्यंत उदास है और याहवेह के सामने अपनी हृदय-पीड़ा का वर्णन कर रहा है

1याहवेह, मेरी प्रार्थना सुनिए;

सहायता के लिए मेरी पुकार आप तक पहुंचे.

2मेरी पीड़ा के समय मुझसे अपना मुखमंडल छिपा न लीजिए.

जब मैं पुकारूं.

अपने कान मेरी ओर कीजिए;

मुझे शीघ्र उत्तर दीजिए.

3धुएं के समान मेरा समय विलीन होता जा रहा है;

मेरी हड्डियां दहकते अंगारों जैसी सुलग रही हैं.

4घास के समान मेरा हृदय झुलस कर मुरझा गया है;

मुझे स्मरण ही नहीं रहता कि मुझे भोजन करना है.

5मेरी सतत कराहटों ने मुझे मात्र हड्डियों

एवं त्वचा का ढांचा बनाकर छोड़ा है.

6मैं वन के उल्लू समान होकर रह गया हूं,

उस उल्लू के समान, जो खंडहरों में निवास करता है.

7मैं सो नहीं पाता,

मैं छत के एकाकी पक्षी-सा हो गया हूं.

8दिन भर मैं शत्रुओं के ताने सुनता रहता हूं;

जो मेरी निंदा करते हैं, वे मेरा नाम शाप के रूप में जाहिर करते हैं.

9राख ही अब मेरा आहार हो गई है

और मेरे आंसू मेरे पेय के साथ मिश्रित होते रहते हैं.

10यह सब आपके क्रोध,

उग्र कोप का परिणाम है क्योंकि आपने मुझे ऊंचा उठाया और आपने ही मुझे अलग फेंक दिया है.

11मेरे दिन अब ढलती छाया-समान हो गए हैं;

मैं घास के समान मुरझा रहा हूं.

12किंतु, याहवेह, आप सदा-सर्वदा सिंहासन पर विराजमान हैं;

आपका नाम पीढ़ी से पीढ़ी स्थायी रहता है.

13आप उठेंगे और ज़ियोन पर मनोहरता करेंगे,

क्योंकि यही सुअवसर है कि आप उस पर अपनी कृपादृष्टि प्रकाशित करें.

वह ठहराया हुआ अवसर आ गया है.

14इस नगर का पत्थर-पत्थर आपके सेवकों को प्रिय है;

यहां तक कि यहां की धूल तक उन्हें द्रवित कर देती है.

15समस्त राष्ट्रों पर आपके नाम का आतंक छा जाएगा,

पृथ्वी के समस्त राजा आपकी महिमा के सामने नतमस्तक हो जाएंगे.

16क्योंकि याहवेह ने ज़ियोन का पुनर्निर्माण किया है;

वे अपने तेज में प्रकट हुए हैं.

17याहवेह लाचार की प्रार्थना का प्रत्युत्तर देते हैं;

उन्होंने उनकी गिड़गिड़ाहट का तिरस्कार नहीं किया.

18भावी पीढ़ी के हित में यह लिखा जाए,

कि वे, जो अब तक अस्तित्व में ही नहीं आए हैं, याहवेह का स्तवन कर सकें:

19“याहवेह ने अपने महान मंदिर से नीचे की ओर दृष्टि की,

उन्होंने स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि की,

20कि वह बंदियों का कराहना सुनें और उन्हें मुक्त कर दें,

जिन्हें मृत्यु दंड दिया गया है.”

21कि मनुष्य ज़ियोन में याहवेह की महिमा की घोषणा कर सकें

तथा येरूशलेम में उनका स्तवन,

22जब लोग तथा राज्य

याहवेह की वंदना के लिए एकत्र होंगे.

23मेरी जीवन यात्रा पूर्ण भी न हुई थी, कि उन्होंने मेरा बल शून्य कर दिया;

उन्होंने मेरी आयु घटा दी.

24तब मैंने आग्रह किया:

“मेरे परमेश्वर, मेरे जीवन के दिनों के पूर्ण होने के पूर्व ही मुझे उठा न लीजिए;

आप तो पीढ़ी से पीढ़ी स्थिर ही रहते हैं.

25प्रभु, आपने प्रारंभ में ही पृथ्वी की नींव रखी,

तथा आकाशमंडल आपके ही हाथों की कारीगरी है.

26वे तो नष्ट हो जाएंगे किंतु आप अस्तित्व में ही रहेंगे;

वे सभी वस्त्र समान पुराने हो जाएंगे.

आप उन्हें वस्त्रों के ही समान परिवर्तित कर देंगे

उनका अस्तित्व समाप्‍त हो जाएगा.

27आप न बदलनेवाले हैं,

आपकी आयु का कोई अंत नहीं.

28आपके सेवकों की सन्तति आपकी उपस्थिति में निवास करेंगी;

उनके वंशज आपके सम्मुख स्थिर रहेंगे.”