ሉቃስ 12 – NASV & NCA

New Amharic Standard Version

ሉቃስ 12:1-59

የማስጠንቀቂያና የማበረታቻ ቃላት

12፥2-9 ተጓ ምብ – ማቴ 10፥26-33

1በዚያን ጊዜ፣ በብዙ ሺሕ የሚቈጠር ሕዝብ እርስ በርስ እስኪረጋገጥ ድረስ ተሰብስቦ ሳለ፣ ኢየሱስ ለደቀ መዛሙርቱ እንዲህ ይል ጀመር፤ “ከፈሪሳውያን እርሾ ተጠንቀቁ፤ ይህም ግብዝነት ነው። 2የማይገለጥ የተሸፈነ፣ የማይታወቅ የተሰወረ ምንም የለም። 3ስለዚህ በጨለማ ያወራችሁት ሁሉ በብርሃን ይሰማል፤ በእልፍኝም ውስጥ በጆሮ ያንሾካሾካችሁት በሰገነት በይፋ ይነገራል።

4“ወዳጆቼ ሆይ፤ እላችኋለሁ፣ ሥጋን የሚገድሉትን፣ ከዚያ ወዲያ ግን ምንም ማድረግ የማይችሉትን አትፍሩ። 5ነገር ግን መፍራት የሚገባችሁን አሳያችኋለሁ፤ ከገደለ በኋላ ወደ ገሃነም ለመጣል ሥልጣን ያለውን እርሱን ፍሩት፤ አዎን፣ እርሱን ፍሩት እላችኋለሁ። 6አምስት ድንቢጦች በዐሥር ሳንቲም12፥6 ግሪኩ ሁለት ኢሳሪያ ይላል ይሸጡ የለምን? ይሁን እንጂ ከእነርሱ አንዷ እንኳ በእግዚአብሔር ዘንድ አትዘነጋም። 7የእናንተ የራሳችሁ ጠጕር ሁሉ እንኳ የተቈጠረ ነው፤ እንግዲህ አትፍሩ፤ ከብዙ ድንቢጦች የበለጠ ዋጋ አላችሁ።

8“እላችኋለሁ፤ በሰው ፊት ለሚመሰክርልኝ ሁሉ፣ የሰው ልጅ ደግሞ በእግዚአብሔር መላእክት ፊት ይመሰክርለታል። 9በሰው ፊት የሚክደኝም በእግዚአብሔር መላእክት ፊት ይካዳል። 10በሰው ልጅ ላይ የማቃለል ቃል የሚሰነዝር ሁሉ ይሰረይለታል፤ መንፈስ ቅዱስን የሚሳደብ ግን አይሰረይለትም።

11“ሰዎች ይዘው ወደ ምኵራብ፣ ወደ ገዥዎችና ወደ ባለሥልጣናት ባቀረቧችሁ ጊዜ፣ እንዴት ወይም ምን እንደምትመልሱ አትጨነቁ፤ 12በዚያ ሰዓት መንፈስ ቅዱስ መናገር የሚገባችሁን ያስተምራችኋልና።”

የሀብታሙ ሰው ሞኝነት

13ከሕዝቡም መካከል አንድ ሰው፣ “መምህር ሆይ፤ ወንድሜ ውርስ እንዲያካፍለኝ ንገረው” አለው።

14ኢየሱስም፣ “አንተ ሰው፤ በእናንተ ላይ ፈራጅ ወይም ዳኛ ያደረገኝ ማነው?” አለው። 15ደግሞም፣ “የሰው ሕይወቱ በሀብቱ ብዛት የተመሠረተ ስላልሆነ ተጠንቀቁ፤ ከስግብግብነትም ሁሉ ራሳችሁንም ጠብቁ” አላቸው።

16ቀጥሎም እንዲህ ሲል ምሳሌ ነገራቸው፤ “ዕርሻው እጅግ ፍሬያማ የሆነችለት አንድ ሀብታም ነበረ፤ 17ይህም ሰው፣ ምርቴን የማከማችበት ስፍራ ስለሌለኝ ምን ላድርግ? ብሎ በልቡ ዐሰበ።

18“እንዲህም አለ፤ ‘እንደዚህ አደርጋለሁ፤ ያሉኝን ጐተራዎች አፈርስና ሌሎች ሰፋ ያሉ ጐተራዎች እሠራለሁ፤ በዚያም ምርቴንና ንብረቴንም ሁሉ አከማቻለሁ፤ 19ነፍሴንም፣ “ነፍሴ ሆይ፤ ለብዙ ዘመን የሚበቃሽ ሀብት አከማችቼልሻለሁ፤ እንግዲህ ዕረፊ፤ ብዪ፤ ጠጪ፤ ደስም ይበልሽ” እላታለሁ።’

20“እግዚአብሔር ግን፣ ‘አንተ ሞኝ፤ ነፍስህን በዚህች ሌሊት ከአንተ ሊውስዱ ይፈልጓታል፤ እንግዲህ፣ ለራስህ ያከማቸኸው ለማን ይሆናል?’ አለው።

21“ስለዚህ ለራሱ ሀብት የሚያከማች፣ ዳሩ ግን በእግዚአብሔር ዘንድ ሀብታም ያልሆነ ሰው መጨረሻው ይኸው ነው።”

አትጨነቁ

12፥23-31 ተጓ ምብ – ማቴ 6፥25-33

22ከዚያም ኢየሱስ ለደቀ መዛሙርቱ እንዲህ አለ፤ “ስለዚህ እላችኋለሁ፣ ስለ ሕይወታችሁ ምን እንደምትበሉ ወይም ስለ ሰውነታችሁ ምን እንደምትለብሱ አትጨነቁ፤ 23ሕይወት ከምግብ፣ ሰውነትም ከልብስ ይበልጣልና። 24ቍራዎችን ተመልከቱ፤ አይዘሩም፤ አያጭዱም፤ ማከማቻ ወይም ጐተራ የላቸውም፤ እግዚአብሔር ግን ይመግባቸዋል። እናንተማ ከወፎች እጅግ ትበልጡ የለምን? 25ለመሆኑ፣ ከእናንተ ተጨንቆ በዕድሜው ላይ አንድ ሰዓት መጨመር የሚችል ማነው?12፥25 ወይም በቁመቱ ላይ አንድ ስንዝር 26እንግዲህ ቀላሉን ነገር እንኳ ማድረግ የማትችሉ ከሆነ፣ ስለ ሌላው ነገር ለምን ትጨነቃላችሁ?

27“እስቲ አበቦች እንዴት እንደሚያድጉ ተመልከቱ፤ አይለፉም፤ አይፈትሉም፤ ነገር ግን እላችኋለሁ፤ ሰሎሞን እንኳ በዚያ ሁሉ ክብሩ ከእነርሱ እንደ አንዷ አልለበሰም። 28እንግዲህ እግዚአብሔር ዛሬ ታይቶ ነገ ወደ እሳት የሚጣለውን የሜዳ ሣር እንዲህ የሚያለብስ ከሆነ፣ እናንተ እምነት የጐደላችሁ፣ እናንተንማ እንዴት አብልጦ አያለብሳችሁም? 29ስለዚህ ምን እንደምትበሉና ምን እንደምትጠጡ በመሻት ልባችሁ አይጨነቅ፤ 30ይህንማ በዓለም ያለ ሕዝብ ሁሉ ይፈልጋል፤ አባታችሁ እኮ ይህ ሁሉ እንደሚያስፈልጋችሁ ያውቃል። 31ይልቁንስ የእግዚአብሔርን መንግሥት ፈልጉ፤ ይህም ሁሉ በተጨማሪ ይሰጣችኋል።

32“እናንተ አነስተኛ መንጋ የሆናችሁ፤ መንግሥትን ሊሰጣችሁ የአባታችሁ መልካም ፈቃድ ነውና አትፍሩ፤ 33ያላችሁን ሽጡና ለድኾች ስጡ፤ ሌባ በማይሰርቅበት፣ ብል በማይበላበት፣ በማያረጅ ከረጢት የማያልቅ ንብረት በሰማይ አከማቹ፤ 34ልባችሁ፣ ንብረታችሁ ባለበት ቦታ ይሆናልና።

ነቅቶ መጠበቅ

12፥3536 ተጓ ምብ – ማቴ 25፥1-13ማር 13፥33-37

12፥39-4042-46 ተጓ ምብ – ማቴ 24፥43-51

35“በዐጭር ታጥቃችሁ ተዘጋጁ፤ መብራታችሁም የበራ ይሁን፤ 36ጌታቸው ከሰርግ ግብዣ እስኪመለስ የሚጠባበቁና መጥቶም በር ሲያንኳኳ ወዲያው ለመክፈት ዝግጁ የሆኑ ሰዎችን ምሰሉ። 37ጌታቸው በሚመጣበት ጊዜ ነቅተው የሚያገኛቸው አገልጋዮች ብፁዓን ናቸው። እውነት እላችኋለሁ፤ ጌታቸውም በዐጭር ይታጠቃል፤ በማእድ ያስቀምጣቸዋል፤ ቀርቦም ያስተናግዳቸዋል። 38ከሌሊቱ በሁለተኛውም ሆነ በሦስተኛው ክፍል መጥቶ እንደዚያው ነቅተው ቢያገኛቸው፣ እነዚያ አገልጋዮች ብፁዓን ናቸው። 39ይህን ግን ዕወቁ፤ ሌባ በምን ሰዓት እንደሚመጣ የቤቱ ባለቤት ቢያውቅ ኖሮ፣ ቤቱ ሲቈፈር ዝም ብሎ ባላየ ነበር። 40እናንተም ተዘጋጅታችሁ ጠብቁ፤ የሰው ልጅ ባላሰባችሁት ሰዓት ይመጣልና።”

41ጴጥሮስም፣ “ጌታ ሆይ፤ ይህን ምሳሌ የምትናገረው ለእኛ ብቻ ነው ወይስ ለሁሉም ጭምር ነው?” አለው።

42ጌታም እንዲህ ሲል መለሰ፤ “እንግዲህ፣ ምግባቸውን በተገቢው ጊዜ እንዲሰጣቸው፣ ጌታው በቤተ ሰዎቹ ላይ የሚሾመው ታማኝና ብልኅ መጋቢ ማነው? 43ጌታው ሲመለስ እንዲህ ሲያደርግ የሚያገኘው አገልጋይ እርሱ ብፁዕ ነው። 44እውነት እላችኋለሁ፤ ባለው ንብረት ሁሉ ላይ ይሾመዋል። 45ዳሩ ግን ያ አገልጋይ፣ ጌታዬ ቶሎ አይመጣም፤ ይዘገያል፤ ብሎ ቢያስብና ወንድና ሴት አገልጋዮችን ቢደበድብ፣ ደግሞም እንዳሻው መብላት፣ መጠጣትና መስከር ቢጀምር፣ 46የዚያ አገልጋይ ጌታ ባላሰበው ቀንና ባልጠረጠረው ሰዓት ይመጣበታል፤ ስለዚህ ይቈራርጠዋል፤ ዕድል ፈንታውንም ከማያምኑ ጋር ያደርጋል።

47“የጌታውን ፍላጎት እያወቀ የማይዘጋጅና ፈቃዱን የማያደርግ አገልጋይ እርሱ ክፉኛ ይገረፋል፤ 48ነገር ግን ይህን ሳያውቅ ቀርቶ መገረፍ የሚገባውን ያህል ያደረገ አገልጋይ በጥቂቱ ይገረፋል። ብዙ ከተሰጠው ሁሉ ብዙ ይፈለግበታል፤ ብዙ ዐደራ ከተቀበለም ብዙ ይጠበቅበታል።

ሰላም ሳይሆን መለያየት

12፥51-53 ተጓ ምብ – ማቴ 10፥34-36

49“እኔ የመጣሁት በምድር ላይ እሳት ለመለኰስ ነው፤ አሁኑኑ ቢቀጣጠል ምንኛ ደስ ባለኝ! 50ነገር ግን የምጠመቀው ጥምቀት አለኝ፤ እስኪፈጸምም ድረስ እንዴት ተጨንቄአለሁ? 51በምድር ላይ ሰላምን ለማምጣት የመጣሁ ይመስላችኋል? አይደለም፤ እላችኋለሁ፤ እኔ የመጣሁት ለመለያየት ነው። 52ከአሁን ጀምሮ እርስ በርስ የተለያዩ በአንድ ቤተ ሰብ ውስጥ አምስት ሰዎች ይኖራሉ፤ ሁለቱ በሦስቱ ላይ፣ ሦስቱም በሁለቱ ላይ ተነሥተው ይለያያሉ። 53አባት በወንድ ልጁ ላይ፣ ወንድ ልጅም በአባቱ ላይ፣ እናት በሴት ልጇ ላይ፣ ሴት ልጅም በእናቷ ላይ፣ ዐማት በምራቷ ላይ፣ ምራትም በዐማቷ ላይ ተነሥተው ይለያያሉ።”

ዘመናትን መመርመር

54ደግሞም ለሕዝቡ እንዲህ አለ፤ “ደመና በምዕራብ በኩል ሲወጣ ስታዩ ወዲያው፣ ዝናብ ሊመጣ ነው ትላላችሁ፤ እንደዚያም ይሆናል፤ 55የደቡብ ነፋስም ከደቡብ በኩል ሲነፍስ፣ ቀኑ ሞቃት ይሆናል ትላላችሁ፤ እንደዚያም ይሆናል። 56እናንት ግብዞች፤ የምድሩንና የሰማዩን መልክ መመርመር ታውቁበታላችሁ፤ ታዲያ ይህን የአሁኑን ዘመን መመርመር እንዴት ተሳናችሁ?

57“ታዲያ ራሳችሁ ትክክለኛ የሆነውን ነገር ለምን አትፈርዱም? 58ከባላጋራህ ጋር ወደ ዳኛ ፊት ለመቅረብ ስትሄድ፣ ገና በመንገድ ላይ ሳለህ ለመታረቅ ጥረት አድርግ፤ አለዚያ ጐትቶ ወደ ዳኛው ይወስድሃል፤ ዳኛውም ለመኰንኑ አሳልፎ ይሰጥሃል፤ መኰንኑም ወደ ወህኒ ይጥልሃል። 59እልሃለሁ፤ የመጨረሻዋን ሳንቲም12፥59 ግሪኩ ሌፕቶን ይላል። እስክትከፍል ድረስ ከዚያ አትወጣም።”

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

लूका 12:1-59

चेतउनी अऊ उत्साह

(मत्ती 10:26-27)

1इही दौरान हजारों मनखेमन के भीड़ लग गीस अऊ ओमन एक-दूसर ऊपर गिरे पड़त रिहिन, त यीसू ह पहिली अपन चेलामन ला कहे के सुरू करिस, “फरीसीमन के खमीर ले सचेत रहव, मतलब कि ओमन के ढोंगीपन ले सचेत रहव। 2कुछू घलो बात ढंके नइं ए, जऊन ला खोले नइं जाही या कुछू भी बात छिपे नइं ए, जऊन ला बताय नइं जाही। 3एकरसेति, जऊन बात तुमन अंधियार म कहे हवव, ओह दिन के अंजोर म सुने जाही, अऊ जऊन बात तुमन बंद कोठरी म मनखेमन के कान म चुपेचाप कहे हवय, ओला घर के छानी ऊपर ले खुले-आम बताय जाही।

4मोर संगवारीमन, मेंह तुमन ला कहत हंव कि ओमन ले झन डरव, जऊन मन देहें ला घात करथें अऊ ओकर बाद ओमन अऊ कुछू नइं कर सकंय। 5पर मेंह तुमन ला बतावत हंव कि तुमन ला काकर ले डरना चाही। ओकर ले डरव, जेकर करा तुमन ला मारे के बाद नरक म डारे के सामरथ हवय। हव, मेंह तुमन ला कहत हंव, ओकरेच ले डरव। 6पांच ठन गौरइया चिरई कतेक म बिकथे? दू पईसा ले जादा म नइं बिकय। तभो ले परमेसर ह ओम ले एको ठन ला नइं भूलय। 7अऊ त अऊ तुम्‍हर मुड़ के जम्मो चुंदीमन गने गे हवंय। झन डरव; तुमन गौरइया चिरईमन ले जादा कीमत के अव।

8मेंह तुमन ला कहत हंव कि जऊन ह मोला मनखेमन के आघू म मान लेथे, ओला मनखे के बेटा घलो परमेसर के स्वरगदूतमन के आघू म मान लिही। 9पर जऊन ह मोला मनखेमन के आघू म इनकार करथे, ओला मनखे के बेटा घलो परमेसर के स्वरगदूतमन के आघू म इनकार करही। 10अऊ जऊन ह मनखे के बेटा के बिरोध म कोनो बात कहिथे, त ओला माफ करे जाही, पर जऊन ह पबितर आतमा के बिरोध म निन्दा करथे, ओला माफ करे नइं जावय।

11जब मनखेमन तुमन ला सभा घर, सासन करइया अऊ अधिकारीमन के आघू म लानथें, त ए बात के चिंता झन करव कि तुमन अपन बचाव कइसने करहू या ओमन के आघू म का कहिहू, 12काबरकि पबितर आतमा ह ओहीच बेरा तुमन ला ए बात ला सीखा दिही कि तुमन ला का कहना चाही।”

एक मुरुख धनवान मनखे के पटं‍तर

13भीड़ म ले एक मनखे ह यीसू ला कहिस, “हे गुरू, मोर भाई ले कह कि ओह मोर संग ओ संपत्ति के बंटवारा करय, जऊन ला हमर ददा हमर बर छोंड़ गे हवय।”

14यीसू ह ओला कहिस, “हे मनखे, कोन ह मोला तुम्‍हर नियायधीस या तुम्‍हर बीच म संपत्ति के बंटवारा करइया ठहराईस?” 15तब ओह ओमन ला कहिस, “सचेत रहव! अपन-आप ला जम्मो किसम के लालच ले दूर रखव; काबरकि मनखे के जिनगी ह ए बात ले नइं बनय कि ओकर करा कतेक जादा संपत्ति हवय।”

16तब यीसू ह ओमन ला ए पटं‍तर कहिस, “एक धनवान मनखे के खेत म बहुंत फसल होईस। 17ओह अपन मन म सोचिस, ‘अब मेंह का करंव? मोर करा मोर फसल ला रखे के जगह नइं ए।’ 18ओह कहिस, ‘मेंह अइसने करहूं – मेंह अपन कोठीमन ला टोरके ओकर ले बड़े-बड़े कोठी बनाहूं, अऊ उहां मेंह अपन जम्मो अनाज अऊ दूसर माल-मत्ता ला रखहूं।’ 19तब में अपन-आप ले कहिहूं, ‘तोर करा बहुंत संपत्ति हवय, जऊन ह बहुंते साल तक चलही। अपन जिनगी के चिंता झन कर; खा, पी अऊ खुसी मना।’

20पर परमेसर ह ओला कहिस, ‘हे मुरुख मनखे! इहीच रतिहा तोर परान ला ले लिये जाही; तब ए जम्मो चीज काकर होही, जऊन ला तेंह अपन बर रखे हवस।’

21अइसनेच हर एक ओ मनखे के संग होही, जऊन ह अपन बर धन संकेलथे, पर परमेसर के नजर म धनवान नो हय।”

चिंता झन करव

(मत्ती 6:25-34)

22तब यीसू ह अपन चेलामन ला कहिस, “एकरसेति मेंह तुमन ला कहत हंव, अपन जिनगी के बारे म चिंता झन करव कि तुमन का खाहू, या अपन देहें के बारे म चिंता झन करव कि तुमन का पहिरहू। 23जिनगी ह खाना ले जादा महत्‍व के अय, अऊ देहें ह ओन्ढा ले जादा महत्‍व रखथे। 24कऊवां चिरईमन के बारे सोचव: ओमन न कुछू बोवंय अऊ न लुवंय; ओमन करा न भंडार-घर हवय न ही कोठार; तभो ले परमेसर ओमन ला खवाथे। तुमन तो चिरईमन ले बढ़ के अव। 25तुमन म अइसने कोनो हवय, जऊन ह चिंता करे के दुवारा अपन जिनगी के एक घरी घलो बढ़ा सकथे? 26जब तुमन ए बहुंत छोटे चीज ला नइं कर सकव, त तुमन आने बड़े चीजमन के बारे म चिंता काबर करथव?

27सोचव कि जंगली फूलमन कइसने बाढ़थें; ओमन न मिहनत करंय अऊ न ही अपन बर कपड़ा बनावंय। पर मेंह तुमन ला बतावत हंव, अऊ त अऊ सुलेमान सहीं धनी राजा घलो एमन ले काकरो सहीं सुघर कपड़ा नइं पहिरे रिहिस। 28जब परमेसर ह भुइयां के कांदी ला अइसने कपड़ा पहिराथे, जऊन ह आज इहां हवय अऊ कल आगी म झोंके जाही, त हे अल्‍प बिसवासीमन, का ओह तुमन ला अऊ जादा कपड़ा नइं पहिराही। 29अऊ एकर धियान म झन रहव कि तुमन का खाहू या का पीहू; एकर चिंता झन करव। 30काबरकि ए संसार म परमेसर ऊपर बिसवास नइं करइयामन ए जम्मो चीज के खोज म रहिथें, अऊ तुम्‍हर ददा परमेसर ह जानथे कि तुमन ला ए चीजमन के जरूरत हवय। 31परमेसर के राज के खोज म रहव, त संग म ए चीजमन घलो तुमन ला ओह दिही।

32हे छोटे झुंड! झन डर, काबरकि तोर ददा परमेसर ह तोला राज देके खुस हवय। 33अपन संपत्ति ला बेंच अऊ गरीबमन ला दे। अपन बर अइसने बटुवा बनावव, जऊन ह जुन्ना नइं होवय, याने स्‍वरग म अपन धन जमा करव, जऊन ह कभू नइं घटय; जेकर लकठा म चोर नइं आ सकय अऊ जऊन ला कीरा घलो नइं खा सकय। 34काबरकि जिहां तोर धन हवय, उहां तोर मन घलो लगे रहिही।”

सचेत सेवक

35“तुमन सेवा करे बर हमेसा तियार रहव अऊ अपन दीया ला बारे रखव; 36ओ सेवकमन सहीं, जऊन मन अपन मालिक के एक बिहाव भोज ले लहुंटे के बाट जोहत हवंय, ताकि जब ओह आवय अऊ कपाट ला खटखटावय, त ओमन तुरते ओकर बर कपाट ला खोल सकंय। 37ओ सेवकमन बर एह खुसी के बात होही, जब ओमन के मालिक लहुंटके आथे, त ओमन ला जागत पाथे। मेंह तुमन ला सच कहथंव – ओह खुदे सेवा करे बर सेवक के कपड़ा पहिरही; ओह ओमन ला खाना खवाय बर बईठाही अऊ आके ओमन के सेवा करही। 38ओ सेवकमन बर एह बने बात होही, यदि ओमन के मालिक रतिहा के दूसर या तीसरा पहर म आवय अऊ ओमन ला सचेत पावय। 39पर तुमन ए बात ला जान लेवव: यदि घर के मालिक ए जानतिस कि चोर ह कतेक बेरा आही, त ओह अपन घर ला चोरी होय बर नइं छोंड़ देतिस। 40तुमन घलो हमेसा तियार रहव, काबरकि मनखे के बेटा ह अइसने बेरा म आ जाही, जब तुमन ओकर आय के आसा नइं करत होहू।”

41पतरस ह पुछिस, “हे परभू, ए पटं‍तर ला का तेंह हमर बर कहत हवस या फेर जम्मो झन बर?”

42परभू ह जबाब देके कहिस, “ओ बिसवासी अऊ बुद्धिमान सेवक कोन ए, जऊन ला ओकर मालिक ए जिम्मेदारी देथे कि ओह घर ला चलावय अऊ आने सेवकमन ला सही समय म ओमन के भाग के खाना देवय। 43एह ओ सेवक बर खुसी के बात होही कि जब ओकर मालिक ह आथे, त ओला अइसने करत पाथे। 44मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि मालिक ह ओ सेवक ला अपन जम्मो संपत्ति के जिम्मेदारी दे दिही। 45पर यदि ओ सेवक ह अपन मन म ए कहय, ‘मोर मालिक ह आय म अब्‍बड़ देरी करत हवय।’ अऊ अइसने सोचके ओह आने सेवक अऊ सेविका मन ला मारन-पीटन लगय, अऊ खाय अऊ पीये लगे अऊ मतवाल हो जावय, 46तब ओ सेवक के मालिक ह एक अइसने दिन म आ जाही, जब ओह ओकर आय के आसा नइं करत होही अऊ ओकर आय के बेरा ला घलो नइं जानत होही। तब मालिक ह ओला कठोर सजा दिही अऊ ओला अबिसवासीमन के संग म रखही।

47ओ सेवक जऊन ह अपन मालिक के ईछा ला जानथे, पर तियार नइं रहय या जऊन बात ला ओकर मालिक चाहथे ओला नइं करय, त ओ सेवक ह बहुंत मार खाही। 48पर जऊन सेवक ह अपन मालिक के ईछा ला नइं जानत हवय, अऊ बिगर जाने ओह गलत काम करथे, त ओह कम मार खाही। जऊन ला बहुंत दिये गे हवय, ओकर ले बहुंत मांगे जाही, अऊ जऊन ला बहुंत सऊंपे गे हवय, ओकर ले बहुंत लिये जाही।”

फूट के कारन

(मत्ती 10:34-36)

49“मेंह धरती म आगी लगाय बर आय हवंव, अऊ मेंह ए चाहत हंव कि बने होतिस कि एम पहिली ले आगी लगे होतिस। 50मोला एक बतिसमा म ले होके जाना हवय, अऊ जब तक ओह पूरा नइं हो जावय, मेंह बहुंत बियाकुल हवंव। 51का तुमन ए सोचत हव कि मेंह धरती म सांति लाने बर आय हवंव। नइं, मेंह तुमन ला कहत हंव कि मेंह फूट डारे बर आय हवंव। 52अब ले जब एक परिवार म पांच झन होहीं, त ओमन म फूट पड़ही; तीन झन ह दू झन के बिरोध म अऊ दू झन ह तीन झन के बिरोध म रहिहीं। 53ददा ह अपन बेटा के बिरोध म होही, त बेटा ह अपन ददा के बिरोध म। दाई ह अपन बेटी के बिरोध म होही, त बेटी ह अपन दाई के बिरोध म; अऊ सास ह अपन बहू के बिरोध म होही, त बहू ह अपन सास के बिरोध म।”

समय के पहिचान करई

(मत्ती 16:2-3)

54यीसू ह मनखेमन के भीड़ ला घलो कहिस, “जब तुमन पछिम दिग म एक बादर उठत देखथव, त तुरते तुमन कहिथव कि बारिस होवइया हवय; अऊ अइसनेच होथे। 55अऊ जब दक्खिन दिग के हवा चलथे, त तुमन कहिथव कि गरमी बढ़इया हवय, अऊ अइसनेच होथे। 56हे ढोंगी मनखेमन! धरती अऊ अकास ला तुमन देखके जान लेथव कि एकर का मतलब होथे; तब तुमन ए समय के मतलब ला काबर नइं जानव?

57तुमन खुदे काबर फैसला नइं कर लेवव कि का सही ए? 58यदि कोनो मनखे तुम्‍हर बिरोध म नालिस करय अऊ तुमन ला कचहरी म ले जावय, त तुमन भरसक कोसिस करव कि ओकर संग डहार म ही मामला के निपटारा हो जावय; नइं तो ओह तुमन ला नियायधीस करा खींचके ले जाही, अऊ नियायधीस ह तुमन ला पुलिस ला सऊंप दिही, अऊ पुलिस ह तुमन ला जेल म डार दिही। 59मेंह तुमन ला कहत हंव कि जब तक तुमन एक-एक पईसा नइं भर दूहू, तब तक उहां ले नइं छूट सकव।”