歴代誌Ⅱ 20 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

歴代誌Ⅱ 20:1-37

20

ヨシャパテの勝利

1そののち、モアブ人とアモン人、それにメウニム人の王の率いる連合軍が、ヨシャパテとユダの民に宣戦布告しました。 2ヨシャパテに届いた情報は、「大軍が、死海の向こうのシリヤから押し寄せて来ます。もうハツァツォン・タマル、つまりエン・ゲディまで来ています」というものでした。 3あわてふためいた王は、主の助けを仰ぐよりほかないと判断し、全国民が神の前に悔い改め、断食して祈りに打ち込むよう命じました。 4人々は各地からエルサレムに集まり、心を一つにして主に助けを求めました。

5ヨシャパテは、神殿の新しい庭に集まった人々の中に立って祈りました。 6「私たちの父祖の神、主よ。天におられ、地上のすべての王国を支配しておられる神よ。あなたの測り知れない力に、だれも立ち向かうことはできません。 7私たちの神よ、あなたの民がこの地に入った時、あなたはこの地に住んでいた異教徒を追い出し、この地を永久に、あなたの友アブラハムの子孫のものとされたではありませんか。 8あなたの民はここに根を下ろし、あなたのためにこの神殿を建てました。 9戦争、疫病、ききんなどの災いに会ったなら、あなたのおられるこの神殿、つまりあなたの御前に立って祈れば、祈りは聞かれ、あなたは私たちを救ってくださると信じています。

10今、アモンとモアブ、セイル山の人々がやっていることをごらんください。あなたは、先祖がエジプトを出て来た時、彼らの国に侵入するのをお許しになりませんでした。それで私たちは、彼らの国を避けて通り、彼らを滅ぼさないでおいたのです。 11ところが今、彼らは何をしようとしているでしょうか。あなたが私たちに下さった地から、私たちを追い出そうとして攻め寄せて来るのです。 12神よ、彼らの来襲をとどめてください。私たちには、このような大軍から身を守るすべなどありません。どうしたらよいのか見当もつきません。ただあなたに助けを求めるばかりです。」

13ユダの各地から集まった人々は、妻子や幼児たちといっしょに主の前に立っていました。

14その時、主の霊が、そこに立っていたレビ人ヤハジエルに臨んだのです。彼はアサフの子孫の一人で、マタヌヤの子エイエルの子ベナヤの子ゼカリヤの子でした。 15ヤハジエルは大声で語りだしました。「ユダとエルサレムのすべての人々、またヨシャパテ王よ、よく聞きなさい! 主はこう言われます。『恐れてはならない。この大軍を見ておじけてはならない。この戦いはあなたがたの戦いではなく、わたしの戦いだ。 16明日、エルエルの荒野に通じる谷の出口で、ツィツの坂を上って来る敵と会うから、こちらから攻撃をしかけよ。 17あなたがたは戦わなくてよい。持ち場を守り、黙って、わたしのすばらしい救いを見よ。ユダとエルサレムの人々よ、恐れたり、意気消沈したりしてはならない。わたしがついている。明日、出陣するのだ。』」

18ヨシャパテは地にひれ伏しました。ユダのすべての民とエルサレムの住民も、同じように主を礼拝しました。 19それから、ケハテ氏族とコラ氏族のレビ人が立ち上がり、力強く高らかに主を賛美しました。

20翌朝早く、ユダ軍はテコアの荒野へ兵を進めました。途中、ヨシャパテは立ち止まって指示を与えました。「私の言うことを聞き、主を信じなさい。そうすれば、勝利は間違いない! 預言者のことばを信じなさい。そうすれば、すべてはうまくいく。」

21それから民の指導者と相談して、聖歌隊を編成しました。聖歌隊は聖なる衣服をまとい、行軍の先頭を進みながら、「主のいつくしみは、とこしえまで」と歌って主をたたえ、主に感謝をささげました。 22彼らが賛美をし始めた時、主は、アモン人、モアブ人、セイル山の人々の間で同士討ちを引き起こさせました。それで彼らは、互いに殺し合うことになったのです。 23まずアモン人とモアブ人がセイル山から来た軍を襲い、一人残らず殺しました。それが終わると、今度はアモン人とモアブ人がぶつかり合ったのです。 24それで、ユダ軍が荒野を見下ろす物見の塔に着いた時には、見渡す限り、あたり一面に死体が転がっていました。逃げ延びた敵兵は一人もいませんでした。 25ヨシャパテ王とユダの民は、遺体から金、武具、宝石などをはぎ取りました。その数があまりにも多かったので、全部運ぶのに三日もかかるほどでした。 26四日目に彼らは、今でもベラカ(祝福)の谷と呼ばれている谷に集まり、心から主をたたえました。 27それから王を先頭に、彼らは意気揚々とエルサレムに凱旋しました。主が信じられないような方法で救い出してくれたので、彼らの心は喜びでいっぱいでした。 28彼らは琴、竪琴、ラッパの奏楽とともにエルサレムに入城し、神殿に入りました。 29そして以前にもあったように、近隣の国々は、主がイスラエルの敵と戦ったと聞いて、神への恐れに包まれました。 30こうして、神が王に安息を与えたので、ヨシャパテの王国は安泰を保ちました。

ヨシャパテの治世の終焉

31ヨシャパテ王の生涯を略述すると、三十五歳でユダの王となり、二十五年間エルサレムで統治。母はシルヒの娘のアズバ。 32父アサ王のように主の前に良い王で、いつも主に従おうとしました。 33しかし、高台にある偶像の宮を取り壊すことだけはしなかったので、人々に、父祖の神に従うことを決心させるまでには至りませんでした。

34ヨシャパテ王のその他の業績は、『イスラエル諸王の年代記』に挿入されている、ハナニの子エフーの書いた言行録に記されています。

35しかし王は、晩年になって、悪名高いイスラエルの王アハズヤと同盟を結びました。 36彼らは、タルシシュ行きの船団をエツヨン・ゲベルでつくりました。 37その時、マレシャ出身のドダワの子エリエゼルがヨシャパテに対して預言し、「あなたがアハズヤと同盟を結んだので、主はあなたの計画を壊します」と言いました。それで、船は難破し、タルシシュへ行くことはできませんでした。

Hindi Contemporary Version

2 इतिहास 20:1-37

अम्मोन तथा मोआब की पराजय

1इसके बाद मोआबी, अम्मोनी और मिऊनी यहोशाफ़ात से युद्ध के लिए तैयार हुए.

2यहोशाफ़ात को बताया गया सागर पार एदोम से बड़ी भारी भीड़ आप पर हमला करने आ रही है. इस समय वे हज़ज़ोन-तामार जो एन-गेदी में है, 3यहोशाफ़ात डर गया. उसने अपना ध्यान याहवेह की इच्छा जानने की ओर लगा दिया. उसने सारे यहूदिया में उपवास की घोषणा करवा दी. 4सारे यहूदिया ने इकट्ठा होकर याहवेह से सहायता की विनती की; यहूदिया के हर एक नगर से लोग याहवेह से सहायता की कामना करने आ गए.

5यहोशाफ़ात प्रार्थना करने याहवेह के भवन के नए आंगन में यहूदिया और येरूशलेम की सभा के सामने खड़े हुए 6यहोशाफ़ात ने विनती की,

“हे याहवेह, हमारे पूर्वजों के परमेश्वर, आप वह परमेश्वर हैं, जो स्वर्ग में रहते हैं. आपका ही शासन सारे राष्ट्रों के राज्यों पर भी है. अधिकार और सामर्थ्य आपके ही हाथों में है. इसके कारण कोई भी आपके सामने ठहर नहीं सकता. 7आपने ही इस भूमि के मूल निवासियों को अपनी प्रजा इस्राएल के सामने से दूर कर दिया और यह भूमि अपने मित्र अब्राहाम के वंशजों को दे दी. 8वे इसमें रह रहे हैं. आपकी महिमा में यह कहते हुए एक पवित्र स्थान को बनाया, 9‘यदि हम पर बुराई, तलवार या न्याय-दंड का वार हो या महामारी या अकाल आ पड़े, हम इस भवन के सामने, सच में आपके सामने आ खड़े होंगे; क्योंकि इस भवन में आपकी महिमा का वास है और अपनी विपत्ति में आपके सामने रोएंगे, आप हमारी सुनकर हमें छुटकारा प्रदान करेंगे.’

10“अब देख लीजिए, अम्मोन, मोआब के वंशज और सेईर पहाड़ के रहनेवाले, जिन पर मिस्र देश से आ रहे इस्राएलियों को आपने हमला करने से रोक दिया था, वे जिनके पास से होकर निकल गए मगर उन्हें नाश नहीं किया गया था. 11देख लीजिए, वे हमें इसका प्रतिफल यह दे रहे हैं, कि वे हमें आपकी संपत्ति से निकाल रहे हैं, जो आपने हमें मीरास के रूप में दिया है. 12हमारे परमेश्वर, क्या आप इसका फैसला न करेंगे? क्योंकि इस बड़ी भीड़ के सामने, जो हम पर हमला करने आ रही है, हम तो पूरी तरह शक्तिहीन हैं. हम नहीं जानते इस स्थिति में हमारा क्या करना सही होगा. हां, हमारी दृष्टि बस आप पर ही टिकी हुई है.”

13इस समय सारे यहूदिया राज्य, उनकी पत्नियां, शिशु और बालक भी याहवेह के सामने ठहरे हुए थे.

14तब इसी सभा में याहवेह के पवित्र आत्मा याहाज़िएल पर उतरे. याहाज़िएल ज़करयाह का, ज़करयाह बेनाइयाह का, बेनाइयाह येइएल का और येइएल आसफ के पुत्र लेवी मत्तनियाह का पुत्र था.

15याहाज़िएल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा: “यहूदिया, येरूशलेम के सभी निवासियों और महाराज यहोशाफ़ात, कृपया सुनिए: ‘आपके लिए याहवेह का संदेश यह है इस बड़ी भीड़ को देखकर तुम न तो डरना और न घबराना, क्योंकि यह युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है! 16कल हम उन पर हमला करेंगे. यह देखना कि वे लोग ज़िज़ के चढ़ाव से हमारी ओर बढ़ेंगे. उनसे तुम्हारा सामना येरुएल के बंजर भूमि के सामने की ओर की घाटी के अंत में होगा. 17यह ज़रूरी ही नहीं कि तुम इस युद्ध में जाओ. तुम वहां सिर्फ स्थिर खड़े हो जाना. तब यहूदिया और येरूशलेम, तुम्हें वहां खड़े हुए अपने लिए याहवेह द्वारा की गई छुड़ौती के गवाह होना. आप न तो भयभीत हों न घबराएं. कल आप उनका सामना करने आगे बढ़िए, क्योंकि याहवेह आपके साथ हैं.’ ”

18यहोशाफ़ात ने यह सुनकर अपना सिर भूमि की ओर झुका लिया और सारा यहूदिया और येरूशलेमवासी याहवेह के सामने याहवेह की स्तुति में दंडवत हो गए. 19कोहाथ और कोराह के वंशज लेवियों ने खड़े होकर बड़ी ही ऊंची आवाज में याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति की.

20बड़े तड़के उठकर वे तकोआ के बंजर भूमि को चले गए. वहां पहुंचकर यहोशाफ़ात ने खड़े हो उनसे कहा, यहूदिया और येरूशलेम के वासियों, सुनो! याहवेह, अपने परमेश्वर में विश्वास रखो तो, तुम बने रहोगे. याहवेह के भविष्यवक्ताओं का भरोसा करो तो तुम सफल हो जाओगे. 21जब राजा लोगों से सलाह-मशवरा कर चुका, उसने याहवेह के स्तुति के लिए गायक चुने. इनका काम था पवित्र वस्त्र पहनकर सेना के आगे-आगे चलते हुए इन शब्दों में याहवेह की स्तुति करना,

“याहवेह का धन्यवाद करो-वे भले हैं;

उनकी करुणा सदा की है.”

22जब उन्होंने याहवेह की स्तुति में गाना शुरू किया, याहवेह ने यहूदिया के विरुद्ध उठे अम्मोनिया, मोआबियों और सेईर पर्वत के वासियों पर वार करने के लिए सैनिक घात लगाकर बैठा दिए. इस प्रकार शत्रुओं के पैर उखड़ गए. 23तब अम्मोन और मोआब के वंशज सेईर पर्वत वासियों के विरुद्ध उठ खड़े हुए. और उनको पूरी तरह से मार दिया. जब वे सेईरवासियों को मार चुके, वे एक दूसरे ही को मारने लगे.

24जब यहूदियावासी बंजर भूमि की चौकी पर पहुंचे, जब उन्होंने भीड़ की दिशा में नज़रें की, वहां हर जगह शव ही शव पड़े हुए थे-कोई भी जीवित न बचा था. 25जब यहोशाफ़ात और उसकी सेना लूट का सामान इकट्ठा करने आई, उन्हें वहां भारी मात्रा में वस्तुएं, वस्त्र और कीमती वस्तुएं मिलीं. ये सभी उन्होंने अपने लिए रख लिया. यह सब मात्रा में इतना ज्यादा था, कि यह सब ले जाना उनके लिए संभव न हुआ. लूट की सामग्री इकट्ठा करते-करते उन्हें तीन दिन लग गए—इतनी ज्यादा थी लूट की सामग्री. 26चौथे दिन वे बेराकाह की घाटी में इकट्ठा हुए. वहां उन्होंने याहवेह की वंदना की इसलिये उन्होंने उस घाटी का नाम ही बेराकाह20:26 बेराकाह अर्थ स्तुति की घाटी रख दिया, जो आज तक प्रचलित है.

27यहूदिया और येरूशलेम का हर एक व्यक्ति यहोशाफ़ात के साथ, जो उनके आगे-आगे चल रहा था, बड़ी ही खुशी के साथ येरूशलेम लौटा, क्योंकि याहवेह ने उन्हें शत्रुओं पर विजय दी थी. 28किन्‍नोर, नेबेल और नरसिंगों के साथ येरूशलेम में प्रवेश कर याहवेह के भवन को गए.

29जब सभी राष्ट्रों ने यह सुना कि इस्राएल के शत्रुओं से युद्ध याहवेह ने किया था, उनमें परमेश्वर का भय छा गया. 30यहोशाफ़ात के शासन में हर जगह शांति थी, क्योंकि उसके परमेश्वर ने उसे हर तरफ से शांति दी थी.

यहोशाफ़ात के शासन का समापन

31यहोशाफ़ात यहूदिया राज्य पर शासन करता रहा. जब उसने शासन शुरू किया, उसकी उम्र पैंतीस साल की थी. येरूशलेम पर वह पच्चीस साल राज्य करता रहा. उसकी माता का नाम अत्सूबा था, जो शिल्ही की पुत्री थी. 32वह अपने पिता आसा की नीतियों का पालन करता रहा, इनसे वह कभी दूर न हुआ. वह वही करता रहा, जो याहवेह की दृष्टि में सही था. 33यह सब होने पर भी ऊंचे स्थानों की वेदियां ढाई नहीं गईं; लोगों के मन उनके पूर्वजों के परमेश्वर पर स्थिर नहीं हुए थे.

34यहोशाफ़ात के अन्य कामों का ब्यौरा, पहले से लेकर अंतिम तक का, हनानी के पुत्र येहू की पुस्तक इस्राएल के राजा में दिया गया है.

35इसके कुछ समय बाद यहूदिया के राजा यहोशाफ़ात ने इस्राएल के राजा अहज़्याह से मित्रता कर ली. अहज़्याह दुष्ट व्यक्ति था. 36इस मैत्री के कारण दोनों में तरशीश से व्यापार के लिए जहाज़ बनाने की सहमति हो गई. जहाज़ एज़िओन-गेबेर में बनता था. 37इस पर मारेशाहवासी दोदावाहू के पुत्र एलिएज़र ने यहोशाफ़ात के विरोध में यह भविष्यवाणी की, “अहज़्याह से तुम्हारी मित्रता के कारण याहवेह ने तुम्हारे कामों को नाश कर दिया है.” फलस्वरूप जहाज़ टूट गए और तरशीश यात्रा रुक गई.