士師記 20 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

士師記 20:1-48

20

ベミヤミン族への報復

1-2そこで全イスラエルから、ミツパに指導者たちと四十万の兵が向かい、主の前に一つの心になって集結したのです。ダンからベエル・シェバに至る全国各地はもとより、ヨルダン川の東側のギルアデからも、ぞくぞくと集まって来ました。 3イスラエル軍がミツパに集結したという知らせは、まもなくベニヤミン領内に伝わりました。イスラエルの指導者たちは殺された女の夫を呼んで、真相を話すよう求めました。 4「私たちは、ベニヤミン領内のギブアに行き、その夜ある家に泊まりました。 5ところが夜中に、ギブアの者どもが家を取り囲み、私を殺そうとしたのです。一味は私のそばめに暴行を加え、無残にも殺してしまいました。 6私はそばめの死体を十二に切り分け、イスラエルの全地に送りました。それというのも、彼らの仕打ちがあまりにむごかったからです。 7さあ、皆さん、どうか協議してください。」

8-10彼らは口をそろえて言いました。「ギブアの村に報復するまでは、一人たりとも家には帰らない。全軍の十分の一をくじで選び分け、食糧補給に当たらせよう。残りは結集して、こんな恥ずべきまねをしたギブアを滅ぼそう。」 11イスラエル全国民は、そのために一丸となりました。

12さっそくベニヤミン族に使者を立て、要求を突きつけました。「おまえたちは、あの忌まわしい事件を知っているのか。 13あの悪事を働いた者たちを引き渡せ。彼らを処刑して、イスラエルから悪を除き去るのだ。」

しかし、ベニヤミン族は聞こうとはしませんでした。 14-15それどころか、二万六千の兵をギブアに集め、地元ギブアから募った七百人と合流し、イスラエル軍に対抗する構えを見せたのです。 16ベニヤミン軍には、左ききの石投げの名手が七百人いました。その腕まえは大したもので、一本の毛をねらっても的をはずさないほどでした。 17一方、ベニヤミンを除くイスラエル軍は、総勢四十万人に上りました。

18戦いを前にして、まずイスラエル軍は、ベテルで神に伺いを立てました。「ベニヤミンと一戦交えるのに、どの部族が先陣を切るべきでしょうか。」

すると主は、「ユダが先頭に立ちなさい」と答えました。

19-20そこで全軍は、翌朝早く、ベニヤミンを攻撃するためにギブアへ向かいました。 21しかし、ギブアを守っていたベニヤミン軍が不意に襲いかかり、その日のうちに二万二千人のイスラエル兵を倒したのです。 22-24イスラエル軍は主の前で夕方まで泣き続け、再び伺いを立てました。「私たちは、同胞ベニヤミンとまだ戦うべきでしょうか。」

「戦いなさい」という主の答えが返ってきました。イスラエル軍は奮い立ち、翌日も、同じ場所で戦おうと出陣しました。 25ところがこの日も、剣の使い手一万八千人を失うはめになったのです。 26そこで、イスラエル全軍はベテルに上り、主の前に泣き伏して夕方まで断食し、焼き尽くすいけにえと和解のいけにえをささげました。 27-28当時、神の契約の箱はベテルにあり、アロンの孫で、エルアザルの子ピネハスが祭司でした。

イスラエルの民は主に尋ねました。「また出陣して、兄弟ベニヤミンと戦うべきでしょうか。それとも、やめるべきでしょうか。」

すると主は、「行きなさい。明日、あなたがたはベニヤミンを打ち破ることができる」と答えました。

29そこで、イスラエル軍はギブア周辺に伏兵を潜ませ、 30三日目に攻撃に移り、いつものような陣形をとりました。 31ベニヤミン軍が迎え撃とうと町から出てくると、退却すると見せかけて町からおびき出したのです。ベニヤミン軍は前回同様、ベテルとギブアを結ぶ路上でイスラエルを撃破し、たちまち三十人を倒しました。 32ベニヤミン軍は、「また勝ったぞ!」と雄たけびを上げましたが、実はそれがイスラエル軍の作戦だったのです。初めからわざと逃げて、ベニヤミン軍を町からおびき出そうと考えていたのでした。 33本隊はバアル・タマルまで来た時、一転して反撃に移り、ゲバの西に隠れていた伏兵一万も飛び出しました。 34伏兵は、まだ危険に気づいていないベニヤミン軍のしんがりを襲いました。 35-39主が助けを与えたので、イスラエル軍はベニヤミン軍を打ち破ることができたのです。その日、ベニヤミン軍は二万五、一〇〇人を失い、生き残った兵士は数えるほどでした。

実際ベニヤミン軍は、イスラエル軍が彼らの前から退却したことで、前回同様の大勝利を確信しました。しかしその時、伏兵がギブアに突入し、村にいた全員を殺し、火を放ちました。その煙を合図に、イスラエル軍は反撃に転じ、いっせいに攻撃を開始したのです。 40-41ベニヤミン軍はうしろを振り返り、町が炎に包まれているのを見て恐怖に襲われました。危険が身に迫るのを感じ、 42彼らは荒野へ逃げようとしましたが、イスラエル軍は追跡し、伏兵の一隊も駆けつけて、背後からベニヤミン軍を打ちました。 43そして、包囲しながらギブアの東方へと追いつめ、彼らの大半を殺しました。 44その戦いで、一万八千人のベニヤミン軍兵士が死にました。 45生き残った兵は荒野へ逃げ、リモンの岩に向かいましたが、その途中で五千人が殺され、さらにギデオム付近で二千人が倒されました。 46-47こうしてベニヤミン族は、一日で二万五千の勇士を失ったのです。リモンの岩へ逃げ延びたのはたった六百人で、四か月間そこにこもっていました。 48その後イスラエル軍は引き返し、ベニヤミンに属するものを男も女も子どもも家畜も打ち、町々村々を片っぱしから焼き払いました。

Hindi Contemporary Version

प्रशासक 20:1-48

दोषी को दंड देने का निर्णय

1फलस्वरूप दान से बेअरशेबा तक सारे इस्राएली, जिनमें गिलआदवासी भी शामिल थे, बाहर निकल आए. उन्होंने एकजुट होकर मिज़पाह में याहवेह के सामने सभा रखी. 2लोगों के सभी प्रमुखों और यहां तक के सभी गोत्रों के प्रमुखों ने, जो तलवार चलाने में निपुण चार लाख पैदल सैनिक थे, परमेश्वर के लोगों की इस सभा में एक प्रण लिया. 3यहां बिन्यामिन वंशजों ने यह सुन लिया था कि इस्राएल वंशज मिज़पाह में इकट्ठा हुए हैं. इस्राएलियों ने उस लेवी से पूछा, “हमें बताओ, यह कुकर्म हुआ कैसे?”

4जिस स्त्री की हत्या कर दी गई थी, उसका पति, जो लेवी था, कहने लगा, “यात्रा करते हुए में अपनी उप-पत्नी के साथ गिबियाह पहुंचा, जो बिन्यामिन प्रदेश में है, जहां हमें रात बितानी ज़रूरी हो गई थी. 5मगर गिबियाह के पुरुष मेरे विरुद्ध चढ़ आए और उन्होंने रात में मेरे कारण उस घर को घेर लिया. वे तो मेरी हत्या करना चाह रहे थे, किंतु उन्होंने मेरी उप-पत्नी के साथ बलात्कार किया, फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई. 6मैंने अपनी उप-पत्नी के शव को लिया, उसके टुकड़े किए और उसके इन टुकड़ों को इस्राएल के सभी प्रदेशों में भेज दिया, क्योंकि उन्होंने इस्राएल में यह कामुक, शर्मनाक काम किया है. 7इस्राएल के सभी वंशजों, इस विषय में अपनी राय और सलाह दीजिए.”

8सारी प्रजा एकजुट हो गई. उन्होंने निश्चय किया, “हममें से कोई भी न तो अपने तंबू को और न ही अपने घर को लौटेगा. 9गिबियाह के संबंध में हमारा निर्णय है कि पासा फेंकने के द्वारा हम मालूम करेंगे कि गिबियाह पर आक्रमण के लिए कौन जाएगा. 10हम इस्राएल के हर एक गोत्र से सौ में से दस व्यक्ति अपने साथ ले लेंगे, अर्थात् एक हज़ार में से एक सौ, अर्थात् दस हज़ार में से एक हज़ार, कि वे सेना के खाने-पीने की व्यवस्था करें. जब वे सेना बिन्यामिन प्रदेश के गेबा में पहुंचे, वे उन्हें इस्राएल देश में किए गए सभी शर्मनाक कामों के लिए दंड दें.” 11इस प्रकार इस्राएल के सारे योद्धाओं ने एकजुट होकर इस नगर को घेर लिया.

12तब इस्राएल के गोत्रों ने सारे बिन्यामिन गोत्र के लिए अपने प्रतिनिधियों द्वारा यह संदेश भेजा, “तुम्हारे बीच यह कैसा दुष्टता भरा काम किया गया है? 13गिबियाह में रह रहे उन निकम्मे व्यक्तियों को हमें सौंप दो, कि हम उन्हें मृत्यु दंड दें, और इस्राएल में हुई इस दुष्टता को मिटा डाले.”

मगर बिन्यामिन वंशजों ने अपने इस्राएली भाइयों की एक न सुनी. 14बिन्यामिन वंशज अपने-अपने नगरों से आकर गिबियाह में इकट्‍ठे हुए कि वे इस्राएल वंशजों से युद्ध करें. 15उस दिन विभिन्‍न नगरों से बिन्यामिन के तलवार चलाने में निपुण जो योद्धा इकट्‍ठे हुए, उनकी गिनती छब्बीस हज़ार थी. इनके अलावा गिबियाह नगर के ही सात सौ योद्धा इनमें शामिल हो गए. 16इनमें सात सौ शूर योद्धा ऐसे थे, जो अपने बाएं हाथ के इस्तेमाल के प्रवीण थे. इनमें से हर व्यक्ति एक बाल तक पर भी अचूक निशाना साध सकता था.

17दूसरी ओर बिन्यामिन वंशजों के अलावा इस्राएली सेना में चार लाख कुशल शूर योद्धा थे.

18सारी इस्राएली सेना बेथेल गई कि परमेश्वर की इच्छा जान सके. उन्होंने परमेश्वर से पूछा, “बिन्यामिन वंशजों से युद्ध करने सबसे पहले हमारी ओर से कौन जाएगा?”

याहवेह ने उत्तर दिया, “सबसे पहले यहूदाह का जाना सही होगा.”

19इसलिये इस्राएल वंशजों ने बड़े तड़के जाकर गिबियाह के विरुद्ध पड़ाव डाला. 20इस्राएल वंशज बिन्यामिन के विरुद्ध युद्ध के लिए निकले. उन्होंने गिबियाह के विरुद्ध युद्ध के लिए मोर्चा बांध दिया. 21बिन्यामिन के सैनिक गिबियाह नगर से बाहर आए और इस्राएल के बाईस हज़ार योद्धाओं को मार गिराया. 22किंतु इस्राएल के सैनिकों ने अपना मनोबल बनाए रखते हुए दूसरे दिन भी उसी स्थान पर मोर्चा लिया, जहां पहले दिन लिया था. 23इस्राएल वंशज जाकर शाम तक याहवेह के सामने रोते रहे. उन्होंने याहवेह से पूछा, “क्या हम अपने बंधु बिन्यामिन वंशजों पर दोबारा हमला करें?”

याहवेह ने उन्हें उत्तर दिया, “जाकर उन पर हमला करो.”

24दूसरे दिन इस्राएल वंशजों ने बिन्यामिन वंशजों पर हमला कर दिया. 25गिबियाह नगर से बिन्यामिन वंशजों ने बाहर जाकर इस्राएली सेना के अठारह हज़ार सैनिकों को मार गिराया. ये सभी तलवार चलाने में कुशल थे.

26इसलिये इस्राएल वंशज और सभी प्रजा के लोग बेथेल गए और वहां जाकर रोते रहे. वे सारे दिन शाम तक याहवेह के सामने भूखे रहे. वहां उन्होंने याहवेह को होमबलि और मेल बलि भेंट की. 27इस्राएल वंशजों ने याहवेह से प्रश्न किया. (उन दिनों परमेश्वर के वाचा का संदूक बेथेल में ही था.) 28अहरोन का पोता, एलिएज़र का पुत्र फिनिहास संदूक के सामने सेवा के लिए चुना गया था. इस्राएल वंशजों ने याहवेह से पूछा, “क्या हम अब भी अपने बंधु बिन्यामिन पर हमला करने जाएं या यह विचार त्याग दें?”

याहवेह ने उत्तर दिया, “जाओ, कल मैं उन्हें तुम्हारे हाथों में सौंप दूंगा.”

29फिर इस्राएल ने गिबियाह नगर के आस-पास सैनिकों को घात लगाने के लिए बैठा दिया. 30तीसरे दिन इस्राएल वंशजों ने बिन्यामिन वंशजों पर हमला करने के लिए गिबियाह के विरुद्ध मोर्चा बांधा, जैसा उन्होंने इसके पहले भी किये थे. 31जब बिन्यामिन वंशज उनकी सेना पर हमला करने बाहर आए, पीछे हटती इस्राएली सेना उन्हें नगर से दूर ले जाने लगी. बिन्यामिन वंशज इस्राएली सैनिकों पर पहले जैसे ही वार करने लगे. प्रमुख मार्गों पर, जो बेथेल तथा गिबियाह को जाते थे, तथा खेतों में लगभग तीस इस्राएली सैनिक मार डालें गए. 32बिन्यामिन वंशजों का विचार था, “पहले जैसे ही वे हमारे सामने मार गिराए जा रहे हैं.” मगर इस्राएली सैनिकों ने कहा, “आओ, हम भागना शुरू करें कि उन्हें नगर से दूर मुख्य मार्गों पर ले आएं.”

33तब सभी इस्राएली सैनिक अपने-अपने स्थानों से निकलकर बाल-तामार नामक स्थान पर युद्ध में शामिल हो गए. वे भी, जो घात लगाए बैठे थे, बाहर निकल आए, वे भी जो मआरोह-गीबा में थे. 34जब सारे इस्राएल से चुने गए दस हज़ार सैनिकों ने गिबियाह पर हमला किया, युद्ध बहुत ही प्रचंड हो गया; मगर बिन्यामिन वंशजों को यह तनिक भी अहसास न था कि महाविनाश उनके पास आ चुका था. 35याहवेह ने इस्राएल के सामने बिन्यामिन को मार गिराया. उस दिन इस्राएल ने पच्चीस हज़ार एक सौ बिन्यामिनी सैनिकों को मार गिराया. ये सभी तलवार चलाने में निपुण थे. 36बिन्यामिन वंशजों को अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी.

जब इस्राएली सैनिक बिन्यामिन वंशजों से पीछे हट गये, क्योंकि वे पूरी तरह उन सैनिकों पर निर्भर थे, जो गिबियाह के विरुद्ध घात लगाए बैठे हुए थे, 37तब घात लगाए सैनिक बड़ी ही तेजी से गिबियाह नगर पर टूट पड़े. वे सारे नगर में फैल गए और पूरे नगर को तलवार से मार डाला. 38इस्राएली सैनिकों और घात लगाए सैनिकों के बीच पहले से तय किया गया संकेत यह था कि वे नगर में आग लगाकर धुएं का बहुत बड़ा बादल उठाएंगे, 39तब यह देखते ही इस्राएली सेना का प्रमुख दल को युद्ध-भूमि में लौट आना है.

बिन्यामिन सैनिकों ने लगभग तीस इस्राएली सैनिकों को मार गिराया था. उनका विचार था, “निश्चित ही पहले के युद्ध के समान ये लोग हमसे हार चुके हैं.” 40मगर जैसे ही नगर के ऊपर धुएं का खंभा उठने लगा, बिन्यामिन वंशजों ने मुड़कर देखा कि पूरा नगर धुएं में आकाश की ओर उठ रहा है. 41इस्राएली सैनिक पलट कर वार करने लगे और बिन्यामिन वंशज भयभीत हो गए, क्योंकि उन्हें साफ़ दिख रहा था कि उन पर महाविनाश आ पड़ा है. 42अब वे इस्राएली सेना को पीठ दिखाकर निर्जन प्रदेश की ओर भागने लगे; किंतु वे विनाश से बच न सके. उन्होंने, जो नगरों से निकल आए थे, उन्हें अपने बीच में मारना शुरू कर दिया. 43उनका पीछा करते हुए उन्होंने बिन्यामिन वंशजों को घेर लिया, बिना रुके गिबियाह के पास पूर्व में, खदेड़ कर उन्हें रौंद डाला. 44इस युद्ध में बिन्यामिन के अट्ठारह हज़ार सैनिक गिरे. ये सभी वीर योद्धा थे. 45बाकी पीठ दिखाकर निर्जन प्रदेश में रिम्मोन की चट्टान की ओर भागे, मगर इनमें से पांच हज़ार मुख्य मार्गों पर पकड़ लिए गए, और उन्हें गीदोम नामक स्थान पर पकड़कर उनमें से दो हज़ार का वध कर दिया गया.

46इसलिये उस दिन वध किए सैनिकों की सारी गिनती पच्चीस हज़ार हो गई. से सभी कुशल हज़ार सैनिक थे-तलवार चलाने में निपुण. 47मगर छः सौ सैनिक मुड़कर निर्जन प्रदेश में रिम्मोन की चट्टान की दिशा में भागे. वे रिम्मोन की चट्टान के निकट चार महीने तक रहते रहे. 48तब इस्राएली सेना बिन्यामिन वंशजों के नगरों की ओर बढ़ें और सभी को तलवार से वध कर दिया. सारे नगर नाश कर दिए गए, उन्होंने जो भी मिला, नगरवासी और पशुओं सभी का वध कर दिया. उन्हें जितने नगर मिलते गए, वे उनमें आग लगाते चले गए.