使徒の働き 16 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

使徒の働き 16:1-40

16

パウロ、第二回伝道旅行へ

1パウロとシラスがまず行ったのは、デルベでした。それからルステラに行き、そこでテモテという信者に会いました。母親はクリスチャンのユダヤ人、父親はギリシヤ人でした。 2テモテはルステラとイコニオムのクリスチャンたちから好感を持たれていたので、 3パウロは、ぜひ自分たちの伝道旅行に加わるように勧めました。テモテの父親がギリシヤ人であることはだれもが知っていたので、この地方のユダヤ人の手前、出発前に彼に割礼を受けさせました。 4一行は町から町を訪問して回り、エルサレムの使徒や長老たちが外国人向けに決めた事柄を伝えました。 5それで教会は、日を追って信仰もしっかりし、信者の数も増え、めざましい発展を遂げていったのです。

6一行は聖霊によってアジヤ州(小アジヤの西部沿岸地方)へ行くことを止められたので、一行はフルギヤとガラテヤ地方を通ることにしました。 7それからムシヤとの境に沿って進み、北のビテニヤ地方に行こうとすると、またも聖霊に禁じられたのです。 8そこで、ムシヤ地方を通ってトロアスに行きました。

パウロの見た幻

9その夜、パウロは幻を見ました。幻の中で、海の向こうに住むマケドニヤ人が、「こちらに来て、私たちを助けてください」としきりに頼むのです。 10事は決まりました。直ちにマケドニヤに向かうことになったのです。神様がそこへパウロと私たちを遣わし、福音を伝えようとしておられるのはまちがいありません。

11私たちは、トロアスから船でサモトラケに直航し、翌日ネアポリスに着きました。 12そしてついに、マケドニヤの国境から少し入った、ローマの植民地ピリピに到着し、数日の間そこにいました。

13安息日に、私たちは郊外に出て、人々が祈りに来ると思われる川岸に行きました。やがて数人の婦人が集まってきたので、聖書のことばを教えました。 14その中に、テアテラ市から来た紫布の商人ルデヤがいました。以前から神をあがめていた婦人です。このルデヤがパウロたちの話に耳を傾けていた時、神様は彼女の心を開き、パウロの語ることをみな信じさせたのです。 15彼女は一家をあげてバプテスマ(洗礼)を受けると、「私を主に忠実な者とお思いくださるなら、どうぞ家にお泊まりください」としきりに言うので、私たちはその招待を受けることにしました。

牢獄のパウロとシラス

16ある日、川岸の祈り場に行く途中、私たちは悪霊につかれた、若い女奴隷の占い師に出会いました。彼女の占いのおかげで、主人たちは甘い汁をいっぱい吸っていたのです。 17この女がついて来て、「この人たちは神のお使いだよ! あんたたちに、どうしたら罪が赦されるか教えてくれるんだよ」と大声で叫び続けました。

18こんなことが毎日続いたので困り果てたパウロは、ある日、彼女に取りついた悪霊に、「イエス・キリストの名によって命じる。この女から出て行け!」としかりつけました。するとたちまち、悪霊は出て行きました。

19面白くないのは、この女の主人たちです。もうふところに金がころがり込むあてがなくなったので、その腹いせにパウロとシラスをつかまえ、広場にいる長官(ローマの植民地執政官)たちの前へ引きずって行き、口々に訴えました。 20-21「このユダヤ人たちときたら、町をすっかりだめにしようって魂胆なんです。ローマの法律に反することばかり教えているのです。」

22たちまち広場は、二人に反感をいだく人たちでいっぱいになりました。そこで長官たちは、二人を裸にし、むちで打つように命じました。 23ビュッビュッと何度もむちが振り下ろされ、二人の背中から血がしたたり落ちました。そして二人は、牢に放り込まれました。「こいつらを逃がしでもしたら命はないものと思え」と脅された看守は、 24二人を奥の牢に入れ、厳重に足かせをかけました。

25真夜中ごろ、パウロとシラスは、主に祈ったり、賛美歌をうたったりしていました。ほかの囚人たちもじっと聞き入っています。その時です。 26突然、大地震が起こりました。牢獄は土台からぐらぐら揺れ動き、戸という戸は開き、囚人たちの鎖もはずれてしまいました。 27看守が目を覚ますと、戸が全部開いています。看守は、てっきり囚人がみな脱走したものと思い、もうだめだとばかり、剣を抜いて自殺しようとしました。

28その瞬間、パウロが叫びました。「早まるな! 全員ここにいる!」

29看守はあかりを取って中に駆け込み、恐ろしさのあまりわなわな震えながら、パウロとシラスの前にひれ伏しました。 30そして二人を外に連れ出し、「先生方。救われるには、どうすればよろしいのでしょう」と尋ねました。

31二人は答えました。「主イエスを信じなさい。そうすれば、あなたもあなたの全家族も救われます。」

32こうして二人は、看守とその家の者たち全員に、主のことばを伝えたのです。 33看守は二人を引き取り、彼らの打ち傷をていねいに洗って手当てをしたあと、家族そろってバプテスマ(洗礼)を受けました。 34それから、二人を自宅に案内し、食事を出してもてなし、全家族がクリスチャンになったことを心から喜び合いました。

35翌朝、長官たちは警吏たちをよこして、「あの者たちを釈放せよ」と通告してきました。 36そこで看守は、パウロに、「お二人とも自由の身です」と伝えました。 37ところがパウロは、警吏たちにこう答えたのです。「とんでもないことです。あの人たちは、裁判もしないで、いきなり私たちを公衆の面前でむち打ち、そのあげく投獄したのですよ。私たちは、れっきとしたローマ市民だというのに。それを今さら、こっそり釈放してすまそうとするとは……。長官自身がやって来て、釈放するべきではありませんか。」

38警吏たちは、パウロのことばを長官たちに伝えました。パウロとシラスがローマ市民だと聞いた時の、彼らの驚きようといったらありません。命が危うくなるかもしれないのです。 39すぐに牢獄に駆けつけ、「どうか、ここから出てください」と平身低頭でわび、二人を外に出して、町から立ち去ってほしいと頼みました。 40パウロとシラスはルデヤの家に戻り、信者たちに会ってもう一度話をし、町をあとにしました。

Hindi Contemporary Version

प्रेरितों 16:1-40

तिमोथियॉस का शामिल होना

1वह दरबे और लुस्त्रा नगर भी गए. वहां तिमोथियॉस नामक एक शिष्य थे जिनकी माता यहूदी मसीही शिष्या; परंतु पिता यूनानी थे. 2तिमोथियॉस इकोनियॉन और लुस्त्रा नगरों के शिष्यों में सम्मानित थे. 3पौलॉस की इच्छा तिमोथियॉस को अपने साथी के रूप में साथ रखने की थी, इसलिये पौलॉस ने उनका ख़तना किया क्योंकि वहां के यहूदी यह जानते थे कि तिमोथियॉस के पिता यूनानी हैं. 4वे नगर-नगर यात्रा करते हुए शिष्यों को वे सभी आज्ञा सौंपते जाते थे, जो येरूशलेम में प्रेरितों और पुरनियों द्वारा ठहराई गयी थी. 5इसलिये कलीसिया प्रतिदिन विश्वास में स्थिर होती गई तथा उनकी संख्या में प्रतिदिन बढ़ोतरी होती गई.

आसिया प्रदेश में प्रवेश

6वे फ़्रिजिया तथा गलातिया क्षेत्रों में से होते हुए आगे बढ़ गए. पवित्र आत्मा की आज्ञा थी कि वे आसिया क्षेत्र में परमेश्वर के वचन का प्रचार न करें 7मूसिया नगर पहुंचने पर उन्होंने बिथुनिया नगर जाने का विचार किया किंतु मसीह येशु के आत्मा ने उन्हें इसकी आज्ञा नहीं दी. 8इसलिये मूसिया नगर से निकलकर वे त्रोऑस नगर पहुंचे. 9रात में पौलॉस ने एक दर्शन देखा: एक मकेदोनियावासी उनसे दुःखी शब्द में विनती कर रहा था, “मकेदोनिया क्षेत्र में आकर हमारी सहायता कीजिए!” 10पौलॉस द्वारा इस दर्शन देखते ही यह जानकर कि परमेश्वर ने हमें उन्हें सुसमाचार प्रचार करने के लिए बुलाया है; हमने तुरंत मकेदोनिया क्षेत्र जाने की योजना बनाई.

फ़िलिप्पॉय नगर में पौलॉस

11त्रोऑस नगर से हम सीधे जलमार्ग द्वारा सामोथ्रेसिया टापू पहुंचे और दूसरे दिन नियापोलिस नगर 12और वहां से फ़िलिप्पॉय नगर, जो मकेदोनिया प्रदेश का एक प्रधान नगर तथा रोमी बस्ती है. हम यहां कुछ दिन ठहर गए.

13शब्बाथ पर हम नगर द्वार से निकलकर प्रार्थना के लिए निर्धारित स्थान की खोज में नदी तट पर चले गए. हम वहां इकट्ठी हुई स्त्रियों से वार्तालाप करते हुए बैठ गए. 14वहां थुआतेइरा नगर निवासी लुदिया नामक एक स्त्री थी, जो परमेश्वर की आराधक थी. वह बैंगनी रंग के वस्त्रों की व्यापारी थी. उसने हमारा वार्तालाप सुना और प्रभु ने पौलॉस द्वारा दी जा रही शिक्षा के प्रति उसका हृदय खोल दिया. 15जब उसने और उसके रिश्तेदारों ने बपतिस्मा ले लिया तब उसने हमको अपने यहां आमंत्रित करते हुए कहा, “यदि आप यह मानते हैं कि मैं प्रभु के प्रति विश्वासयोग्य हूं, तो आकर मेरे घर में रहिए.” उसने हमें विनती स्वीकार करने पर विवश कर दिया.

पौलॉस और सीलास बंदीगृह में

16एक दिन प्रार्थना स्थल की ओर जाते हुए मार्ग में हमारी भेंट एक युवा दासी से हुई, जिसमें एक ऐसी दुष्टात्मा थी, जिसकी सहायता से वह भविष्य प्रकट कर देती थी. वह अपने स्वामियों की बहुत आय का साधन बन गई थी. 17यह दासी पौलॉस और हमारे पीछे-पीछे यह चिल्लाती हुए चलने लगी, “ये लोग परम प्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो तुम पर उद्धार का मार्ग प्रकट कर रहे हैं.” 18अनेक दिनों तक वह यही करती रही. अंत में झुंझला कर पौलॉस पीछे मुड़े और उसके अंदर समाई दुष्टात्मा से बोले, “मसीह येशु के नाम में मैं तुझे आज्ञा देता हूं, निकल जा उसमें से!” तुरंत ही वह दुष्टात्मा उसे छोड़कर चली गई.

19जब उसके स्वामियों को यह मालूम हुआ कि उनकी आय की आशा जाती रही, वे पौलॉस और सीलास को पकड़कर नगर चौक में प्रधान न्यायाधीशों के सामने ले गए 20और उनसे कहने लगे, “इन यहूदियों ने नगर में उत्पात मचा रखा है. 21ये लोग ऐसी प्रथाओं का प्रचार कर रहे हैं जिन्हें स्वीकार करना या पालन करना हम रोमी नागरिकों के नियमानुसार नहीं है.”

22इस पर सारी भीड़ उनके विरुद्ध हो गई और प्रधान हाकिमों ने उनके वस्त्र फाड़ डाले और उन्हें बेंत लगाने की आज्ञा दी. 23उन पर अनेक कठोर प्रहारों के बाद उन्हें कारागार में डाल दिया गया और कारागार-शासक को उन्हें कठोर सुरक्षा में रखने का निर्देश दिया. 24इस आदेश पर कारागार-शासक ने उन्हें भीतरी कक्ष में डालकर उनके पैरों को लकड़ी की बेड़ियों में जकड़ दिया.

25लगभग आधी रात के समय पौलॉस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे तथा परमेश्वर की स्तुति में भजन गा रहे थे. उनके साथी कैदी उनकी सुन रहे थे. 26अचानक ऐसा बड़ा भूकंप आया कि कारागार की नींव हिल गई, तुरंत सभी द्वार खुल गए और सभी बंदियों की बेड़ियां टूट गईं. 27नींद से जागने पर कारागार-शासक ने सभी द्वार खुले पाए. यह सोचकर कि सारे कैदी भाग चुके हैं, वह तलवार से अपने प्राणों का अंत करने जा ही रहा था; 28तब पौलॉस ने ऊंचे शब्द में उससे कहा, “स्वयं को कोई हानि न पहुंचाइए, हम सब यहीं हैं!”

29कारागार-शासक रोशनी का इंतजाम करने के लिए आज्ञा देते हुए भीतर दौड़ गया और भय से कांपते हुए पौलॉस और सीलास के चरणों में गिर पड़ा. 30इसके बाद उन्हें बाहर लाकर उसने उनसे प्रश्न किया, “श्रीमन, मुझे क्या करना चाहिए कि मुझे उद्धार प्राप्‍त हो?”

31उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु येशु मसीह में विश्वास कीजिए, आपको उद्धार प्राप्‍त होगा—आपको तथा आपके परिवार को.” 32तब उन्होंने कारागार-शासक और उसके सारे परिवार को प्रभु के वचन की शिक्षा दी. 33कारागार-शासक ने रात में उसी समय उनके घावों को धोया. बिना देर किए उसने और उसके परिवार ने बपतिस्मा लिया. 34इसके बाद वह उन्हें अपने घर ले आया और उन्हें भोजन कराया. परमेश्वर में सपरिवार विश्वास करके वे सभी बहुत आनंदित थे.

35अगले दिन प्रधान हाकिमों ने अपने अधिकारियों द्वारा यह आज्ञा भेजी, “उन व्यक्तियों को छोड़ दो.” 36कारागार-शासक ने इस आज्ञा की सूचना पौलॉस को देते हुए कहा, “प्रधान न्यायाधीशों ने आपको छोड़ देने की आज्ञा दी है. इसलिये आप शांतिपूर्वक यहां से विदा हो सकते हैं.”

37पौलॉस ने उन्हें उत्तर दिया, “उन्होंने हमें बिना किसी मुकद्दमे के सबके सामने पिटवाया, जबकि हम रोमी नागरिक हैं, फिर हमें कारागार में भी डाल दिया और अब वे हमें चुपचाप बाहर भेजना चाह रहे हैं! बिलकुल नहीं! स्वयं उन्हीं को यहां आने दीजिए, वे ही हमें यहां से बाहर छोड़ देंगे.”

38उन अधिकारियों ने यह सब प्रधान न्यायाधीशों को जा बताया. यह मालूम होने पर कि पौलॉस तथा सीलास रोमी नागरिक हैं वे बहुत ही डर गए. 39तब वे स्वयं आकर पौलॉस तथा सीलास को मनाने लगे और उन्हें कारागार से बाहर लाकर उनसे नगर से चले जाने की विनती करते रहे. 40तब पौलॉस तथा सीलास कारागार से निकलकर लुदिया के घर गए. वहां भाई बहिनों से भेंट कर उन्हें प्रोत्साहित करते हुए वे वहां से विदा हो गए.