マルコの福音書 10 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

マルコの福音書 10:1-52

10

神からのすばらしい報い

1イエスはカペナウムをあとにし、ユダヤ地方とヨルダン川東岸へ行かれました。すると、再び群衆が集まって来たので、イエスは彼らに教えておられました。

2そこへ何人かのパリサイ人たちが来て、イエスに、「あなたは離婚をお認めになりますか」と尋ねました。もちろん、これはわなでした。

3「モーセは、離婚について何と言いましたか。」反対に、イエスがお尋ねになりました。

4「離婚してもさしつかえないと言いました。ただその時は、男が女に離縁状を書くのが決まりですが。」

5「なぜモーセはそう言ったのか、考えてみなさい。あなたがたの心が邪悪で強情だったから、しかたなく認めたのです。 6-7離婚は神の意思に反します。神は創造の初めから、人を男と女とに造られたのです。ですから、人は両親から離れて、 8妻と一体となるのです。もはや二人ではなく一人なのです。 9神が一つにしてくださったものを、だれも引き離してはなりません。」

10イエスが家に戻られると、弟子たちはまた、この問題を持ち出しました。

11イエスは言われました。「ほかの女と結婚したいばかりに妻を離縁するなら、妻に対して姦淫を犯すのです。 12また夫と離婚して別の男と再婚する女も同様です。」

13さて、イエスに祝福していただこうと、人々が子どもたちを連れてやって来ました。ところが弟子たちは、彼らをじゃま者扱いし、追い返そうとしました。

14それをごらんになったイエスは、憤って弟子たちをおしかりになりました。「子どもたちを自由に来させなさい。神の国は、この子どもたちのような者の国なのです。追い払うなど、とんでもないことです。 15いいですか。よく言っておきますが、小さな子どものように神の国を受け入れる者でなければ、決してそこに入ることはできません。」

16それから、子どもたちを抱き上げ、頭に手を置いて、祝福されました。

17イエスが道に出て行くと、一人の人が走り寄ってひざまずき、「先生。あなたは尊いお方です。お教えください。天国に入るにはどうしたらよいでしょうか」と尋ねました。

18「どうしてわたしを尊いと言うのですか。尊いお方は神おひとりです。 19それはさておき、今の質問に答えましょう。守るべき戒めは知っていますね。殺してはならない、姦淫してはならない、盗んではならない、うそをついてはならない、だまし取ってはならない、あなたの父と母とを敬いなさい、という戒めです。」

20「はい、先生。私は今まで、それらを一つも破ったことはありません。」

21イエスは心から彼に同情して言われました。「あなたには、たった一つだけ欠けたところがあるのです。さあ、家に帰って財産を全部売り払い、そのお金を貧しい人たちに分けてあげなさい。そうすれば、天に宝をたくわえることになるのです。それから、わたしについて来なさい。」

22このイエスのことばに、その人は顔をくもらせ、悲しそうに帰って行きました。たいへんな金持ちだったからです。

23そのうしろ姿をじっと見ていたイエスは、弟子たちのほうをふり返り、「金持ちが神の国に入るのは、実にむずかしいことです」と言われました。

24このことばに、弟子たちはびっくりしました。イエスは、もう一度言われました。「愛する子どもたちよ。財産を頼みとする人が神の国に入るのは、なんとむずかしいことでしょう。 25金持ちが神の国に入るよりは、らくだが針の穴を通るほうが、よほどやさしいのです。」

26弟子たちはますます驚いて言いました。「そうだとしたら、この世の中で、いったいだれが救われるのでしょう。」(金持ちこそ神から祝福された人だと考えられていたからです。)

27イエスは弟子たちをじっと見つめ、「それは、神でなければできません。神には、どんなことでもできるのです」と言われました。

28するとペテロが、自分や他の弟子たちが捨ててきたものを数え上げ始めました。「私たちは何もかも捨てて、あなたに従ってまいりました。」

29-30これを聞いて、イエスは言われました。「はっきり言っておきます。わたしを愛するゆえに、また福音を人々に告げ知らせるために、家、兄弟、姉妹、父、母、子、財産をすべて投げ捨てた者は、必ずその百倍の報いを受けます。この地上では迫害されますが、それでも家、兄弟、姉妹、母、子、土地はちゃんと戻ってきます。そればかりか、次の世では永遠のいのちを受けるのです。 31今は一番偉く見える者が、その時には一番軽んじられ、今は小さい者と見下げられていても、その時には一番大きい者となる者が多いのです。」

ご自分の死と復活を予告する

32さて一行は、エルサレムを目指して進んで行きました。イエスが先頭で、弟子たちはあとから続きます。彼らは、恐れと不安な気持ちにかられていました。そこでイエスは、弟子たちをわきへ呼び、エルサレムに到着してからご自分の身に起こることを、もう一度、話して聞かせました。

33「エルサレムに着くと、メシヤのわたしは捕らえられ、祭司長やユダヤ人の指導者たちに引き渡され、死刑を宣告されます。そして死刑執行のためにローマの役人の手に渡され、 34あざけられ、つばをかけられ、むちで打たれ、殺されます。しかし、わたしは三日目に復活するのです。」

35さて、ゼベダイの息子のヤコブとヨハネが来て、イエスにこっそりと頼みました。「先生。折り入ってお願いしたいことがあるのですが。」

36「どんなことですか。」

37「実は、あなたの御国で、私たちをあなたの次に高い位につかせていただきたいのです。一人はあなたの右に、一人は左にというように。」

38しかし、イエスは言われました。「あなたがたは、何もわかっていませんね。わたしが飲もうとしている恐るべき杯を飲み、わたしが受けようとしている苦しみのバプテスマ(洗礼)を受けることができるとでも言うのですか。」

39「できますとも!」と、自信をもって答える二人に、イエスは、「確かにあなたがたはわたしの杯を飲み、バプテスマを受けるでしょう。 40だが、だれをわたしの次の位につかせるかは、わたしが決めることではありません。もうすでに決まっているのです」とおっしゃいました。

41この、ヤコブとヨハネの願い事を知ったほかの弟子たちは、非常に腹を立てました。 42それでイエスはみなを呼び集め、こう言われました。「あなたがたも知っているとおり、この世の王や高官は、支配者として権力をほしいままにしています。 43しかし、あなたがたの間では違います。偉くなりたければ、みなに仕える者となりなさい。 44人を支配したければ、奴隷のように仕える者となりなさい。 45メシヤのわたしでさえ、人に仕えられるためではなく、仕えるために来たのであり、多くの人の罪の代償として、自分のいのちを与えるために来たのです。」

46一行はエリコに着きました。やがてその町を出ようとすると、大ぜいの群衆がついて来ます。その時、テマイの子でバルテマイという名の盲目の物ごいが、道ばたに座っていました。

47ナザレのイエスのお通りだと聞いて、バルテマイは大声を張り上げました。「イエス様、ダビデ王の子よ!どうぞお助けを!」

48「うるさい。黙れ!」と、だれかがどなりました。それでも、バルテマイはますます声を張り上げ、「ああ、ダビデ王の子よ。お助けください」と、くり返し叫びました。

49その声を聞きつけて、イエスは立ち止まり、「あの男を連れて来なさい」と言われました。そこで、人々はその盲人に、「運のいいやつだ。おい、イエス様がお呼びだぞ」と告げました。 50バルテマイは、はおっていた上着をぱっと脱ぎ捨てると、喜び勇んでイエスのそばに飛んで来ました。

51「わたしに、どうしてほしいのですか」と、イエスがお尋ねになると、彼はもどかしげに、「先生。見えるように、見えるようになりたいんです」と答えました。

52「わかりました。さあ、もうあなたの目は治りました。あなたの信仰があなたを治したのです。」イエスがこう言われた瞬間、彼の目は見えるようになり、イエスについて行きました。

Hindi Contemporary Version

मार्कास 10:1-52

तलाक का विषय

1मसीह येशु वहां से निकलकर यहूदिया के उस क्षेत्र में चले गए, जो यरदन नदी के पार था. भीड़ फिर से उनके चारों ओर इकट्ठी हो गई. अपनी रीति के अनुसार मसीह येशु ने एक बार फिर उन्हें शिक्षा देना प्रारंभ किया.

2उन्हें परखने के उद्देश्य से कुछ फ़रीसी उनके पास आ गए. उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “क्या पुरुष के लिए पत्नी से तलाक लेना व्यवस्था के अनुसार है?”

3मसीह येशु ने ही उनसे प्रश्न किया, “तुम्हारे लिए मोशेह का आदेश क्या है?”

4फ़रीसियों ने उन्हें उत्तर दिया, “मोशेह ने तलाक पत्र लिखकर पत्नी का त्याग करने की अनुमति दी है.”

5मसीह येशु ने उन्हें समझाया, “तुम्हारे कठोर हृदय के कारण मोशेह ने तुम्हारे लिए यह आज्ञा रखी. 6किंतु वास्तव में सृष्टि के प्रारंभ ही से परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया. 7इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा तथा वे दोनों एक देह होंगे.10:7 उत्प 1:27 8वे दोनों एक शरीर हो जाएंगे; परिणामस्वरूप अब वे दोनों दो नहीं परंतु एक शरीर हैं. 9इसलिये जिन्हें स्वयं परमेश्वर ने जोड़ा है, उन्हें कोई मनुष्य अलग न करे.”

10जब वे अपने घर लौट आए, शिष्यों ने मसीह येशु से इसके विषय में जानना चाहा. 11मसीह येशु ने उन्हें समझाया, “यदि कोई अपनी पत्नी से तलाक लेकर अन्य स्त्री से विवाह करता है, वह उस अन्य स्त्री के साथ व्यभिचार करता है. 12यदि स्वयं स्त्री अपने पति से तलाक लेकर अन्य पुरुष से विवाह कर लेती है, वह भी व्यभिचार करती है.”

मसीह येशु तथा बालक

13मसीह येशु को छू लेने के उद्देश्य से लोग बालकों को उनके पास ला रहे थे. इस पर शिष्य उन्हें डांटने लगे. 14यह देख मसीह येशु ने अप्रसन्‍न होते हुए उनसे कहा, “बालकों को यहां आने दो, उन्हें मेरे पास आने से मत रोको क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों का ही है. 15मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूं; जो परमेश्वर के राज्य को एक नन्हे बालक के भाव में ग्रहण नहीं करता, उसमें कभी प्रवेश न कर पाएगा.” 16तब मसीह येशु ने बालकों को अपनी गोद में लिया और उन पर हाथ रख उन्हें आशीर्वाद दिया.

अनंत जीवन का अभिलाषी धनी युवक

17मसीह येशु अपनी यात्रा प्रारंभ कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति उनके पास दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेकते हुए उनसे पूछने लगा, “उत्तम गुरु, अनंत काल का जीवन प्राप्‍त करने के लिए मैं क्या करूं?”

18मसीह येशु ने उससे कहा, “उत्तम मुझे क्यों कह रहे हो? परमेश्वर के अलावा उत्तम कोई भी नहीं है. 19आज्ञा तो तुम्हें मालूम ही हैं: हत्या न करो, व्यभिचार न करो, चोरी न करो, झूठी गवाही न दो, छल न करो, माता-पिता का सम्मान करो.”10:19 निर्ग 20:12-16; व्यव 5:16-20

20उसने उत्तर दिया, “गुरुवर, मैं बाल्यावस्था से इनका पालन करता आया हूं.”

21युवक को एकटक देखते हुए मसीह येशु का हृदय उस युवक के प्रति स्नेह से भर गया. उन्होंने उससे कहा, “एक ही कमी है तुममें: जाओ, अपनी सारी संपत्ति बेचकर प्राप्‍त राशि गरीबों में बांट दो. धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्‍त होगा. लौटकर आओ और मेरा अनुगमन करो.”

22ये शब्द सुनते ही उसका मुंह लटक गया. वह शोकित हृदय से लौट गया क्योंकि वह बड़ी संपत्ति का स्वामी था.

23मसीह येशु ने अपने आस-पास इकट्ठा शिष्यों से कहा, “परमेश्वर के राज्य में धनवानों का प्रवेश कितना कठिन होगा!”

24मसीह येशु के इन विचारों से शिष्य चकित रह गए. एक बार फिर मसीह येशु ने उनसे कहा, “अज्ञानियो! कितना कठिन होगा!10:24 कुछ अभिलेखों में: उनके लिए, जो धन पर भरोसा करते हैं, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा! परमेश्वर के राज्य में प्रवेश! 25परमेश्वर के राज्य में किसी धनवान के प्रवेश की अपेक्षा ऊंट का सुई के छेद में से पार हो जाना सरल है.”

26यह सुन शिष्य और भी अधिक चकित हो गए और मसीह येशु से पूछने लगे, “तब उद्धार किसका हो सकेगा?”

27उनकी ओर देखते हुए मसीह येशु ने कहा, “मनुष्यों के लिए तो यह असंभव है किंतु परमेश्वर के लिए नहीं—परमेश्वर के लिए सभी कुछ संभव है.”

28पेतरॉस मसीह येशु से बोले, “हम तो अपना सब कुछ त्याग कर आपके पीछे हो लिए हैं.”

29मसीह येशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम पर एक अटल सच प्रकट कर रहा हूं: ऐसा कोई भी नहीं, जिसने मेरे तथा सुसमाचार के हित में अपने परिवार, भाई-बहन, माता-पिता, संतान या संपत्ति का त्याग किया हो, 30उसे इस युग में उत्पीड़न के साथ प्रतिफल स्वरूप परिवार, भाई-बहन, माता-पिता, संतान तथा संपत्ति का सौ गुणा तथा आनेवाले समय में अनंत काल का जीवन प्राप्‍त न होगा. 31किंतु अनेक, जो पहले हैं अंतिम होंगे तथा जो अंतिम हैं वे पहले.”

दुःख-भोग और क्रूस की मृत्यु की तीसरी भविष्यवाणी

32येरूशलेम नगर की ओर जाते हुए मसीह येशु उन सबके आगे-आगे चल रहे थे. शिष्य चकित थे तथा पीछे चलनेवाले अन्य लोग डरे हुए थे. बारहों को अलग ले जाकर मसीह येशु ने उन्हें बताना प्रारंभ किया कि स्वयं उनके साथ क्या-क्या होना ज़रूरी है. 33“हम येरूशलेम नगर को जा रहे हैं, वहां मनुष्य के पुत्र को प्रधान पुरोहितों तथा शास्त्रियों के हाथों में सौंप दिया जाएगा. वे उस पर मृत्यु दंड की आज्ञा प्रसारित करेंगे तथा उसे गैर-यहूदियों को सौंप देंगे. 34वे सब उसका ठट्ठा उड़ाएंगे, उस पर थूकेंगे, कोड़े लगाएंगे, और उसकी हत्या कर देंगे तथा तीन दिन बाद वह मरे हुओं में से फिर जीवित हो जाएगा.”

ज़ेबेदियॉस के पुत्रों की विनती

35ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्र, याकोब तथा योहन, मसीह येशु के पास आकर विनती कर कहने लगे, “गुरुवर, हमारी इच्छा है कि हम आपसे जो भी विनती करें, आप उसे हमारे लिए पूरी कर दें.”

36मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो?”

37“हमारी इच्छा है कि आपकी महिमा के समय में हम आपकी दायीं तथा बायीं ओर में बैठें,” उन्होंने विनती की.

38तब मसीह येशु ने उत्तर दिया, “तुम्हें तो यह मालूम ही नहीं कि तुम क्या मांग रहे हो. क्या तुममें वह प्याला पी सकते हो जिसे मैं पीने पर हूं, या तुम उस बपतिस्मा ले सकते हो, जो मैं लेनेवाला हूं?”

39उन्होंने उत्तर दिया, “अवश्य.”

मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “वह प्याला, जो मैं पिऊंगा, तुम भी पिओगे तथा तुम्हें वही बपतिस्मा दिया जाएगा, जो मुझे दिया जाएगा. 40किंतु किसी को अपने दायें या बायें पक्ष में बैठाना मेरा अधिकार नहीं है. ये स्थान उन्हीं के लिए सुरक्षित हैं, जिन्हें इनके लिए तैयार किया गया है.”

41यह सुन शेष दस शिष्य याकोब और योहन पर नाराज़ हो गए. 42उन सबको अपने पास बुलाकर मसीह येशु ने उनसे कहा, “वे, जो इस संसार में शासक हैं, अपने लोगों पर प्रभुता करते हैं तथा उनके बड़े अधिकारी उन पर अपना अधिकार दिखाया करते हैं, 43किंतु तुम्हारे विषय में ऐसा नहीं है. तुममें जो बड़ा बनने का इच्छुक है, उसको तुम्हारा सेवक हो जाना ज़रूरी है. 44तुममें जो कोई श्रेष्ठ होना चाहता है, वह सबका दास हो. 45क्योंकि मनुष्य का पुत्र यहां इसलिये नहीं आया कि अपनी सेवा करवाए, परंतु इसलिये कि सेवा करे और अनेकों की छुड़ौती के लिए अपना जीवन बलिदान कर दे.”

येरीख़ो नगर में अंधा व्यक्ति

46इसके बाद मसीह येशु येरीख़ो नगर आए. जब वह अपने शिष्यों तथा एक विशाल भीड़ के साथ येरीख़ो नगर से निकलकर जा रहे थे, उन्हें मार्ग के किनारे बैठा हुआ एक अंधा व्यक्ति, तिमाऊ का पुत्र बारतिमाऊ, भीख मांगता हुआ मिला. 47जब उसे यह मालूम हुआ कि वह यात्री नाज़रेथवासी मसीह येशु हैं, वह पुकारने लगा, “दावीद-पुत्र, येशु! मुझ पर कृपा कीजिए!”

48उनमें से अनेक उसे पुकारने से रोकने की भरपूर कोशिश करने लगे, किंतु वह और भी अधिक पुकारता गया, “दावीद की संतान, येशु! मुझ पर कृपा कीजिए!”

49मसीह येशु ने रुक कर आज्ञा दी, “उसे यहां लाओ!”

तब उन्होंने उस अंधे व्यक्ति के पास जाकर उससे कहा, “उठो, आनंद मनाओ! प्रभु तुम्हें बुला रहे हैं.” 50अंधा व्यक्ति बाहरी वस्त्र फेंक, उछलकर खड़ा हो गया तथा मसीह येशु के पास आ गया.

51मसीह येशु ने उससे पूछा, “क्या चाहते हो मुझसे?”

“अपनी आंखों की रोशनी दुबारा पाना चाहता हूं, रब्बी!” अंधे ने उत्तर दिया.

52मसीह येशु ने उसे आज्ञा दी, “जाओ, यह तुम्हारा विश्वास है, जिसके द्वारा तुम स्वस्थ हो गए हो.” उसी क्षण उस व्यक्ति की आंखों की रोशनी लौट आई और वह उनके पीछे चलने लगा.