הבשורה על-פי לוקס 2 – HHH & HCV

Habrit Hakhadasha/Haderekh

הבשורה על-פי לוקס 2:1-52

1באותה תקופה ציווה הקיסר הרומאי אוגוסטוס לפקוד את כל תושבי האימפריה הרומית. 2זה היה מפקד התושבים הראשון, והוא נערך בזמן שקוריניוס היה שליט סוריה.

3לצורך המפקד נדרש כל אדם לשוב אל עיר מולדתו. 4גם יוסף, תושב נצרת שבגליל, חזר אל עיר מולדתו – הוא הלך אל העיר בית לחם ביהודה, מאחר שהיה נצר למשפחת דוד המלך. 5אל יוסף נלוותה ארוסתו מרים שהייתה בהיריון.

6בהיותם בבית־לחם מרים החלה בצירי לידה, 7וילדה את בנה הבכור. היא עטפה את התינוק והשכיבה אותו באבוס, כי לא השיגו מקום לינה באכסניות שהיו מלאות עד אפס מקום לרגל המפקד. 8בקרבת מקום היו רועי־צאן אשר ישנו בשדה ושמרו על עדרם במשך הלילה.

9לפתע נגלה אליהם מלאך ה׳, והשדה נמלא זוהר כבוד ה׳. הרועים נבהלו מאוד, 10אולם המלאך הרגיע אותם ואמר: ”אל תפחדו! באתי לבשר לכם חדשות משמחות ביותר – לא לכם בלבד, כי אם לכל העם! 11בבית־לחם עיר דוד נולד לכם היום מושיע, הלא הוא המשיח האדון! 12כהוכחה לאמיתות דברי תמצאו תינוק עטוף שוכב באבוס.“

13לפתע הצטרפו אל המלאך צבאות השמים, והם שרו שיר שבח ותהילה לאלוהים:

14”כבוד ותהילה לאלוהים במרומי השמים,

ושלום על־פני האדמה לכל אוהביו העושים את רצונו!“

15כאשר נעלמו המלאכים מעיני הרועים וחזרו לשמים, אמרו הרועים איש אל רעהו: ”הבא נמהר לבית־לחם כדי לראות את מה שגילה לנו אלוהים.“

16הם מיהרו העירה ומצאו את מרים, את יוסף ואת התינוק שוכב באבוס. 17מיד סיפרו הרועים לכולם את אשר קרה להם בשדה, ואת דברי המלאך על אודות הילד הזה. 18כל השומעים תמהו מאוד על דברי הרועים, 19ובכל זאת מרים שמרה את הדברים בלבה והרהרה בהם לעתים קרובות.

20לאחר מכן חזרו הרועים אל השדה, כשהם מהללים ומשבחים את אלוהים על ביקור המלאך ועל שמצאו את התינוק כדבריו.

21כעבור שמונה ימים, בטקס ברית־המילה, ניתן לתינוק השם ”ישוע“ – השם שנתן לו המלאך עוד לפני הריונה של מרים. 22בתום ימי הטהרה2‏.22 ב 22 ראה ויקרא פרק יב של מרים הביאו היא ובעלה את הילד לירושלים, להעמידו לפני ה׳, 23כי כתוב בתורה שצריך להקדיש לה׳ את הבן הבכור של כל אם, 24ולהקריב קרבן כדרישת התורה: שני תורים או שתי יונים צעירות.

25בירושלים גר אדם בשם שמעון אשר היה צדיק וחסיד, מלא ברוח הקודש וחי בציפייה מתמדת לגאולת ישראל. 26רוח הקודש גילה לשמעון הצדיק שלא ימות לפני שיראה במו עיניו את משיח ה׳. 27באותו יום הדריך רוח הקודש את שמעון אל בית־המקדש, וכאשר הביאו מרים ויוסף את הילד לפני אלוהים, כמצוות התורה, 28הרים שמעון את הילד בזרועותיו, אימץ אותו אל לבו, ברך את אלוהים ואמר:

29”אלוהי, עתה אני יכול למות במנוחה,

כי קיימת את אשר הבטחת לי;

30‏-31במו עיני ראיתי את המשיח שנתת לעולם!

32הוא האור אשר יאיר את עיני העמים

ויהיה תפארת עמך ישראל!“

33יוסף ומרים תמהו על הנאמר אודות בנם.

34‏-35שמעון ברך אותם ואחר כך אמר למרים: ”מרים, לבך יידקר בחרב הייסורים, כי ילדך זה נועד להכשיל רבים בישראל ולהושיע רבים. הוא יהיה נושא למריבה וחילוקי־דעות, כי יחשוף את מחשבותיהם האפלות של אנשים רבים.“

36‏-37בבית־המקדש הייתה גם נביאה זקנה בשם חנה בת־פנואל, משבט אשר. היא הייתה אלמנה כבת 84 שנים, אך נישואיה לבעלה נמשכו שבע שנים בלבד. חנה לא עזבה את המקדש לרגע; היא אהבה את אלוהים ושרתה אותו יומם ולילה בצום, בתפילה ובתחנונים.

38חנה שמעה את ברכתו של שמעון, והחלה לברך את שם אלוהים ולספר לאנשי ירושלים, שציפו לגאולת המשיח, כי סוף־סוף בא המשיח!

39לאחר שקיימו הוריו של ישוע את כל מצוות התורה הנוגעות לרך הנולד, חזרו לביתם – אל נצרת עירם אשר בגליל. 40הילד גדל התחזק, מלא חכמה, וחסד אלוהים היה עליו.

41‏-42כשמלאו לישוע שתים־עשרה שנים עלו הוריו לירושלים – כמנהגם מדי שנה – כדי לחוג את חג הפסח. 43בתום החג החלו הוריו במסע חזרה הביתה, ואילו ישוע נשאר בירושלים ללא ידיעתם. 44הוריו לא דאגו לו ביום הראשון למסע, כי הניחו שהיה בחברת ידידים שבין אנשי השיירה. אולם בראותם שלא הופיע עד הערב, החלו לחפשו בין החברים והמכרים, 45ומשלא מצאו אותו, חזרו לירושלים בתקווה למצאו שם.

46לאחר שלושה ימי חיפושים הם מצאו את ישוע בבית־המקדש. הוא ישב בין הרבנים, הקשיב לדבריהם ושאל אותם שאלות נבונות. 47כל שומעיו התפעלו בפקחותו, מהבנתו ומתשובותיו. 48הוריו הופתעו למצוא אותו שם, ואמו אמרה לו: ”בני, מדוע עוללת לנו זאת? אביך ואני דאגנו לך כל כך וחיפשנו אותך בכל מקום.“

49”מדוע חיפשתם אותי?“ שאל ישוע בתמיהה. ”האם לא ידעתם שאהיה עסוק בענייני אבי?“ 50אולם הם לא הבינו למה התכוון.

51ישוע חזר עם הוריו לנצרת והיה נכנע למרותם. אמו שמרה בלבה את כל מה שהתרחש. 52ישוע הלך וגדל בקומה ובחוכמה, והיה אהוב על אלוהים ובני אדם.

Hindi Contemporary Version

लूकॉस 2:1-52

बैथलहम नगर में प्रभु येशु का जन्म

1यह उस समय की घटना है जब सम्राट कयसर औगुस्तॉस की ओर से यह राज आज्ञा घोषित की गई कि सभी रोम शासित राष्ट्रों में जनगणना की जाए. 2यह सीरिया राज्य पर राज्यपाल क्वीरिनियुस के शासनकाल में पहली जनगणना थी. 3सभी नागरिक अपने नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने जन्मस्थान को जाने लगे.

4योसेफ़, दावीद के वंशज थे, इसलिये वह गलील प्रदेश के नाज़रेथ नगर से यहूदिया प्रदेश के बेथलेहेम अर्थात् दावीद के नगर गए 5कि वह भी अपनी मंगेतर मरियम के साथ, जो गर्भवती थी, नाम लिखवाएं. 6वहीं मरियम का प्रसवकाल पूरा हुआ 7और उन्होंने अपने पहलौठे पुत्र को जन्म दिया. उन्होंने उसे कपड़ों में लपेट कर चरनी में लिटा दिया क्योंकि यात्री निवास में उनके ठहरने के लिए कोई स्थान उपलब्ध न था.

8उसी क्षेत्र में कुछ चरवाहे रात के समय मैदानों में अपनी भेड़ों की चौकसी कर रहे थे. 9सहसा प्रभु का एक दूत उनके सामने प्रकट हुआ और प्रभु का तेज उनके चारों ओर फैल गया और चरवाहे अत्यंत डर गए. 10इस पर स्वर्गदूत ने उन्हें धीरज देते हुए कहा, “डरो मत! क्योंकि मैं अत्यंत आनंद का एक शुभ संदेश लाया हूं, जो सभी के लिए है: 11तुम्हारे उद्धारकर्ता ने आज दावीद के नगर में जन्म लिया है. प्रभु मसीह वही हैं. 12उनकी पहचान के चिह्न ये हैं: तुम कपड़ों में लिपटा और चरनी में लेटा हुआ एक शिशु पाओगे.”

13सहसा उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का एक विशाल समूह प्रकट हुआ, जो परमेश्वर की स्तुति इस गान के द्वारा कर रहा था:

14“सबसे ऊंचे स्वर्ग में परमेश्वर की स्तुति; तथा पृथ्वी पर उनमें, जिन पर

उनकी कृपादृष्टि है, शांति स्थापित हो.”

15जब स्वर्गदूत स्वर्ग लौट गए तब चरवाहों ने आपस में विचार किया, “आओ हम बेथलेहेम जाकर वह सब देखें, जिसका प्रभु ने हम पर प्रकाशन किया है.”

16इसलिये वे तुरंत चल पड़े और बेथलेहेम नगर पहुंचकर मरियम, योसेफ़ तथा उस शिशु को देखा, जो चरनी में लेटा हुआ था. 17उस शिशु का दर्शन कर वे उससे संबंधित सभी बातों को, जो उन पर प्रकाशित की गयी थी, सभी जगह बताने लगे. 18सभी सुननेवालों के लिए चरवाहों का समाचार आश्चर्य का विषय था. 19मरियम इन बातों को अपने हृदय में संजोकर उनके बारे में सोच-विचार करती रहीं. 20चरवाहे परमेश्वर की स्तुति तथा गुणगान करते हुए लौट गए क्योंकि जो कुछ उन्होंने सुना था और देखा था, वह ठीक वैसा ही था, जैसा उन पर प्रकाशित किया गया था.

21जन्म के आठवें दिन, ख़तना के समय, उस शिशु का नाम येशु रखा गया—वही नाम, जो उनके गर्भ में आने के पूर्व स्वर्गदूत द्वारा बताया गया था.

प्रभु येशु का अर्पण किया जाना

22जब मोशेह की व्यवस्था के अनुरूप मरियम और योसेफ़ के शुद्ध होने के दिन पूरे हुए, वे शिशु को येरूशलेम लाए कि उसे प्रभु को भेंट किया जाए. 23जैसा कि व्यवस्था का आदेश है: हर एक पहलौठा पुत्र प्रभु को भेंट किया जाए2:23 निर्ग 13:2, 12 24तथा प्रभु के व्यवस्था की आज्ञा के अनुसार एक जोड़ा पंडुकी या कबूतर के दो बच्चों की बलि चढ़ाई जाए.2:24 लेवी 12:8

25येरूशलेम में शिमओन नामक एक व्यक्ति थे. वह धर्मी तथा श्रद्धालु थे. वह इस्राएल की शांति की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन पर पवित्र आत्मा का आच्छादन था. 26पवित्र आत्मा के द्वारा उन पर यह स्पष्ट कर दिया गया था कि प्रभु के मसीह को देखे बिना उनकी मृत्यु नहीं होगी. 27पवित्र आत्मा के सिखाने पर शिमओन मंदिर के आंगन में आए. उसी समय मरियम और योसेफ़ ने व्यवस्था द्वारा निर्धारित विधियों को पूरा करने के उद्देश्य से शिशु येशु को लेकर वहां प्रवेश किया. 28शिशु येशु को देखकर शिमओन ने उन्हें गोद में लेकर परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा.

शिमओन का विदाई गीत:

29“परम प्रधान प्रभु, अब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार

अपने सेवक को शांति में विदा कीजिए,

30क्योंकि मैंने अपनी आंखों से आपके उद्धार को देख लिया है,

31जिसे आपने सभी के लिए तैयार किया है.

32यह आपकी प्रजा इस्राएल का गौरव,

तथा सब राष्ट्रों की ज्ञान की ज्योति है.”

33मरियम और योसेफ़ अपने पुत्र के विषय में इन बातों को सुन चकित रह गए. 34शिमओन ने मरियम को संबोधित करते हुए ये आशीर्वचन कहे: “यह पहले से ठहराया हुआ है कि यह शिशु इस्राएल में अनेकों के पतन और उत्थान के लिए चुना गया है. यह एक ऐसा चिन्ह होगा लोकमत जिसके विरुद्ध ही होगा. 35यह तलवार तुम्हारे ही प्राण को आर-पार बेध देगी—कि अनेकों के हृदयों के विचार प्रकट हो जाएं.”

36हन्‍ना नामक एक भविष्यवक्तिन थी, जो आशेर वंश के फ़नुएल नामक व्यक्ति की पुत्री थी. वह अत्यंत वृद्ध थी तथा विवाह के बाद पति के साथ मात्र सात वर्ष रहकर विधवा हो गई थी. 37इस समय उनकी आयु चौरासी वर्ष थी. उन्होंने मंदिर कभी नहीं छोड़ा और वह दिन-रात उपवास तथा प्रार्थना करते हुए परमेश्वर की उपासना में तल्लीन रहती थी. 38उसी समय वह वहां आई और परमेश्वर के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने लगीं. उन्होंने उन सभी को इस शिशु के विषय में सूचित किया, जो येरूशलेम के छुटकारे की प्रतीक्षा में थे.

39जब योसेफ़ तथा मरियम प्रभु के व्यवस्था में निर्धारित विधियां पूरी कर चुके, वे गलील प्रदेश में अपने नगर नाज़रेथ लौट गए. 40बालक येशु बड़े होते हुए बलवंत होते गए तथा उनकी बुद्धि का विकास होता गया. परमेश्वर उनसे प्रसन्‍न थे तथा वह उनकी कृपादृष्टि के पात्र थे.

ज्ञानियों के मध्य प्रभु येशु

41प्रभु येशु के माता-पिता प्रति वर्ष फ़सह उत्सव2:41 फ़सह उत्सव यहूदियों का सबसे बड़ा त्योहार जब मिस्र में उनकी 430 साल की ग़ुलामी से उनके छुटकारे को वे स्मरण करते हैं के उपलक्ष्य में येरूशलेम जाया करते थे. 42जब प्रभु येशु की अवस्था बारह वर्ष की हुई, तब प्रथा के अनुसार वह भी अपने माता-पिता के साथ उत्सव के लिए येरूशलेम गए. 43उत्सव की समाप्‍ति पर जब उनके माता-पिता घर लौट रहे थे, बालक येशु येरूशलेम में ही ठहर गए. उनके माता-पिता इससे अनजान थे. 44यह सोचकर कि बालक यात्री-समूह में ही कहीं होगा, वे उस दिन की यात्रा में आगे बढ़ते गए. जब उन्होंने परिजनों-मित्रों में प्रभु येशु को खोजना प्रारंभ किया, 45प्रभु येशु उन्हें उनके मध्य नहीं मिले इसलिये वे उन्हें खोजने येरूशलेम लौट गए. 46तीन दिन बाद उन्होंने प्रभु येशु को मंदिर परिसर में शिक्षकों के साथ बैठा हुआ पाया. वहां बैठे हुए वह उनकी सुन रहे थे तथा उनसे प्रश्न भी कर रहे थे. 47जिस किसी ने भी उनको सुना, वह उनकी समझ और उनके उत्तरों से चकित थे. 48उनके माता-पिता उन्हें वहां देख चकित रह गए. उनकी माता ने उनसे प्रश्न किया, “पुत्र! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हारे पिता और मैं तुम्हें कितनी बेचैनी से खोज रहे थे!”

49“क्यों खोज रहे थे आप मुझे?” प्रभु येशु ने उनसे पूछा, “क्या आपको यह मालूम न था कि मेरा मेरे पिता के घर में ही होना उचित है?” 50मरियम और योसेफ़ को प्रभु येशु की इस बात का अर्थ समझ नहीं आया.

51प्रभु येशु अपने माता-पिता के साथ नाज़रेथ लौट गए और उनके आज्ञाकारी रहे. उनकी माता ने ये सब विषय हृदय में संजोए रखे. 52प्रभु येशु बुद्धि डीलडौल तथा परमेश्वर और मनुष्यों की कृपादृष्टि में बढ़ते चले गए.