1 राजा 22 – HCV & PCB

Hindi Contemporary Version

1 राजा 22:1-53

अहाब और मीकायाह नबी

1तीन साल तक इस्राएल और अराम के बीच युद्ध न हुआ. 2तीसरे साल यहूदिया का राजा यहोशाफ़ात इस्राएल के राजा अहाब से भेंटकरने आया. 3इस्राएल के राजा ने अपने सेवकों से कहा, “क्या तुम्हें मालूम है कि रामोथ-गिलआद हमारे अधिकार क्षेत्र में है और हम इसे अराम के राजा से दोबारा पाने के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं?”

4तब उसने यहोशाफ़ात से प्रश्न किया, “क्या आप रामोथ-गिलआद में युद्ध करने मेरे साथ चलेंगे?”

यहोशाफ़ात ने इस्राएल के राजा को उत्तर दिया, “मैं आपके ही जैसा हूं, मेरी प्रजा आपकी प्रजा के समान और घोड़े आपके घोड़ों के समान.” 5यहोशाफ़ात ने इस्राएल के राजा से कहा, “सबसे पहले याहवेह की इच्छा मालूम कर लें.”

6तब इस्राएल के राजा ने भविष्यवक्ताओं को इकट्ठा किया. ये लगभग चार सौ व्यक्ति थे. उसने भविष्यवक्ताओं से प्रश्न किया, “मैं रामोथ-गिलआद से युद्ध करने जाऊं, या यह विचार छोड़ दूं?”

उन्होंने उत्तर दिया, “आप जाइए, क्योंकि याहवेह उसे राजा के अधीन कर देंगे.”

7मगर यहोशाफ़ात ने प्रश्न किया, “क्या यहां याहवेह का कोई भविष्यद्वक्ता नहीं, जिससे हम यह मालूम कर सकें?”

8इस्राएल के राजा ने यहोशाफ़ात को उत्तर दिया, “हां, यहां एक और व्यक्ति है, जिससे हम याहवेह की इच्छा जान सकते है; इमलाह का पुत्र मीकायाह; मगर मुझे उससे घृणा है; क्योंकि उसकी भविष्यवाणी में मेरे लिए कुछ भी भला नहीं, बल्कि बुरा ही हुआ करता है.”

इस पर यहोशाफ़ात ने कहा, “राजा का ऐसा कहना अच्छा नहीं है.”

9तब इस्राएल के राजा ने अपने एक अधिकारी को बुलाकर आदेश दिया, “जल्दी ही इमलाह के पुत्र मीकायाह को ले आओ.”

10इस्राएल का राजा और यहूदिया के राजा यहोशाफ़ात शमरिया के फाटक के सामने खुले खलिहान में राजसी वस्त्रों में अपने-अपने सिंहासनों पर बैठे थे. उनके सामने सारे भविष्यद्वक्ता भविष्यवाणी कर रहे थे. 11तभी केनानाह का पुत्र सीदकियाहू, जिसने अपने लिए लोहे के सींग बनाए थे, कहने लगा, “यह संदेश याहवेह की ओर से है, ‘इन सींगों के द्वारा आप अरामियों पर इस रीति से वार करेंगे, कि वे खत्म हो जाएंगे.’ ”

12सारे भविष्यद्वक्ता यही भविष्यवाणी कर रहे थे, “रामोथ-गिलआद पर हमला कीजिए और विजयी हो जाइए. याहवेह इसे राजा के अधीन कर देंगे.”

13उस दूत ने, जो मीकायाह को लाने के लिए भेजा गया था, मीकायाह से कहा, “देख लो, सारे भविष्यद्वक्ता राजा के लिए अनुसार और भलाई में ही भविष्यवाणी कर रहे हैं. तुम्हारी भविष्यवाणी भी इन्हीं में से एक के समान हो. तुम भी भली भविष्यवाणी ही करना.”

14मगर मीकायाह ने कहा, “जीवित याहवेह की शपथ, मैं सिर्फ वही कहूंगा, जिसके लिए याहवेह मुझे भेजेंगे.”

15जब मीकायाह राजा के सामने पहुंचा, राजा ने उससे प्रश्न किया, “मीकायाह, क्या हम रामोथ-गिलआद से युद्ध करें या इसका विचार ही छोड़ दें?”

मीकायाह ने राजा को उत्तर दिया, “आप जाइए और सफलता प्राप्‍त कीजिए. याहवेह इसे राजा के अधीन कर देंगे.”

16राजा ने मीकायाह से कहा, “मीकायाह, मुझे तुम्हें कितनी बार इसकी शपथ दिलानी होगी कि तुम्हें मुझसे याहवेह के नाम में सच के सिवाय और कुछ भी नहीं कहना है?”

17तब मीकायाह ने उत्तर दिया, “मैंने सारे इस्राएल को बिन चरवाहे की भेड़ों के समान पहाड़ों पर तितर-बितर देखा. तभी याहवेह ने कहा, ‘इनका तो कोई स्वामी ही नहीं है. हर एक को शांतिपूर्वक अपने-अपने घर लौट जाने दो.’ ”

18इस्राएल के राजा ने यहोशाफ़ात से कहा, “मैंने कहा था न, कि यह मेरे बारे में बुरी भविष्यवाणी ही करेगा, भली नहीं?”

19इस पर मीकायाह ने उत्तर दिया, “बहुत बढ़िया! तो फिर याहवेह का संदेश भी सुन लीजिए: मैंने याहवेह को उनके सिंहासन पर बैठे देखा. उनके दाईं और बाईं ओर में सारी स्वर्गिक सेना खड़ी हुई थी. 20याहवेह ने वहां प्रश्न किया, ‘यहां कौन है, जो अहाब को ऐसे लुभाएगा कि वह रामोथ-गिलआद जाए और वहां जाकर मारा जाए?’

“किसी ने वहां कुछ उत्तर दिया और किसी ने कुछ और. 21तब वहां एक आत्मा आकर याहवेह के सामने खड़े होकर यह कहने लगा, ‘मैं उसे लुभाऊंगा.’

22“ ‘कैसे?’ याहवेह ने उससे प्रश्न किया.

“उसने उत्तर दिया, ‘मैं जाकर राजा के सभी भविष्यवक्ताओं के मुख में झूठी आत्मा बन जाऊंगी.’ ” इस पर याहवेह ने कहा,

“ ‘तुम्हें इसमें सफल भी होना होगा. जाओ और यही करो.’

23“इसलिये देख लीजिए, याहवेह ने इन सारे भविष्यवक्ताओं के मुंह में छल का एक आत्मा डाल रखा है. आपके लिए याहवेह ने सर्वनाश की घोषणा कर दी है.”

24यह सुन केनानाह का पुत्र सीदकियाहू सामने आया और मीकायाह के गाल पर मारते हुए कहने लगा, “याहवेह का आत्मा मुझमें से निकलकर तुमसे बातचीत करने किस प्रकार जा पहुंचा?”

25मीकायाह ने उसे उत्तर दिया, “तुम यह देख लेना, जब उस दिन तुम छिपने के लिए भीतर के कमरे में शरण लोगे.”

26इस्राएल के राजा ने कहा, “पकड़ लो, मीकायाह को! उसे हाकिम अमोन और राजकुमार योआश के पास ले जाओ. 27उनसे कहना, ‘यह राजा का आदेश है: इस व्यक्ति को जेल में डाल दो और उसे उस समय तक ज़रा सा ही भोजन और पानी देना, जब तक मैं सुरक्षित न लौट आऊं.’ ”

28इस पर मीकायाह ने कहा, “यदि आप सच में सकुशल लौट आएं, तो यह समझ लीजिए कि याहवेह ने मेरे द्वारा यह सब प्रकट किया ही नहीं है.” और फिर भीड़ से उसने कहा, “आप सब भी यह सुन लीजिए.”

रामोथ अहाब की हार और मृत्यु

29फिर भी इस्राएल के राजा और यहूदिया के राजा यहोशाफ़ात ने रामोथ-गिलआद पर हमला कर दिया. 30इस्राएल के राजा ने यहोशाफ़ात से कहा, “मैं भेष बदलकर युद्ध-भूमि में जाऊंगा, मगर आप अपनी राजसी वेशभूषा ही पहने रहिए.” इस्राएल का राजा भेष बदलकर युद्ध-भूमि में गया.

31अराम के राजा ने अपनी रथ सेना के बत्तीस प्रधानों को आदेश दे रखा था, “युद्ध न तो साधारण सैनिकों से करना और न मुख्य अधिकारियों से, सिर्फ इस्राएल के राजा को निशाना बनाना.” 32जैसे ही इन अधिकारियों ने यहोशाफ़ात को देखा, उन्होंने समझा, “ज़रूर यही इस्राएल का राजा है.” तब वे यहोशाफ़ात की ओर लपके. इस पर यहोशाफ़ात चिल्ला उठा. 33जब प्रधानों ने देखा कि वह इस्राएल का राजा नहीं था, उन्होंने उसका पीछा करना छोड़ दिया.

34इसी समय किसी एक सैनिक ने बिना कोई निशाना साधे ही अपना बाण छोड़ दिया. वह बाण जाकर इस्राएल के राजा के कवच के जोड़ पर जा लगा. तब राजा ने सारथी को आदेश दिया, “रथ मोड़ो और मुझे युद्ध-भूमि से बाहर ले चलो, मैं बुरी तरह से ज़ख्मी हो गया हूं.” 35युद्ध तेज होता चला गया. अरामियों के सामने राजा को रथ में खड़ा हुआ पेश किया गया. शाम को राजा के प्राणपखेरु उड़ गए. उसका खून बहता हुआ रथ के पेंदे में जमा होता रहा. 36शाम को सारी सेना में यह घोषणा की गई: “हर एक व्यक्ति अपने-अपने नगर को और हर एक सैनिक अपने-अपने देश को लौट जाए.”

37राजा के शव को शमरिया लाया गया और उसे शमरिया में गाड़ दिया गया. 38रथ को शमरिया के तालाब के तट पर धोया गया, और उस खून को कुत्ते चाटते रहे. इस समय वह जगह वेश्याओं के नहाने के लिए ठहराया हुआ घाट था. यह ठीक वैसा ही हुआ जैसी याहवेह की भविष्यवाणी थी.

39अहाब द्वारा किए गए बाकी काम और वह सब, जो उसके द्वारा किया गया, उसके द्वारा बनाया गया हाथी-दांत का भवन और उसके द्वारा बनाए नगरों का ब्यौरा इस्राएल के राजाओं की इतिहास की पुस्तक में दिया गया है. 40अहाब अपने पूर्वजों के साथ हमेशा के लिए जा मिला, और उसकी जगह पर उसका पुत्र अहज़्याह राजा बना.

यहूदिया पर यहोशाफ़ात का शासन

41इस्राएल के राजा अहाब के शासनकाल के चौथे साल में आसा के पुत्र यहोशाफ़ात ने यहूदिया पर शासन करना शुरू किया. 42जब उसने शासन की बागडोर संभाली, उसकी उम्र पैंतीस साल की थी. उन्होंने येरूशलेम में पच्चीस साल शासन किया. उसकी माता का नाम अत्सूबा था, वह शिल्ही की पुत्री थी. 43यहोशाफ़ात का व्यवहार सभी बातों में उनके पिता आसा के समान था. वह कभी उस तरह के जीवन से अलग न हुआ. उसके काम वे ही थे, जो याहवेह की दृष्टि में सही थे. फिर भी, पूजा स्थलों की वेदियां तोड़ी नहीं गई थी. लोग पूजा स्थलों की वेदियों पर धूप जलाते और बलि चढ़ाते रहे. 44इनके अलावा यहोशाफ़ात ने इस्राएल के राजा के साथ शांति की वाचा बांधी.

45यहोशाफ़ात की बाकी उपलब्धियां, उसके द्वारा किए गए वीरता के काम, और उसके युद्ध कौशल का ब्यौरा यहूदिया के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में किया गया है. 46उसने अपने पिता आसा के शासनकाल से बाकी रह गए अन्य देवताओं के मंदिर में काम कर रहे पुरुष वेश्याओं को निकाल दिया. 47एदोम देश में कोई राजा न था; वहां सिर्फ राजा द्वारा एक दूत चुना गया था.

48यहोशाफ़ात ने दोबारा ओफीर से सोना आयात करने के लिए तरशीश के समान जहाज़ बनाए; मगर वे यात्रा पर जा ही न सके, क्योंकि वे एज़िओन-गेबेर नामक स्थान पर ही टूट गए. 49अहाब के पुत्र अहज़्याह ने यहोशाफ़ात के सामने प्रस्ताव रखा, “जहाजों में अपने सेवकों के साथ मेरे सेवकों को भी ले लीजिए,” मगर यहोशाफ़ात इसके लिए राज़ी न हुआ.

50यहोशाफ़ात हमेशा के लिए अपने पूर्वजों में मिल गया. उसे उसके पूर्वज दावीद के नगर में उसके पूर्वजों के साथ गाड़ा दिया. उसके स्थान पर उसका पुत्र यहोराम राजा हुआ.

इस्राएल पर अहज़्याह का शासन

51यहूदिया के राजा यहोशाफ़ात के शासनकाल के सत्रहवें साल में अहाब के पुत्र अहज़्याह ने शासन करना शुरू किया. 52उसने वह किया, जो याहवेह की दृष्टि में गलत है. उसका स्वभाव अपने पिता और माता और नेबाथ के पुत्र यरोबोअम के समान था, जिन्होंने इस्राएल को पाप के लिए उकसाया था. 53वह बाल की सेवा-उपासना करता था, जिसके द्वारा उसने याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर के क्रोध को भड़काया, ठीक वही सब, जैसा उसके पिता ने किया था.

Persian Contemporary Bible

اول پادشاهان 22:1-53

ميكايای نبی عليه اخاب پيشگويی می‌كند

(دوم تواريخ 18‏:2‏-27)

1در آن زمان، ميان سوريه و اسرائيل سه سال تمام صلح برقرار بود. 2اما در سال سوم، يهوشافاط، پادشاه يهودا به ديدار اخاب، پادشاه اسرائيل رفت. 3اخاب به درباريان خود گفت: «ما تا به حال برای پس گرفتن شهر راموت جلعاد از دست سوری‌ها غافل مانده‌ايم. اين شهر به ما تعلق دارد.»

4آنگاه اخاب از يهوشافاط خواست كه در حمله به راموت جلعاد به او كمک كند.

يهوشافاط گفت: «هر چه دارم مال توست. قوم من قوم توست. همهٔ سوارانم در خدمت تو می‌باشند. 5ولی بگذار اول با خداوند مشورت كنيم.»

6پس اخاب پادشاه، چهارصد نفر از انبيا را احضار كرد و از ايشان پرسيد: «آيا برای تسخير راموت جلعاد به جنگ بروم يا نه؟»

همهٔ آنها يكصدا گفتند: «برو، چون خداوند به تو پيروزی خواهد بخشيد.»

7آنگاه يهوشافاط پرسيد: «آيا غير از اينها نبی ديگری در اينجا نيست تا نظر خداوند را به ما بگويد؟»

8اخاب جواب داد: «چرا، يكنفر به اسم ميكايا پسر يمله هست، كه من از او نفرت دارم، چون هميشه برای من چيزهای بد پيشگويی می‌كند.»

يهوشافاط گفت: «اينطور سخن نگوييد!»

9پس اخاب پادشاه يكی از افراد دربار خود را صدا زد و به او گفت: «برو و ميكايا را هر چه زودتر به اينجا بياور.»

10در اين هنگام هر دو پادشاه در ميدان خرمنگاه، نزديک دروازهٔ شهر سامره با لباسهای شاهانه بر تختهای سلطنتی خود نشسته بودند و تمام انبيا در حضور ايشان پيشگويی می‌كردند. 11يكی از اين انبيا به نام صدقيا، پسر كنعنه، كه شاخهای آهنين برای خود درست كرده بود گفت: «خداوند می‌فرمايد كه شما با اين شاخها، سوريها را تار و مار خواهيد كرد!» 12ساير انبيا هم با او همصدا شده، گفتند: «به راموت جلعاد حمله كن، چون خداوند به تو پيروزی خواهد بخشيد.»

13قاصدی كه به دنبال ميكايا رفته بود، به او گفت: «تمام انبيا پيشگويی می‌كنند كه پادشاه پيروز خواهد شد؛ پس تو نيز چنين پيشگويی كن.»

14ولی ميكايا به او گفت: «به خداوند زنده قسم، هر چه خداوند بفرمايد، همان را خواهم گفت!»

15وقتی ميكايا به حضور پادشاه رسيد، اخاب از او پرسيد: «ای ميكايا، آيا ما به راموت جلعاد حمله كنيم يا نه؟»

ميكايا جواب داد: «البته! چرا حمله نكنی! خداوند تو را پيروز خواهد كرد!»

16پادشاه به او گفت: «چند بار به تو بگويم هر چه خداوند می‌گويد، همان را به من بگو؟»

17آنگاه ميكايا به او گفت: «تمام قوم اسرائيل را ديدم كه مثل گوسفندان بی‌شبان، روی تپه‌ها سرگردانند. خداوند فرمود: اينها صاحب ندارند. به ايشان بگو كه به خانه‌های خود برگردند.»

18اخاب به يهوشافاط گفت: «به تو نگفتم؟ من هرگز حرف خوب از زبان اين مرد نشنيده‌ام!»

19بعد ميكايا گفت: «به اين پيغام خداوند نيز گوش بده! خداوند را ديدم كه بر تخت خود نشسته بود و فرشتگان در حضور او ايستاده بودند. 20آنگاه خداوند فرمود: چه كسی می‌تواند اخاب را فريب دهد تا به راموت جلعاد حمله كند و همانجا كشته شود؟ هر يک از فرشتگان نظری دادند. 21سرانجام روحی جلو آمد و به خداوند گفت: من اين كار را می‌كنم! 22خداوند پرسيد: چگونه؟ روح گفت: من حرفهای دروغ در دهان انبيا می‌گذارم و اخاب را گمراه می‌كنم. خداوند فرمود: تو می‌توانی او را فريب دهی، پس برو و چنين كن.»

23سپس ميكايای نبی گفت: «خداوند روح گمراه كننده در دهان انبيای تو گذاشته است تا به تو دروغ بگويند ولی حقيقت امر اين است كه خداوند می‌خواهد تو را به مصيبت گرفتار سازد.»

24در همين موقع صدقيا پسر كنعنه، جلو رفت و سيلی محكمی به صورت ميكايا زد و گفت: «روح خداوند كی مرا ترک كرد تا به سوی تو آيد و با تو سخن گويد.»

25ميكايا به او گفت: «آن روز كه در اتاقت مخفی شوی، جواب اين سؤال را خواهی يافت!»

26آنگاه اخاب پادشاه گفت: «ميكايا را بگيريد و پيش آمون، فرماندار شهر و يوآش پسرم ببريد. 27از قول من به ايشان بگوييد كه ميكايا را به زندان بيندازند و جز آب و نان چيزی به او ندهند تا من پيروز بازگردم.»

28ميكايا به او گفت: «اگر تو زنده بازگشتی، معلوم می‌شود من هر چه به تو گفتم، از جانب خداوند نبوده است.» بعد رو به حاضران كرد و گفت: «همهٔ شما شاهد باشيد كه من به پادشاه چه گفتم.»

مرگ اخاب

(دوم تواريخ 18‏:28‏-34)

29با وجود اين هشدارها، اخاب، پادشاه اسرائيل و يهوشافاط، پادشاه يهودا به راموت جلعاد لشكركشی كردند. 30اخاب به يهوشافاط گفت: «تو لباس شاهانهٔ خود را بپوش، ولی من لباس ديگری می‌پوشم تا كسی مرا نشناسد.» پس اخاب با لباس مبدل به ميدان جنگ رفت.

31پادشاه سوريه به فرماندهان سی و دو عرابهٔ خود دستور داده بود كه به ديگران زياد توجه نكنند بلكه فقط با خود اخاب بجنگند. 32‏-33پس وقتی آنها يهوشافاط را در لباس شاهانه ديدند گمان كردند كه او همان اخاب، پادشاه اسرائيل است و برگشتند تا به او حمله كنند. اما وقتی يهوشافاط فرياد زد، آنها فهميدند كه او اخاب نيست بنابراين از او دور شدند. 34اما تير يكی از سربازان به طور تصادفی از ميان شكاف زرهٔ اخاب، به او اصابت كرد. اخاب به عرابه‌ران خود گفت: «مجروح شده‌ام. عرابه را برگردان و مرا از ميدان بيرون ببر.»

35جنگ به اوج شدت خود رسيده بود و اخاب نيمه جان به كمک عرابه‌ران خود رو به سوری‌ها در عرابهٔ خود ايستاده بود و خون از زخم او به كف عرابه می‌ريخت تا سرانجام هنگام غروب جان سپرد. 36‏-37آنگاه ندا در داده، گفتند: «ای سربازان اسرائيلی به وطن خود برگرديد. پادشاه مرده است!» پس جنازهٔ اخاب را به شهر سامره بردند و در آنجا به خاک سپردند. 38وقتی عرابه و اسلحهٔ او را در بركهٔ سامره می‌شستند، سگها آمدند و خون او را ليسيدند، درست همانطور كه خداوند فرموده بود.

39شرح بقيهٔ رويدادهای سلطنت اخاب و بنای قصر عاج و شهرهايی كه ساخت در كتاب «تاريخ پادشاهان اسرائيل» نوشته شده است. 40به اين ترتيب اخاب مرد و پسرش اخزيا به جای او در اسرائيل به سلطنت رسيد.

يهوشافاط، پادشاه يهودا

(دوم تواريخ 20‏:31 تا 21‏:1)

41يهوشافاط پسر آسا در سال چهارم سلطنت اخاب، پادشاه يهودا شد. 42يهوشافاط در سن سی و پنج سالگی بر تخت نشست و بيست و پنج سال در اورشليم سلطنت كرد. مادرش عزوبه نام داشت و دختر شلحی بود. 43او هم مثل پدر خود آسا مطابق ميل خداوند عمل می‌كرد، به‌جز در يک مورد و آن اينكه بتخانه‌های روی تپه‌ها را از بين نبرد. پس بنی‌اسرائيل همچنان در آنجا قربانی می‌كردند و بخور می‌سوزاندند. 44از اين گذشته يهوشافاط با اخاب، پادشاه اسرائيل صلح كرد. 45شرح بقيهٔ رويدادهای سلطنت يهوشافاط و جنگها و فتوحات او در كتاب «تاريخ پادشاهان يهودا» نوشته شده است.

46او همچنين لواط‌ان بتخانه‌ها را كه از زمان پدرش آسا هنوز باقی مانده بودند، تمام از بين برد.

47در آن زمان در ادوم پادشاهی نبود، بلكه فرمانداری كه از طرف يهوشافاط معين می‌شد در آنجا حكمرانی می‌كرد.

48يهوشافاط كشتی‌های بزرگ ساخت تا برای آوردن طلا به اوفير بروند. ولی اين كشتيها هرگز به مقصد نرسيدند، چون همهٔ آنها در عصيون جابر شكسته شدند. 49آنگاه اخزيای پادشاه، پسر اخاب به يهوشافاط پيشنهاد كرد تا ملاحان او در كشتيها با كاركنان يهوشافاط همكاری كنند، ولی يهوشافاط قبول نكرد.

50وقتی يهوشافاط مرد، او را در آرامگاه سلطنتی در اورشليم، شهر جدش داوود، دفن كردند و پسر او يهورام به جای او به سلطنت رسيد.

اخزيا، پادشاه اسرائيل

51در سال هفدهم سلطنت يهوشافاط پادشاه يهودا، اخزيا پسر اخاب در سامره پادشاه اسرائيل شد و دو سال سلطنت كرد. 52ولی او نيز مثل يربعام و پدر و مادر خود نسبت به خداوند گناه ورزيد و بنی‌اسرائيل را به گناه كشاند. 53او مانند پدرش به عبادت بت بعل پرداخت و به اين وسيله خداوند، خدای اسرائيل را خشمگين نمود.