गणना 35 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

गणना 35:1-34

लेवियों के लिए ठहराये गये नगर

1इसके बाद याहवेह ने मोआब के मैदानों में येरीख़ो के सामने मोशेह को ये निर्देश दिए, 2“इस्राएलियों को यह आदेश दे देना कि वे अपनी मीरास में से अपने निज भाग की भूमि में से लेवियों को दे दें, कि वे उनमें रह सकें. तुम लेवियों को नगरों के आस-पास चराइयां भी दे दोगे. 3वे नगर उनके रहने के लिए हो जाएंगे तथा चराइयां उनके पशुओं, भेड़ों तथा सारे पशुओं के लिए.

4“वे, चराइयां, जो इन नगरों के चरागाह, जो तुम लेवियों को दे दोगे, उनका फैलाव होगा नगर की दीवार से लेकर बाहर की ओर चारों ओर साढ़े चार सौ मीटर होगा. 5तुम नगर के बाहर, उत्तर दिशा में नौ सौ मीटर, दक्षिण दिशा में नौ सौ मीटर, पूर्व दिशा में नौ सौ मीटर, तथा पश्चिम दिशा में नौ सौ मीटर प्रमाण नापोगे, जिससे वह नगर इस पूरे क्षेत्र के बीच में हो जाएगा. यह क्षेत्र उस नगर से संबंधित उनकी चराई हो जाएगा.

शरण के शहर

6“वे नगर, जो तुम लेवियों को दे दोगे, छः शरण शहर होंगे, जो तुम उस खूनी के लिए रख दोगे, जो भागकर यहां आएगा. इनके अलावा तुम बयालीस नगर और भी दे दोगे. 7लेवियों को दिए गए सारे नगरों की संख्या होगी अड़तालीस; और इनके साथ उनकी चराइयां भी शामिल हैं. 8यह ध्यान रहे कि तुम वे नगर, जो इस्राएलियों से लेकर लेवियों को दोगे, बहुत बड़े क्षेत्रफल के कुलों से अधिक नगर तथा छोटे क्षेत्रफल के कुलों से कम नगर बांट दोगे, हर एक गोत्र अपनी-अपनी मीरास के अनुपात में कुछ नगर लेवियों के लिए दान करेगा.”

9इसके बाद याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी, 10“इस्राएलियों से यह कहो: ‘जब तुम यरदन पार कर कनान देश में प्रवेश करोगे, 11तब तुम स्वयं वे नगर ठहराना, जो तुम्हारे शरण शहर होंगे, कि जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति की हत्या भूल से हो गई हो, वह भागकर इन नगरों में आ छिपे. 12ये नगर तुम्हारे लिए पलटा लेनेवाले से सुरक्षा के शरण होंगे, कि सभा के सामने बिना न्याय का कार्य पूरा हुए उस हत्यारे को प्राण-दंड न दे दिया जाए. 13वे नगर, जो तुम इस उद्देश्य से दोगे, तुम्हारे लिए छः शरण शहर नगर लिखे होंगे. 14तीन नगर तो तुम यरदन के पार दोगे तथा तीन कनान देश में; ये सभी शरण शहर होंगे. 15ये छः नगर इस्राएलियों के लिए तथा विदेशी के लिए तथा उनके बीच बसे लोगों के लिए शरण नगर ठहरेंगे, कि वह व्यक्ति, जिससे किसी की हत्या भूल से हो गई है, भागकर यहां शरण ले.

16“ ‘किंतु यदि उसने वार के लिए लोहे का इस्तेमाल किया था, जिससे वह मृत्यु का कारण हो गया, वह व्यक्ति हत्यारा है. हत्यारे का दंड मृत्यु ही है. 17यदि उस व्यक्ति ने हाथ में पत्थर लेकर उससे वार किया था, कि उसकी मृत्यु हो जाए और उसकी मृत्यु हो ही गई, वह व्यक्ति हत्यारा है; हत्यारे को निश्चित ही मृत्यु दंड दिया जाए. 18अथवा उसने अपने हाथ में कोई लकड़ी की वस्तु लेकर वार किया हो, कि इससे उसकी मृत्यु हो जाए और परिणामस्वरूप इस व्यक्ति की मृत्यु हो ही गई है, 19तो वह व्यक्ति हत्यारा है; हत्यारे को निःसंदेह मृत्यु दंड दिया जाए. 20यदि घृणा के कारण उसने उस व्यक्ति को धक्का दे दिया है या घात लगाकर कोई वस्तु उस पर फेंकी है, जिससे उसकी मृत्यु हो गई, 21या शत्रुता में उसने उस पर अपने हाथ से ही वार कर दिया हो, परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई है; तो जिस व्यक्ति ने ऐसा वार किया है, उसे निश्चित ही मृत्यु दंड दे दिया जाए; वह हत्यारा है, जैसे ही बदला लेनेवाला उसे पाए, उसकी हत्या कर दे.

22“ ‘किंतु यदि बिना किसी शत्रुता के, उसके द्वारा भूल से धक्का लगने पर या बिना घात लगाए उसने उस पर कोई वस्तु फेंक दी हो, 23या कोई भी पत्थर की घातक वस्तु को उसने बिना स्थिति का ध्यान रखे ऊंचे स्थान से नीचे गिरा दिया है और उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, जबकि न तो उससे उसकी शत्रुता थी और न उसकी मंशा उसकी हानि करने की थी, 24इस स्थिति में सारी सभा इन्हीं नियमों के आधार पर हत्यारे तथा बदला लेनेवाले के बीच न्याय करेगी. 25सारी सभा हत्यारे को बदला लेनेवाले से छुड़ाकर उसे शरण शहर में लौटा देगी, जहां वह तत्कालीन, पवित्र तेल से अभिषिक्त महापुरोहित की मृत्यु तक निवास करता रहेगा.

26“ ‘किंतु यदि हत्यारा किसी भी अवसर पर अपने इस शरण शहर की सीमा से बाहर निकल जाए, जहां वह भागकर आया हुआ था 27और इस स्थिति में बदला लेनेवाला उसे नगर सीमा के बाहर पकड़ लेता है और वहीं उसकी हत्या कर देता है, तो बदला लेनेवाले को हत्या का दोषी नहीं माना जा सकेगा. 28क्योंकि सही तो यही था कि वह शरण शहर में ही महापुरोहित की मृत्यु होने तक सीमित रहता. महापुरोहित की मृत्यु के बाद ही वह अपने मीरास के नगर को लौट सकता था.

29“ ‘ये सभी तुम्हारे लिए सारी पीढ़ियों के लिए तुम्हारे सारे घरों में न्याय की विधि होगी.

30“ ‘कोई भी व्यक्ति यदि किसी की हत्या कर देता है, गवाहों की गवाही के आधार पर हत्यारे को मृत्यु दंड दिया जाए, किंतु एक व्यक्ति की गवाही पर किसी को भी मृत्यु दंड न दिया जाए.

31“ ‘इसके अलावा, हत्या के दोषी से तुम उसके प्राण दान के बदले मूल्य स्वीकार नहीं करोगे. तुम उसे निश्चय ही मृत्यु दंड दोगे.

32“ ‘तुम उस व्यक्ति से बदले में मूल्य नहीं लोगे, जो अपने शरण शहर से भागा हुआ है, कि वह महापुरोहित की मृत्यु के पहले ही अपने देश जाकर रह सके.

33“ ‘इसलिये तुम उस देश को अपवित्र न करो, जिसमें तुम रह रहे हो; क्योंकि रक्त भूमि को अपवित्र करता है और उस भूमि के लिए कोई भी प्रायश्चित किया जाना संभव नहीं है, जिस पर रक्त बहा दिया गया है, सिवाय उसी के रक्त के, जिसके द्वारा वह रक्त बहाया गया था. 34तुम उस देश में निवास करते हो, तुम उसे अपवित्र नहीं करोगे, जिसके बीच में मेरा निवास है; क्योंकि मैं, वह याहवेह हूं, जिनका निवास इस्राएलियों के बीच में है.’ ”

Ketab El Hayat

العدد 35:1-34

مدن اللاويين

1ثُمَّ قَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى فِي سُهُولِ مُوآبَ بِالْقُرْبِ مِنْ نَهْرِ الأُرْدُنِّ مُقَابِلَ أَرِيحَا 2«أَوْصِ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنْ يُعْطُوا اللّاوِيِّينَ مِمَّا يَرِثُونَ مُدُناً يَسْكُنُونَهَا، وَمَا حَوْلَهَا مِنْ مَرَاعٍ 3فَتَكُونُ الْمُدُنُ لإِقَامَتِهِمْ فِيهَا، وَأَرَاضِيهَا الْمُحِيطَةُ مَرَاعِيَ لِبَهَائِمِهِمْ وَمَوَاشِيهِمْ وَسَائِرِ حَيَوَانَاتِهِمْ. 4وَتَمْتَدُّ أَرْضُ الْمَرَاعِي الَّتِي تُعْطُونَهَا لِلّاوِيِّينَ مِنْ سُورِ الْمَدِينَةِ إِلَى الْخَارِجِ، أَلْفَ ذِرَاعٍ (نَحْوَ خَمْسِ مِئَةِ مِتْرٍ) فِي كُلِّ اتِّجَاهٍ. 5فَقِيسُوا مِنْ خَارِجِ الْمَدِينَةِ فِي الْجَانِبِ الشَّرْقِيِّ أَلْفَيْ ذِرَاعٍ (نَحْوَ أَلْفِ مِتْرٍ). وَفِي الْجَانِبِ الْجَنُوبِيِّ أَلْفَيْ ذِرَاعٍ (نَحْوَ أَلْفِ مِتْرٍ). وَفِي الْجَانِبِ الْغَرْبِيِّ أَلْفَيْ ذِرَاعٍ (نَحْوَ أَلْفِ مِتْرٍ)، وَفِي الْجَانِبِ الشِّمَالِيِّ أَلْفَيْ ذِرَاعٍ (نَحْوَ أَلْفِ مِتْرٍ)، وَتَكُونُ الْمَدِينَةُ فِي الْوَسَطِ.

مدن الملجأ

6وَتُعْطُونَ اللّاوِيِّينَ سِتَّ مُدُنٍ لِلْمَلْجَأِ يَهْرُبُ إِلَيْهَا الْقَاتِلُ، وَأَيْضاً اثْنَتَيْنِ وَأَرْبَعِينَ مَدِينَةً. 7وَهَكَذَا تَكُونُ جُمْلَةُ الْمُدُنِ الَّتِي تُعْطُونَهَا لِلّاوِيِّينَ ثَمَانِيَ وَأَرْبَعِينَ مَدِينَةً مَعَ مَرَاعِيهَا.

8وَالْمُدُنُ الَّتِي تُعْطُونَهَا لِلّاوِيِّينَ مِمَّا يَمْلِكُهُ الإِسْرَائِيلِيُّونَ، تُعْطُونَهَا بِمَا يَتَنَاسَبُ مَعَ مِيرَاثِ كُلِّ سِبْطٍ: خُذُوا مُدُناً أَكْثَرَ مِنَ السِّبْطِ الَّذِي يَمْلِكُ عَدَداً أَكْبَرَ، وَخُذُوا مُدُناً أَقَلَّ مِنَ السِّبْطِ الَّذِي يَمْلِكُ الْقَلِيلَ، فَيُعْطِيَ كُلُّ سِبْطٍ مِنْ مُدُنِهِ بِمَا يَتَنَاسَبُ مَعَ مِيرَاثِهِ».

9وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: 10«أَوْصِ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَقُلْ لَهُمْ: إِنَّكُمْ لابُدَّ عَابِرُونَ نَهْرَ الأُرْدُنِّ إِلَى أَرْضِ كَنْعَانَ، 11فَعَيِّنُوا لأَنْفُسِكُمْ مُدُناً تَكُونُ مَلْجَأً لَكُمْ يَلُوذُ بِها مَنْ يَقْتُلُ أَحَداً عَنْ غَيْرِ عَمْدٍ، 12فَتَكُونَ لَكُمُ الْمُدُنُ مَلْجَأً يَلُوذُ بِها الْقَاتِلُ مِنْ وَلِيِّ الْقَتِيلِ، لِئَلّا يَمُوتَ قَبْلَ أَنْ يَمْثُلَ أَمَامَ الْقَضَاءِ. 13أَمَّا الْمُدُنُ الَّتِي تُعَيِّنُونَهَا لِتَكُونَ لَكُمْ مَلاجِئَ فَهِيَ سِتُّ مُدُنٍ: 14ثَلاثٌ مِنْهَا فِي شَرْقِيِّ نَهْرِ الأُرْدُنِّ، وَثَلاثٌ أُخْرَى فِي أَرْضِ كَنْعَانَ، وَجَمِيعُهَا تَكُونُ مُدُنَ مَلْجَإٍ، 15يَلُوذُ بِها كُلُّ مَنْ قَتَلَ نَفْساً عَنْ غَيْرِ عَمْدٍ، سَوَاءٌ كَانَ الْقَاتِلُ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَمْ مِنَ الْغُرَبَاءِ أَوِ الْمُسْتَوْطِنِينَ فِي وَسَطِهِمْ. فَتَكُونُ هَذِهِ الْمُدُنُ السِّتُّ لِلْمَلْجَإِ.

16إِنْ ضَرَبَ أَحَدٌ إِنْسَاناً بِأَدَاةٍ حَدِيدِيَّةٍ وَمَاتَ الْمَضْرُوبُ فَهُوَ قَاتِلٌ، وَالْقَاتِلُ يُقْتَلُ. 17وَإِنْ ضَرَبَهُ بِحَجَرٍ فِي يَدِهِ أَدَّى إِلَى مَوْتِهِ فَهُوَ قَاتِلٌ، وَالْقَاتِلُ يُقْتَلُ. 18أَوْ ضَرَبَهُ بِقِطْعَةِ خَشَبٍ قَاتِلَةٍ فَهُوَ قَاتِلٌ، وَالْقَاتِلُ يُقْتَلُ. 19وَمِنْ حَقِّ وَلِيِّ الدَّمِ أَنْ يَقْتُلَ الْقَاتِلَ إِذَا صَادَفَهُ. 20إِنْ دَفَعَ أَحَدٌ شَخْصاً مِنْ فَرْطِ كَرَاهِيَّتِهِ لَهُ أَوْ أَلْقَى عَلَيْهِ شَيْئاً عَمْداً أَفْضَى إِلَى مَوْتِهِ، 21أَوْ ضَرَبَهُ بِيَدِهِ بِفِعْلِ عَدَاوَتِهِ لَهُ فَمَاتَ، فَالضَّارِبُ يُقْتَلُ لأَنَّهُ قَاتِلٌ. وَمِنْ حَقِّ وَلِيِّ الدَّمِ أَنْ يَقْتُلَ الْقَاتِلَ إِذَا صَادَفَهُ. 22وَلَكِنْ إِنْ دَفَعَ أَحَدٌ شَخْصاً، لَا يَكِنُّ لَهُ عَدَاوَةً، أَوْ أَلْقَى عَلَيْهِ أَدَاةً مَا مِنْ غَيْرِ عَمْدٍ، 23أَوْ أَسْقَطَ عَلَيْهِ حَجَراً قَاتِلاً مِنْ غَيْرِ أَنْ يَرَاهُ، فَمَاتَ، وَلَمْ يَكُنْ يُضْمِرُ لَهُ عَدَاوَةً أَوْ يَسْعَى إِلَى أَذِيَّتِهِ، 24يَفْصِلُ آنَئِذٍ الْقَضَاءُ بَيْنَ الْقَاتِلِ وَطَالِبِ الثَّأْرِ، بِمُقْتَضَى هَذِهِ الأَحْكَامِ. 25وَتُنْقِذُ الْجَمَاعَةُ الْقَاتِلَ مِنْ يَدِ وَلِيِّ الدَّمِ، وَتَرُدُّهُ إِلَى مَدِينَةِ الْمَلْجَإِ الَّتِي لاذَ بِها، فَيُقِيمُ فِيهَا إِلَى أَنْ يَمُوتَ رَئِيسُ الْكَهَنَةِ الْمَمْسُوحُ بِالدُّهْنِ الْمُقَدَّسِ. 26وَلَكِنْ إِنْ تَخَطَّى الْقَاتِلُ حُدُودَ مَدِينَةِ مَلْجَئِهِ الَّتِي لاذَ بِها، 27وَالْتَقَاهُ وَلِيُّ الدَّمِ خَارِجَ حُدُودِ مَدِينَةِ مَلْجَئِهِ وَقَتَلَهُ، فَلا يُطَالَبُ بِدَمِهِ. 28لأَنَّ عَلَيْهِ أَنْ يَظَلَّ مُقِيماً فِي مَدِينَةِ مَلْجَئِهِ إِلَى أَنْ يَمُوتَ رَئِيسُ الْكَهَنَةِ، وَبَعْدَهَا يَرْجِعُ الْقَاتِلُ إِلَى أَرْضِ مِيرَاثِهِ. 29فَتَكُونُ لَكُمْ هَذِهِ فَرِيضَةَ قَضَاءٍ، جِيلاً بَعْدَ جِيلٍ، حَيْثُ تُقِيمُونَ. 30كُلُّ مَنْ يَقْتُلُ نَفْساً يُحْكَمُ عَلَيْهِ بِالْمَوْتِ بِشَهَادَةِ شُهُودٍ، وَلَكِنْ لَا يُحْكَمُ عَلَى أَحَدٍ بِالْمَوْتِ بِشَهَادَةِ شَاهِدٍ وَاحِدٍ فَقَطْ.

31لَا تَقْبَلُوا فِدْيَةً عَنْ نَفْسِ الْقَاتِلِ الَّذِي وَجَبَ عَلَيْهِ الْحُكْمُ بِالْمَوْتِ، بَلْ يَجِبُ أَنْ يُقْتَلَ. 32وَلا تَقْبَلُوا فِدْيَةً مِنَ الْقَاتِلِ غَيْرِ الْمُتَعَمِّدِ الَّذِي لاذَ بِمَدِينَةِ مَلْجَئِهِ لِيَرْجِعَ لِلإِقَامَةِ فِي أَرْضِهِ قَبْلَ وَفَاةِ رَئِيسِ الْكَهَنَةِ. 33لَا تُدَنِّسُوا الأَرْضَ الَّتِي أَنْتُمْ فِيهَا، لأَنَّ سَفْكَ الدَّمِ يُدَنِّسُ الأَرْضَ، وَلا يُكَفَّرُ عَنِ الأَرْضِ الَّتِي سُفِكَ عَلَيْهَا الدَّمُ إِلا بِدَمِ السَّافِكِ. 34لَا تُنَجِّسُوا الأَرْضَ الَّتِي أَنْتُمْ مُقِيمُونَ فِيهَا وَحَيْثُ أَنَا سَاكِنٌ فِي وَسَطِهَا، لأَنِّي أَنَا الرَّبُّ سَاكِنٌ فِي وَسَطِ بَنِي إِسْرَائِيلَ».