एस्तेर 9 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

एस्तेर 9:1-32

1बारहवें महीने, आदार की तेरह तारीख पर राजा का आदेश तथा राजाज्ञा का पूरा होना निर्धारित था. यहूदियों के शत्रु इस प्रतीक्षा में थे, कि वे यहूदियों को पराजित कर लेंगे; किंतु परिस्थिति विपरीत हो गई-यहूदियों ने अपने शत्रुओं को हरा दिया. 2राजा अहषवेरोष के सारे साम्राज्य में यहूदी अपने-अपने नगरों में एकत्र होते गए, कि वे उन्हें घात कर सकें, जिन्होंने उनको नष्ट करने के लिए युक्ति बनाई थी. कोई भी यहूदियों का सामना करने में समर्थ न रहा, क्योंकि जनसाधारण पर यहूदियों का भय छा चुका था. 3यहां तक कि सारे राज्यों के हाकिमों, उपराज्यपालों, राज्यपालों तथा राजा के कर्मचारियों पर मोरदकय का ऐसा सशक्त आतंक छाया हुआ था, कि वे यहूदियों के पक्ष में होकर उनकी सहायता में लग गए. 4राजा के सांसदों में मोरदकय ऊंचे पद पर नियुक्त था. उसकी कीर्ति सर्वत्र समस्त साम्राज्य के राज्यों में फैल चुकी थी. मोरदकय का प्रभाव बढ़ता और मजबूत होता चला गया.

5यहूदी अपने सारे शत्रुओं को तलवार से संहार करते चले गए, उन्हें नष्ट करते रहे; वे अपने शत्रुओं के साथ वही करते गए, जो उन्हें उस अवसर पर ठीक लगे. 6राजधानी शूशन में यहूदियों ने पांच सौ व्यक्तियों को नष्ट कर दिया. 7इनके अलावा परशनदाथा, दलफ़ोन, असपाथा, 8पोराथा, अदलया, अरीदाथा, 9परमशथा, अदीसय, अरिदय, वयज़ाथा, 10यहूदियों के शत्रु और हम्मेदाथा के पुत्र, हामान के इन दस पुत्रों की भी हत्या कर दी गई; किंतु यहूदियों ने इनकी संपत्ति नहीं लूटी.

11राजा को राजधानी शूशन के पुरुषों की गिनती की सूचना उसी दिन दे दी गई थी. 12राजा ने रानी एस्तेर को बताया, “राजधानी शूशन में तो यहूदियों ने पांच सौ पुरुषों तथा हामान के दस पुत्रों का संहार कर दिया है शेष राज्यों में क्या किया होगा उन्होंने! अब यह बताओ तुम्हारा आग्रह क्या है? वह पूर्ण किया जाएगा. इसके अलावा और क्या चाहती हो तुम? वह भी तुम्हारे लिए पूर्ण किया जाएगा.”

13एस्तेर ने उत्तर दिया, “यदि यह राजा को उपयुक्त लगे, शूशनवासी यहूदियों को कल भी आज की राजाज्ञा के अनुरूप करने की अनुमति मिले. हामान के दसों पुत्रों को फांसी पर लटका दिया जाए.”

14तब राजा ने आदेश प्रसारित किया कि ऐसा ही किया जाए. इस पर शूशन में एक राजाज्ञा प्रसारित की गई और हामान के दसों पुत्रों को लटका दिया गया. 15अदार महीने की चौदहवीं तिथि पर भी शूशनवासी यहूदी एकजुट हो गए तथा उन्होंने शूशन में तीन सौ व्यक्तियों की हत्या कर दी; किंतु उन्होंने कोई भी सामान नहीं लूटा.

16समस्त साम्राज्य के राज्यों में निवास कर रहे यहूदी भी एकत्र हुए कि वे अपने प्राणों की रक्षा कर सकें तथा अपने शत्रुओं का उन्मूलन कर सकें. उन्होंने अपने 75,000 शत्रुओं का हत्या कर दी, किंतु उन्होंने उनकी सामग्री नहीं लूटी. 17उन्होंने यह अदार माह की तेरहवीं तारीख पर पूरा कर दिया था. चौदहवीं तिथि को छुट्टी करते हुए उन्होंने इसे उत्सव एवं उल्लास मनाने का दिन ठहराया.

18किंतु वे यहूदी, जो शूशनवासी थे, इसी माह की तेरहवीं तथा चौदहवीं तिथि पर जमा हुए थे और उन्होंने पन्द्रहवीं तारीख खुशी भरी छुट्टी करते हुए उत्सव मनाया.

19इसके आधार पर उन यहूदियों ने, जिनका निवास गांव क्षेत्रों में था, अदार महीने की चौदहवीं तारीख को उत्सव मना लिया, कि वे इसमें उत्सव मनाते हुए खुशियां मना सकें. उन्होंने आपस में भोजन व्यंजनों का आदान-प्रदान भी किया.

पुरीम उत्सव की संस्थापना

20इन सारी घटनाओं के बाद मोरदकय ने इन सारी घटनाओं को लिखकर राजा अहषवेरोष के सारे साम्राज्य के यहूदियों को पत्रों में प्रेषित किया, निकट तथा दूर सभी को. 21इसमें उन्होंने यह आदेश दिया था, कि अदार महीने की चौदहवीं एवं पन्द्रहवीं तिथियों पर प्रति वर्ष उत्सव मनाया जाए. 22यह इस बात का स्मारक था, कि इन दो दिनों में यहूदियों ने अपने शत्रुओं पर विजय पायी थी, यह वह महीना था, जिसमें उनका विलाप आनंद में तथा दुःख उत्सव में बदल गया था. उत्सव के इन दो दिनों में वे उल्लास के साथ आपस में भोजन व्यंजनों का आदान-प्रदान करें तथा गरीबों को उपहार दिया करें.

23यहूदी इस समय के लिए सहमत हो गए-जैसा उन्हें मोरदकय द्वारा आदेश दिया गया था. 24क्योंकि यहूदियों के शत्रु अगागी हम्मेदाथा के पुत्र हामान ने यहूदियों को मिटा डालने की योजना बनाई थी, और पूर अर्थात् चिट्ठियां डाली थी, कि उन्हें मिटाकर पूरी तरह से नष्ट कर दे. 25किंतु जब यह बात राजा की जानकारी में आयी, उसने राजाज्ञा प्रसारित की, कि वह योजना, जो हामान ने यहूदियों के संबंध में बनाई थी, स्वयं उसी पर प्रयोग में लाई गई, तथा उसके पुत्र फांसी पर लटका दिए गए. 26यही कारण है कि इन दो दिनों को पुर शब्द के आधार पर पुरीम कहना प्रचलित हो गया. इस राजाज्ञा के कारण तथा इसके अलावा संपूर्ण घटना में उनके साथ जो कुछ घटित हुआ तथा जो कुछ स्वयं उन्होंने देखा, 27यहूदियों ने यह संकल्प लिया, कि वे तथा उनके वंश इन लिखित संदेशों के अनुसार बिना चूक के, प्रति वर्ष इन दो ठहराए हुए दिनों पर यह उत्सव मनाया करेंगे. 28ये दो दिन अब हर एक पीढ़ी द्वारा, परिवारों द्वारा, राज्यों एवं नगरों द्वारा स्मरण किए जाते तथा उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं, कि पुरीम के ये दो दिन यहूदियों के जीवन में कभी न मिटने दें.

29अबीहाइल की पुत्री रानी एस्तेर ने यहूदी मोरदकय के साथ मिलकर पूर्ण अधिकार के साथ पुरीम संबंधी आज्ञा पत्र की पुष्टि करते हुए एक और आज्ञा दे दी. 30मोरदकय ने राजा अहषवेरोष के साम्राज्य के समस्त 127 राज्यों में निवास कर रहे यहूदियों को चिट्ठियां लिखी जिसमें शांति और आश्वासन का संदेश भेजा 31कि पुरीम के ठहराए हुए समय पर इन दो दिनों की पुष्टि की जाए, ठीक जैसा यहूदी मोरदकय तथा रानी एस्तेर ने इन्हें उनके लिए ठहराया था, तथा ठीक जैसा उन्होंने स्वयं अपने लिए तथा अपनी आनेवाली पीढ़ियों के लिए उपवास एवं विलाप के संदेश निर्धारित किए थे. 32एस्तेर के आदेश पर पुरीम के लिए यह विधि तय कर दी गई थी. तथा इसे पुस्तक में लिख दिया गया.

Ketab El Hayat

أستير 9:1-32

انتصار اليهود

1وَفِي الْيَوْمِ الثَّالِثَ عَشَرَ مِنَ الشَّهْرِ الثَّانِي عَشَرَ، (آذَارَ – مَارِسَ)، حِينَ آنَ أَوَانُ تَنْفِيذِ أَمْرِ الْمَلِكِ وَحُكْمِهِ، وَهُوَ الْيَوْمُ الَّذِي كَانَ فِيهِ أَعْدَاءُ الْيَهُودِ يَرْجُونَ التَّسَلُّطَ عَلَيْهِمِ، انْقَلَبَ المَوْقِفُ ضِدَّهُمْ، فَتَسَلَّطَ الْيَهُودُ عَلَى أَعْدَائِهِمْ. 2وَتَجَمَّعَ الْيَهُودُ فِي مُدُنِهِمْ فِي كُلِّ أَرْجَاءِ دِيَارِ الْمَلِكِ أَحَشْوِيرُوشَ لِيُدَافِعُوا عَنْ أَنْفُسِهِمْ ضِدَّ السَّاعِينَ لإِيذَائِهِمْ، فَلَمْ يَجْرُؤْ أَحَدٌ عَلَى مُجَابَهَتِهِمْ لأَنَّ الرُّعْبَ مِنْهُمْ هَيْمَنَ عَلَى جَمِيعِ الأُمَمِ، 3وَقَامَ رُؤَسَاءُ الأَقَالِيمِ وَالْحُكَّامُ وَالْوُلاةُ وَوُكَلاءُ الْمَلِكِ بِمُسَاعَدَةِ الْيَهُودِ خَوْفاً مِنْ مُرْدَخَايَ، 4لأَنَّهُ أَصْبَحَ يَتَمَتَّعُ بِنُفُوذٍ عَظِيمٍ فِي قَصْرِ الْمَلِكِ، وَذَاعَ صِيتُهُ فِي كُلِّ الأَقَالِيمِ، بَعْدَ أَنْ تَزَايَدَتْ شُهْرَتُهُ وَعَظَمَتُهُ.

5وَقَهَرَ الْيَهُودُ جَمِيعَ أَعْدَائِهِمْ وَقَتَلُوهُمْ بِالسَّيْفِ وَأَهْلَكُوهُمْ، وَفَعَلُوا بِهِمْ مَا شَاءُوا، 6فَأَبَادُوا فِي الْعَاصِمَةِ شُوشَنَ خَمْسَ مِئَةِ رَجُلٍ.

7كَمَا قَتَلُوا فَرْشَنْدَاثَا وَدَلْفُونَ وَأَسْفَاثَا، 8وَفُورَاثَا وَأَدَلْيَا وَأَرِيدَاثَا، 9وَفَرْمَشْتَا وَأَرِيسَايَ وَأَرِيدَايَ وَيِزَاثَا، 10وَهُمْ عَشَرَةُ أَبْنَاءٍ لِهَامَانَ بْنِ هَمَداثَا عَدُوِّ الْيَهُودِ، وَلَكِنَّهُمْ لَمْ يُقْدِمُوا إِطْلاقاً عَلَى النَّهْبِ.

11فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ رُفِعَ تَقْرِيرٌ بِعَدَدِ الْقَتْلَى فِي الْعَاصِمَةِ شُوشَنَ إِلَى الْمَلِكِ، 12فَقَالَ الْمَلِكُ لأَسْتِيرَ الْمَلِكَةِ: «إنْ كَانَ الْيَهُودُ قَدْ قَتَلُوا فِي الْعَاصِمَةِ شُوشَنَ وَحْدَهَا خَمْسَ مِئَةِ رِجُلٍ، فَضْلاً عَنْ أَبْنَاءِ هَامَانَ الْعَشَرَةِ، فَكَمْ قَتَلُوا فِي بَاقِي أَقَالِيمِ الْمَلِكِ؟ وَالآنَ مَا هُوَ سُؤْلُكِ فَأُلَبِّيَهُ، وَمَا هِيَ طِلْبَتُكِ فَأَقْضِيَهَا لَكِ؟» 13فَأَجَابَتْ: «إِنْ طَابَ لِلْمَلِكِ فَلْيُؤْذَنْ لِلْيَهُودِ فِي شُوشَنَ الْعَاصِمَةِ أَنْ يَفْعَلُوا غَداً مَا فَعَلُوهُ الْيَوْمَ وَيَصْلِبُوا أَبْنَاءَ هَامَانَ الْعَشَرَةَ عَلَى خَشَبَةٍ». 14فَأَمَرَ الْمَلِكُ بِتَنْفِيذِ الطَّلَبِ، وَأَصْدَرَ مَرْسُوماً بِذَلِكَ فِي شُوشَنَ الْعَاصِمَةِ، وَصَلَبُوا أَبْنَاءَ هَامَانَ الْعَشَرَةَ.

15ثُمَّ اجْتَمَعَ الْيَهُودُ الْمُقِيمُونَ فِي الْعَاصِمَةِ شُوشَنَ فِي الْيَوْمِ الرَّابِعَ عَشَرَ أَيْضاً مِنْ شَهْرِ آذَارَ، وَقَتَلُوا ثَلاثَ مِئَةِ رَجُلٍ، وَلَكِنَّهُمْ لَمْ يُقْدِمُوا عَلَى النَّهْبِ.

16كَمَا تَآزَرَ الْيَهُودُ الْبَاقُونَ الْمُنْتَشِرُونَ فِي أَقَالِيمِ الْمَلِكِ وَدَافَعُوا عَنْ أَنْفُسِهِمْ وَاسْتَرَاحُوا مِنْ أَعْدَائِهِمْ، بَعْدَ أَنْ قَتَلُوا خَمْسَةً وَسَبْعِينَ أَلْفاً مِنْهُمْ، وَلَكِنَّهُمْ لَمْ يُقْدِمُوا عَلَى النَّهْبِ. 17حَدَثَ هَذَا فِي الْيَوْمِ الثَّالِثَ عَشَرَ مِنْ شَهْرِ آذَارَ، وَاسْتَرَاحُوا فِي الْيَوْمِ الرَّابِعَ عَشَرَ مِنْهُ، حَيْثُ احْتَفَلُوا فِيهِ شَارِبِينَ فَرِحِينَ.

الاحتفال بالفوريم

18أَمَّا يَهُودُ شُوشَنَ الْعَاصِمَةِ فَقَدِ اجْتَمَعُوا لِلدِّفَاعِ عَنْ أَنْفُسِهِمْ فِي الْيَوْمَيْنِ الثَّالِثَ عَشَرَ وَالرَّابِعَ عَشَرَ مِنْهُ، ثُمَّ اسْتَرَاحُوا فِي الْيَوْمِ الْخَامِسِ عَشَرَ، حَيْثُ احْتَفَلُوا فِيهِ شَارِبينَ فَرِحِينَ. 19لِهَذَا يَحْتَفِلُ الْيَهُودُ الْمُقِيمُونَ فِي مُدُنِ الْمَنَاطِقِ الرِّيفِيَّةِ بِالْيَوْمِ الرَّابِعَ عَشَرَ مِنْ آذَارَ إِلَى هَذَا الْيَوْمِ، فَيُقِيمُونَ الْوَلائِمَ وَيَبْتَهِجُونَ وَيَتَبَادَلُونَ الْهَدَايَا.

20وَدَوَّنَ مُرْدَخَايُ هَذِهِ الأَحْدَاثَ، وَبَعَثَ بِرَسَائِلَ إِلَى جَمِيعِ الْيَهُودِ الْقَرِيبِينَ مِنْهُ وَالْبَعِيدِينَ، الْمُنْتَشِرِينَ فِي كُلِّ أَنْحَاءِ مَمْلَكَةِ فَارِسَ، 21يَحُثُّهُمْ عَلَى الاحْتِفَالِ فِي كُلِّ سَنَةٍ فِي الْيَوْمَيْنِ الرَّابِعَ عَشَرَ وَالْخَامِسَ عَشَرَ مِنْ شَهْرِ آذَارَ. 22وَهُمَا الْيَوْمَانِ اللَّذَانِ اسْتَراحَ فِيهِمَا الْيَهُودُ مِنْ أَعْدَائِهِمْ، وَهُوَ الشَّهْرُ الَّذِي تَحَوَّلَ عِنْدَهُمْ مِنْ شَهْرِ حُزْنٍ إِلَى شَهْرِ فَرَحٍ، وَمِنْ نُوَاحٍ إِلَى احْتِفَالٍ، فَيَجْعَلُونَهُمَا يَوْمَيْ شُرْبٍ وَفَرَحٍ وَتَبَادُلِ هَدَايَا وَإِحْسَانٍ إِلَى الْفُقَرَاءِ. 23فَقَبِلَ الْيَهُودُ مَا عَرَضَهُ عَلَيْهِمْ مُرْدَخَايُ، وَاسْتَمَرُّوا يَحْتَفِلُونَ بِذَلِكَ الْيَوْمِ فِي كُلِّ سَنَةٍ، 24تَذْكَاراً لِمُؤَامَرَةِ هَامَانَ بْنِ هَمَدَاثَا الأَجَاجِيِّ عَدُوِّ الْيَهُودِ، الَّذِي سَعَى لإِبَادَتِهِمْ، وَأَلْقَى الْقُرْعَةَ، أَيْ الْفُورَ لإِفْنَائِهِمْ وَإِهْلاكِهِمْ. 25وَلَكِنْ حَالَمَا لَفَتَتْ أَسْتِيرُ انْتِبَاهَ الْمَلِكِ إِلَى الْمُؤَامَرَةِ أَصْدَرَ مَرْسُوماً ارْتَدَّ فِيهِ كَيْدُ هَامَانَ الَّذِي كَادَهُ لِلْيَهُودِ عَلَى رَأْسِهِ، وَتَمَّ صَلْبُهُ مَعَ أَبْنَائِهِ عَلَى خَشَبَةٍ. 26لِهَذَا دُعِيَ هَذَانِ الْيَوْمَانِ فُورِيمَ عَلَى اسْمِ «الْفُورِ» مِنْ أَجْلِ مَا وَرَدَ فِي هَذِهِ الرِّسَالَةِ وَمِنْ جَرَّاءِ مَا شَاهَدُوهُ مِنْ ذَلِكَ وَمَا أَحْدَقَ بِهِمْ مِنْ خَطَرٍ، 27وَوَافَقَ الْيَهُودُ عَلَى مُمَارَسَةِ هَذَا الاحْتِفَالِ فِي حَيَاتِهِمْ، وَإِحْيَائِهِ فِي ذُرِّيَّتِهِمْ وَفِي جَمِيعِ الْمُلْتَصِقِينَ بِهِمْ، لِيَظَلَّ تَذْكَاراً لَا يَزُولُ، فَيُعَيِّدُوا هَذَيْنِ الْيَوْمَيْنِ وَفْقاً لِمَا هُوَ مَكْتُوبٌ وَفِي مَوْعِدِهُمَا الْمُحَدَّدِ مِنْ كُلِّ سَنَةٍ. 28وَهَكَذَا يَخْلُدُ هَذَانِ الْيَوْمَانِ وَيُحْتَفَلُ بِهِمَا مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ، فِي كُلِّ عَشِيرَةٍ وَفِي كُلِّ إِقْلِيمٍ وَمَدِينَةٍ عَلَى مَرِّ الأَيَّامِ، فَلا يَزُولُ ذِكْرُهُمَا مِنْ بَيْنِ الْيَهُودِ وَلا يَفْنَى مِنْ ذُرِّيَّتِهِمْ.

29ثُمَّ كَتَبَتِ الْمَلِكَةُ أَسْتِيرُ ابْنَةُ أَبِيحَائِلَ وَمُرْدَخَايُ الْيَهُودِيُّ بِكُلِّ سُلْطَانٍ رِسَالَةً ثَانِيَةً إِثْبَاتاً لِرِسَالَةِ الْفُورِيمِ، 30وَبَعَثَتِ الرَّسَائِلَ إِلَى جَمِيعِ الْيَهُودِ الْمُقِيمِينَ فِي أَقَالِيمِ الْمَلِكِ أَحَشْوِيرُوشَ الْمِئَةِ وَالسَّبْعِ وَالْعِشْرِينَ، مُحَمَّلَةً بِالسَّلامِ وَالصِّدْقِ، 31وَفِيهَا حَضٌّ عَلَى الاحْتِفَالِ بِهَذَيْنِ الْيَوْمَيْنِ فِي مَوْعِدَيْهِمَا الْمُقَرَّرَيْنِ، كَمَا أَوْجَبَ عَلَيْهِمْ مُرْدَخَايُ الْيَهُودِيُّ وَالْمَلِكَةُ أَسْتِيرُ، وَكَمَا تَعَهَّدُوا هُمْ وَأَلْزَمُوا نَسْلَهُمْ بِمَوَاعِيدِ الصَّوْمِ وَالنُّوَاحِ، 32فَأَوْجَبَ أَمْرُ أَسْتِيرَ مُمَارَسَةَ هَذِهِ الْمَرَاسِيمِ، وَتَمَّ تَدْوِينُهَا فِي دَرْجٍ.