एज़्रा 10 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

एज़्रा 10:1-44

परमेश्वर से मेल-मिलाप

1जब एज़्रा परमेश्वर के भवन के सामने भूमि पर दंडवत कर प्रार्थना करते हुए पाप स्वीकार करते हुए रो रहे थे, इस्राएल के पुरुषों, स्त्रियों एवं बालकों की एक बहुत बड़ी भीड़ उनके पास इकट्ठी हो चुकी थी. वे सभी फूट-फूटकर रो रहे थे. 2एलाम कुल के येहिएल के पुत्र शेकानियाह ने एज़्रा से कहा, “हम अपने परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य नहीं रहे हैं और हमने इस देश के लोगों में से विदेशी स्त्रियों से विवाह कर लिया है. यह सब होने पर भी इस्राएल के लिए अब एक ही आशा बची है. 3इसलिये अब आइए हम अपने परमेश्वर से वाचा बांधें तथा अपनी सभी पत्नियों तथा उनसे पैदा बालकों को छोड़ दें-जैसा कि मेरे प्रधान तथा उनका जिन्हें परमेश्वर के इस आदेश के प्रति पूर्ण विश्वास है, उनकी सलाह है. यह सब व्यवस्था के अनुसार ही पूरा किया जाए. 4आप तैयार हो जाइए! क्योंकि यह अब आपकी ही जवाबदारी है. हम आपके साथ हैं. आप साहस के साथ इसको कीजिए.”

5यह सुन एज़्रा उठे तथा सभी अगुए पुरोहितों, लेवियों तथा सारे इस्राएल को यह शपथ लेने के लिए प्रेरित किया कि वे इस प्रस्ताव के अनुसार ही करेंगे. इसलिये उन्होंने यह शपथ ली. 6तब एज़्रा परमेश्वर के भवन के सामने से उठे और एलियाशिब के पुत्र येहोहानन के कमरे में चले गए. वह उस कमरे में चले ज़रूर गए मगर उन्होंने वहां न कुछ खाया और न कुछ पिया; क्योंकि वह निकाले गए लोगों द्वारा किए गए इस विश्वासघात के लिए दुःखी थे.

7उन सभी ने सारे यहूदिया तथा येरूशलेम में निकालकर लाए लोगों के लिए यह घोषणा की, कि उन्हें येरूशलेम में इकट्ठा होना है, 8तथा जो कोई प्रधानों और प्राचीनों की सलाह के अनुसार तीन दिनों के भीतर वहां उपस्थित न होगा, उसकी सारी संपत्ति ज़ब्त कर ली जाएगी तथा स्वयं उसे बंधुआई से निकल आए लोगों की सभा से निकाल दिया जाएगा.

9तब यहूदिया तथा बिन्यामिन के सारे पुरुष तीन दिनों के अंदर येरूशलेम में इकट्ठा होने को गए. यह अवसर था नवें महीने की बीसवीं तारीख का. सभी इस अवसर पर परमेश्वर के भवन के सामने खुले आंगन में बैठे हुए थे. इस विषय के कारण वे भयभीत थे तथा मूसलाधार बारिश भी हो रही थी, तब उन पर कंपकंपी छाई हुई थी. 10पुरोहित एज़्रा खड़े हो गए तथा उन्हें संबोधित करने लगे, “आप लोगों ने विश्वासघात किया और विदेशी स्त्रियों से विवाह करने के द्वारा आपने इस्राएल पर दोष बढ़ा दिया है. 11तब यही मौका है कि आप लोग याहवेह अपने पूर्वजों के परमेश्वर के सामने अपने पाप स्वीकार करें, तथा उनकी संतुष्टि के लिए उपयुक्त कदम उठाएं. स्वयं को इस देश के मूल निवासियों से तथा विदेशी स्त्रियों से अलग कर लीजिए.”

12ऊंची आवाज में उपस्थित भीड़ ने घोषणा की, “जो आज्ञा! जो कुछ आपने कहा है हम वही करेंगे. 13किंतु हम लोगों की संख्या बड़ी है, फिर यह बरसात ऋतु है, तब हम खुले में खड़े न रह सकेंगे. इसके अलावा यह काम ऐसा नहीं, जो एक अथवा दो दिनों में पूरा हो जाए, क्योंकि हमारे पाप बहुत ही भयंकर हो चुके है. 14हमारे प्रधान सारी सभा की अगुवाई करें तथा वे सभी नगरवासी जिनकी विदेशी पत्नियां हैं, निर्धारित अवसर पर हर एक नगर के प्राचीनों एवं न्यायाध्यक्षों के साथ यहां आ जाएं, कि इस विषय के कारण हमारे परमेश्वर का यह भड़का हुआ क्रोध हम पर से शांत हो जाए.” 15इस प्रस्ताव का विरोध सिर्फ दो व्यक्तियों ने किया: आसाहेल के पुत्र योनातन तथा तिकवाह के पुत्र याहाज़िएल. लेवी शब्बेथाइ ने इन दोनों का समर्थन किया.

16उन सभी बंधुआई से आए लोगों ने एज़्रा द्वारा सुझाई गई योजना का समर्थन किया. पुरोहित एज़्रा ने नामों का उल्लेख करते हुए पितरों के प्रधानों को चुना. ये सभी दसवें महीने के पहले दिन इस विषय से संबंधित सच्चाईयों का परीक्षण करने इकट्ठा हो गए. 17विदेशी स्त्रियों से विवाहित सभी पुरुषों का परीक्षण पहले महीने की पहली तारीख पर पूरा हो गया.

अंतर्जातीय विवाह के दोषी

18पुरोहितों के उन पुत्रों में से वे, जिन्होंने विदेशी स्त्रियों से विवाह कर लिया था:

ये थे योज़ादक का पुत्र येशुआ तथा उसके भाई:

मआसेइयाह, एलिएज़र, यारिब तथा गेदालियाह. 19उन्होंने शपथ ली कि वे अपनी पत्नियों को छोड़ देंगे. तब इसलिये कि वे दोषी थे, उन्होंने भेड़-बकरियों में से इस दोष से छूटने के लिए एक मेढ़े की बलि चढ़ाई.

20इम्मर के पुत्रों में से थे:

हनानी तथा ज़ेबादिया.

21हारिम के पुत्रों में से थे:

मआसेइयाह, एलियाह, शेमायाह, येहिएल तथा उज्जियाह.

22पशहूर के पुत्रों में से:

एलिओएनाइ, मआसेइयाह, इशमाएल, नेथानेल, योज़ाबाद तथा एलासाह.

23लेवियों में से थे:

योज़ाबाद, शिमेई, केलाइयाह (अर्थात्, केलिता), पेथाइयाह, यहूदाह तथा एलिएज़र.

24गायकवृन्दों में से था:

एलियाशिब;

द्वारपालों में शल्लूम,

तेलेम तथा उरी.

25इस्राएल में पारोश के पुत्रों में से थे:

रामियाह, इज्ज़ियाह, मालखियाह, मियामिन, एलिएज़र, मालखियाह तथा बेनाइयाह.

26एलाम के वंशजों में से थे:

मत्तनियाह, ज़करयाह, येहिएल, अबदी, येरेमोथ तथा एलियाह.

27ज़त्तू के पुत्रों में से थे:

एलिओएनाइ, एलियाशिब, मत्तनियाह, येरेमोथ, ज़ाबाद तथा आजिजा.

28बेबाइ के पुत्रों में से थे:

येहोहानन, हननियाह, ज़ब्बाई तथा अथलाइ.

29बानी के पुत्रों में से थे:

मेशुल्लाम, मल्‍लूख तथा अदाइयाह याशूब, शेअल तथा येरेमोथ.

30पाहाथ-मोआब के पुत्रों में से थे:

आदना, चेलल, बेनाइयाह मआसेइयाह, मत्तनियाह, बसलेल, बिन्‍नूइ तथा मनश्शेह.

31हारिम के पुत्रों में से थे:

एलिएज़र, इश्शियाह, मालखियाह, शेमायाह, शिमओन, 32बिन्यामिन, मल्‍लूख तथा शेमारियाह.

33हाषूम के पुत्रों में से थे:

मत्तेनाइ, मत्तात्ताह ज़ाबाद, एलिफेलेत, येरेमाई, मनश्शेह तथा शिमेई.

34बानी के पुत्रों में से थे:

मआघई, अमराम, उएल, 35बेनाइयाह, बेदेइयाह, चेलुही, 36वानियाह, मेरेमोथ, एलियाशिब, 37मत्तनियाह, मत्तेनाइ, यआसु

38बानी, बिन्‍नूइ के पुत्रों में से थे:

शिमेई, 39शेलेमियाह, नाथान अदाइयाह, 40माखनादेबाइ, शाशाई, शाराई, 41अज़ारेल, शेलेमियाह, शेमारियाह 42शल्लूम, अमरियाह तथा योसेफ़.

43नेबो के पुत्रों में से थे:

येइएल, मत्तीथियाह, ज़ाबाद, ज़ेबिना, यद्दाइ, योएल तथा बेनाइयाह.

44इन सभी ने विदेशी स्त्रियों से विवाह किया था तथा इनमें से कुछ के इन स्त्रियों से संतान भी पैदा हुई थी.

Ketab El Hayat

عزرا 10:1-44

اعتراف الشعب بالخطية

1وَفِيمَا كَانَ عِزْرَا يُصَلِّي وَيَعْتَرِفُ بَاكِياً وَمُنْطَرِحاً أَمَامَ هَيْكَلِ اللهِ، اجْتَمَعَ إِلَيْهِ حَشْدٌ غَفِيرٌ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَالأَوْلادِ، لأَنَّ الشَّعْبَ بَكَى بِمَرَارَةٍ.

2وَقَالَ شَكَنْيَا بْنُ يَحِيئِيلَ مِنْ بَنِي عِيلامَ لِعِزْرَا: «لَقَدْ خُنَّا إِلَهَنَا وَتَزَوَّجْنَا مِنْ نِسَاءٍ غَرِيبَاتٍ مِنْ أُمَمِ الأَرْضِ، وَلَكِنْ عَلَى الرَّغْمِ مِنْ هَذَا فَلا يَزَالُ هُنَاكَ رَجَاءٌ لإِسْرَائِيلَ. 3لِذَلِكَ، لِنُبْرِمْ عَهْداً مَعَ إِلَهِنَا، بِأَنْ نُخْرِجَ كُلَّ النِّسَاءِ الْغَرِيبَاتِ، وَمَنْ أَنْجَبْنَ مِنْ أَبْنَاءٍ بِمُوْجِبِ رَأْيِ سَيِّدِي وَمَشُورَةِ سَائِرِ الَّذِينَ يُطِيعُونَ وَصَايَا اللهِ مُطَبِّقِينَ بِذَلِكَ نَصَّ الشَّرِيعَةِ. 4فَانْهَضِ الآنَ فَإِنَّ عِبْءَ هَذَا الأَمْرِ هُوَ مَسْؤولِيَّتُكَ؛ وَلَكِنَّنَا مَعَكَ. تَشَجَّعْ وَتَصَرَّفْ».

5فَقَامَ عِزْرَا وَاسْتَحْلَفَ رُؤَسَاءَ الْكَهَنَةِ وَاللّاوِيِّينَ وَسَائِرَ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنْ يُنَفِّذُوا الْعَهْدَ. فَحَلَفُوا. 6ثُمَّ نَهَضَ عِزْرَا مِنْ أَمَامِ هَيْكَلِ اللهِ وَمَضَى إِلَى مُخْدَعِ يَهُوحَانَانَ بْنِ أَلِيَاشِيبَ، وَمَكَثَ هُنَاكَ لَا يَأْكُلُ خُبْزاً وَلا يَشْرَبُ مَاءً، نُوَاحاً عَلَى خِيَانَةِ الْعَائِدِينَ مِنَ السَّبْيِ. 7وَأَطْلَقُوا دَعْوَةً فِي أَرْجَاءِ يَهُوذَا وَأُورُشَلِيمَ لِيَجْتَمِعَ جَمِيعُ الْعَائِدِينَ مِنَ السَّبْيِ فِي أُورُشَلِيمَ. 8وَكُلُّ مَنْ يَمْتَنِعُ عَنِ الْحُضُورِ فِي ثَلاثَةِ أَيَّامٍ، بِمُقْتَضَى أَمْرِ الرُّؤَسَاءِ والشُّيُوخِ، يُحَرَّمُ مَالُهُ وَيُنْبَذُ مِنْ بَيْنِ أَهْلِ السَّبْيِ.

9فَحَضَرَ كُلُّ رِجَالِ يَهُوذَا وَبَنْيَامِينَ إِلَى أُورُشَلِيمَ فِي غُضُونِ ثَلاثَةِ أَيَّامٍ، وَعَقَدَ جَمِيعُ الشَّعْبِ اجْتِمَاعاً فِي الْيَوْمِ الْعِشْرِينَ مِنَ الشَّهْرِ التَّاسِعِ (كَانُونِ الأَوَّلِ – دِيسَمْبَرَ) فِي سَاحَةِ هَيْكَلِ اللهِ. وَقَدْ جَلَسُوا مُرْتَعِدِينَ مِنْ هَوْلِ الأَمْرِ وَمِنَ الأَمْطَارِ الْغَزِيرَةِ الْهَاطِلَةِ. 10عِنْدَئِذٍ قَامَ عِزْرَا الْكَاهِنُ وَخَاطَبَهُمْ: «لَقَدْ خُنْتُمْ عَهْدَ الرَّبِّ وَتَزَوَّجْتُمْ مِنْ نِسَاءٍ غَرِيبَاتٍ لِتَزِيدُوا مِنْ وَطْأَةِ إِثْمِ إِسْرَائِيلَ. 11فَاعْتَرِفُوا الآنَ لِلرَّبِّ إِلَهِ آبَائِكُمْ وَاطْلُبُوا مَرْضَاتَهُ، وَانْفَصِلُوا عَنْ أُمَمِ الأَرْضِ وَعَنِ النِّسَاءِ الْغَرِيبَاتِ». 12فَأَجَابَتِ الْجمَاعَةُ كُلُّهَا بِصَوْتٍ عَظِيمٍ: «سَنَفْعَلُ مَا طَالَبْتَنَا بِهِ، 13إِلّا أَنَّ الشَّعْبَ غَفِيرٌ، وَالْفَصْلَ فَصْلُ أَمْطَارٍ، وَلا طَاقَةَ لَنَا عَلَى الْوُقُوفِ خَارِجاً مُدَّةً طَوِيلَةً تَحْتَ الأَمْطَارِ، وَلاسِيَّمَا أَنَّ الْعَمَلَ يَسْتَغْرِقُ أَكْثَرَ مِنْ يَوْمٍ وَاحِدٍ أَوِ اثْنَيْنِ، لأَنَّنَا تَوَرَّطْنَا بِارْتِكَابِ هَذَا الإِثْمِ تَوَرُّطاً عَظِيماً. 14لِذَلِكَ فَلْيَقْضِ كُلُّ رُؤَسَائِنَا لِكُلِّ الْجَمَاعَةِ، وَلْيَأْتِ مِنْ مُدُنِنَا كُلُّ مَنْ تَزَوَّجَ مِنِ امْرَأَةٍ غَرِيبَةٍ، فِي أَوْقَاتٍ مُعَيَّنَةٍ، بِرِفْقَةِ شُيُوخِ مَدِينَتِهِ وَقُضَاتِهَا، فَيَرْتَدَّ عَنَّا احْتِدَامُ غَضَبِ إِلَهِنَا مِنْ جَرَّاءِ خَطِيئَتِنَا». 15وَلَمْ يَعْتَرِضْ عَلَى هَذَا الأَمْرِ سِوَى يُونَاثَانَ بْنِ عَسَائِيلَ وَيَحْزِيَا بْنِ تِقْوَةَ، وَأَيَّدَهُمَا فِي ذَلِكَ مَشُلّامُ وَشَبْتَايُ اللّاوِيَّانِ. 16وَنَفَّذَ الْعَائِدُونَ مِنَ السَّبْيِ هَذَا الأَمْرَ، وَاخْتَارَ عِزْرَا الْكَاهِنُ رُؤَسَاءَ الْعَائِلاتِ بِأَسْمَائِهِمْ وَفْقاً لِعَشَائِرِهِمْ، فَانْفَصَلُوا عَنِ الْجَمَاعَةِ وَجَلَسُوا فِي الْيَوْمِ الأَوَّلِ مِنَ الشَّهْرِ الْعَاشِرِ (مُنْتَصَفِ كَانُونِ الأَوَّلِ – دِيسَمْبَرَ) لِلْقَضَاءِ فِي الأَمْرِ. 17وَتَمَّ الْفَصْلُ فِي قَضَايَا كُلِّ الرِّجَالِ الَّذِينَ تَزَوَّجُوا مِنْ نِسَاءٍ غَرِيبَاتٍ فِي الْيَوْمِ الأَوَّلِ مِنَ الشَّهْرِ الأَوَّلِ (آذَارَ – مَارِسَ).

الآثمون بالزواج المختلط

18فَوُجِدَ بَيْنَ الْكَهَنَةِ مِمَّنْ تَزَوَّجُوا مِنْ نِسَاءٍ غَرِيبَاتٍ: مِنْ بَنِي يَشُوعَ بْنِ يُوصَادَاقَ وَإِخْوَتِهِ: مَعْشِيَا وَأَلِيعَزَرُ وَيَارِيبُ وَجَدَلْيَا. 19هَؤُلاءِ تَعَهَّدُوا بِإِخْرَاجِ نِسَائِهِمِ الْغَرِيبَاتِ مُقَرِّبِينَ كَبْشَ غَنَمٍ تَكْفِيراً عَنْ إِثْمِهِمْ. 20وَمِنْ بَنِي إِمِّيرَ: حَنَانِي وَزَبْدِيَا. 21وَمِنْ بَنِي حَارِيمَ: مَعْسِيَا وَإِيلِيَّا وَشَمْعِيَا وَيَحِيئِيلُ وَعُزِّيَّا. 22وَمِنْ بَنِي فَشْحُورَ: أَلْيُوعِينَايُ وَمَعْسِيَا وَإِسْمعِيلُ وَنَثَنْئِيلُ وَيُوزَابَادُ وَأَلْعَاسَةُ. 23وَمِنَ اللّاوِيِّينَ: يُوزَابَادُ، وَشِمْعِي، وَقَلايَا (أَيْ قَلِيطَا)، وَفَتَحْيَا وَيَهُوذَا وَأَلِيعَزَرُ. 24وَمِنَ الْمُغَنِّينَ: أَلْيَاشِيبُ. وَمِنْ حُرَّاسِ أَبْوَابِ الْهَيْكَلِ: شَلُّومُ وَطَالَمُ وَأُورِي. 25وَمِنْ إِسْرَائِيلَ مِنْ بَنِي فَرْعُوشَ: رَمْيَا وَيِزِّيَّا وَمَلْكِيَا وَمَيَّامِينُ وَأَلِعَازَارُ وَمَلْكِيَّا وَبَنَايَا. 26وَمِنْ بَنِي عِيلامَ: مَتَّنْيَا وَزَكَرِيَّا وَيَحِيئِيلُ وَعَبْدِي وَيَرِيمُوثُ وَإِيلِيَّا. 27بَنِي زَتُّو: أَلْيُوعِينَايُ وَأَلْيَاشِيبُ وَمَتَّنْيَا وَيَرِمُوثُ وَزَابَادُ وَعَزِيزَا. 28وَمِنْ بَنِي بَابَايَ: يَهُوحَانَانُ وَحَنَنْيَا وَزَبَايُ وَعَثْلايُ. 29وَمِنْ بَنِي بَانِي: مَشُلّامُ وَمَلُّوخُ وَعَدَايَا وَيَاشُوبُ وَشَآلُ وَرَامُوثُ. 30وَمِنْ بَنِي فَحَثَ مُوآبَ: عَدْنَا وَكَلالُ وَبَنَايَا وَمَعْسِيَا وَمَتَّنْيَا وَبَصَلْئِيلُ وَبَنُّويُ وَمَنَسَّى. 31وَمِنْ بَنِي حَارِيمَ: أَلِيعَزَرُ وَيِشِّيَّا وَمَلْكِيَّا وَشِمْعِيَا وَشِمْعُونُ، 32وَبَنْيَامِينُ وَملُّوخُ وَشَمَرْيَا. 33وَمِنْ بَنِي حَشُومَ: مَتَّنَايُ وَمَتَّاثَا وَزَابَادُ وَأَلِيفَلَطُ وَيَرِيمَايُ وَمَنَسَّى وَشِمْعِي. 34وَمِنْ بَنِي بَانِي: مَعْدَايُ وَعَمْرَامُ وَأُوئِيلُ، 35وَبَنَايَا وَبِيدْيَا وَكَلُوهِي، 36وَوَنْيَا وَمَرِيمُوثُ وَأَلْيَاشِيبُ، 37وَمَتَّنْيَا وَمَتَّنَايُ وَيَعْسُو، 38وَبَانِي وَبَنُّويُ وَشِمْعِي، 39وَشَلَمْيَا وَنَاثَانُ وَعَدَايَا، 40وَمَكْنَدْبَايُ وَشَاشَايُ وَشَارَايُ، 41وَعَزَرْئِيلُ وَشَلَمْيَا وَشَمَرْيَا، 42وَشَلُّومُ وَأَمَرْيَا وَيُوسُفُ، 43وَمِنْ بَنِي نَبُو: يَعِيئِيلُ وَمَتَّثْيَا وَزَابَادُ وَزَبِينَا وَيَدُّو وَيُوئِيلُ وَبَنَايَا. 44وَقَدْ تَزَوَّجَ جَمِيعُ هَؤُلاءِ مِنْ نِسَاءٍ غَرِيبَاتٍ، أَنْجَبَتْ بَعْضُهُنَّ لَهُمْ أَبْنَاءً.