诗篇 107 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible (Simplified)

诗篇 107:1-43

卷五:诗篇107—150

第 107 篇

称谢上帝的美善

1你们要称谢耶和华,

因为祂是美善的;

祂的慈爱永远长存。

2-3耶和华救赎的人,

就是祂从敌人手中救赎出来、

从东西南北招聚的人,

都要称谢祂。

4他们在旷野中飘泊,居无定所,

5又饥又渴,陷入绝境。

6他们在危难中呼求耶和华,

祂就拯救他们脱离困境,

7带领他们走直路,

到可居住的城邑。

8他们当称谢耶和华的慈爱,

称谢祂为世人所行的奇事。

9因为祂满足干渴的人,

以美食喂饱饥饿的人。

10有些人坐在黑暗里,

在死亡的阴影下,

被铁链捆绑,

痛苦不堪。

11因为他们违背上帝的话,

藐视至高者的旨意,

12所以上帝用苦役使他们顺服,

他们跌倒也无人扶助。

13于是,他们在患难中呼求耶和华,

耶和华就拯救他们脱离困境。

14祂带领他们脱离黑暗和死亡的阴影,

断开他们的锁链。

15他们当称谢耶和华的慈爱,

称谢祂为世人所行的奇事。

16因为祂打碎了铜门,

砍断了铁闩。

17有些人愚顽,

因自己的悖逆和罪恶而受苦,

18食欲全消,几近死亡。

19于是,他们在患难中呼求耶和华,

耶和华便拯救他们脱离困境。

20祂一发令,就医治了他们,

救他们脱离死亡。

21他们当称谢耶和华的慈爱,

称谢祂为世人所行的奇事。

22他们当向祂献上感恩祭,

欢然歌颂祂的作为。

23有些人乘船在汪洋大海上经商,

24他们看见了耶和华的作为,

看见了祂在深海所行的奇事。

25祂一声令下,

狂风大作,巨浪滔天。

26他们的船只忽而被抛向半空,

忽而落入深渊,

他们吓得面无人色,

27东倒西歪,如同醉汉,

束手无策。

28于是,他们在患难中呼求耶和华,

耶和华便拯救他们脱离困境。

29祂使狂风止息,海浪平静。

30他们因风平浪静而欢喜,

祂带领他们到所向往的港湾。

31他们当称谢耶和华的慈爱,

称谢祂为世人所行的奇事。

32他们当在众人面前尊崇祂,

在众首领面前赞美祂。

33祂使江河变成荒漠,

水泉变成干地,

34叫沃土变成荒凉的盐碱地,

因为那里的居民邪恶。

35祂叫荒漠水塘遍布,

使旱地甘泉涌流。

36祂使饥饿的人住在那里,

建造可安居的城邑,

37耕种田地,栽植葡萄园,

收成丰硕。

38祂赐福给他们,

使他们人丁兴旺,

牲口有增无减。

39后来他们在压迫、患难和痛苦的煎熬下人口减少,

地位卑下。

40祂使贵族蒙羞受辱,

漂流在荒芜之地。

41但祂搭救贫苦的人脱离苦难,

使他们家族兴旺,多如羊群。

42正直人看见就欢喜,

邪恶人都哑口无言。

43有智慧的人都当留心这些事,

思想耶和华的慈爱。

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 107:1-43

पांचवीं पुस्तक

स्तोत्र 107–150

स्तोत्र 107

1याहवेह का धन्यवाद करो, वे भले हैं;

उनकी करुणा सदा की है.

2यह नारा उन सबका हो, जो याहवेह द्वारा उद्धारित हैं,

जिन्हें उन्होंने विरोधियों से मुक्त किया है,

3जिन्हें उन्होंने पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से,

विभिन्‍न देशों से एकत्र कर एकजुट किया है.

4कुछ निर्जन वन में भटक रहे थे,

जिन्हें नगर की ओर जाता हुआ कोई मार्ग न मिल सका.

5वे भूखे और प्यासे थे,

वे दुर्बल होते जा रहे थे.

6अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा,

याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया.

7उन्होंने उन्हें सीधे-समतल पथ से ऐसे नगर में पहुंचा दिया

जहां वे जाकर बस सकते थे.

8उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए

तथा उनके द्वारा मनुष्यों के लिए किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें,

9क्योंकि वह प्यासी आत्मा के प्यास को संतुष्ट करते

तथा भूखे को उत्तम आहार से तृप्‍त करते हैं.

10कुछ ऐसे थे, जो अंधकार में,

गहनतम मृत्यु की छाया में बैठे हुए थे, वे बंदी लोहे की बेड़ियों में यातना सह रहे थे,

11क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के आदेशों के विरुद्ध विद्रोह किया था

और सर्वोच्च परमेश्वर के निर्देशों को तुच्छ समझा था.

12तब परमेश्वर ने उन्हें कठोर श्रम के कार्यों में लगा दिया;

वे लड़खड़ा जाते थे किंतु कोई उनकी सहायता न करता था.

13अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा,

याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया.

14परमेश्वर ने उन्हें अंधकार और मृत्यु-छाया से बाहर निकाल लिया,

और उनकी बेड़ियों को तोड़ डाला.

15उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए

तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें,

16क्योंकि वही कांस्य द्वारों को तोड़ देते

तथा लोहे की छड़ों को काटकर विभक्त कर डालते हैं.

17कुछ ऐसे भी थे, जो विद्रोह का मार्ग अपनाकर मूर्ख प्रमाणित हुए,

जिसका परिणाम यह हुआ, कि उन्हें अपने अपराधों के कारण ही पीड़ा सहनी पड़ी.

18उन्हें सभी प्रकार के भोजन से घृणा हो गई

और वे मृत्यु-द्वार तक पहुंच गए.

19अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा,

याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया.

20उन्होंने आदेश दिया और वे स्वस्थ हो गए

और उन्होंने उन्हें उनके विनाश से बचा लिया.

21उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम107:21 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं के लिए

तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें.

22वे धन्यवाद बलि अर्पित करें

और हर्षगीतों के माध्यम से उनके कार्यों का वर्णन करें.

23कुछ वे थे, जो जलयानों में समुद्री यात्रा पर चले गए;

वे महासागर पार जाकर व्यापार करते थे.

24उन्होंने याहवेह के महाकार्य देखे,

वे अद्भुत कार्य, जो समुद्र में किए गए थे.

25याहवेह आदेश देते थे और बवंडर उठ जाता था,

जिसके कारण समुद्र पर ऊंची-ऊंची लहरें उठने लगती थीं.

26वे जलयान आकाश तक ऊंचे उठकर गहराइयों तक पहुंच जाते थे;

जोखिम की इस बुराई की स्थिति में उनका साहस जाता रहा.

27वे मतवालों के समान लुढ़कते और लड़खड़ा जाते थे;

उनकी मति भ्रष्‍ट हो चुकी थी.

28अपनी विपत्ति की स्थिति में उन्होंने याहवेह को पुकारा,

याहवेह ने उन्हें उनकी दुर्दशा से छुड़ा लिया.

29याहवेह ने बवंडर को शांत किया

और समुद्र की लहरें स्तब्ध हो गईं.

30लहरों के शांत होने पर उनमें हर्ष की लहर दौड़ गई,

याहवेह ने उन्हें उनके मनचाहे बंदरगाह तक पहुंचा दिया.

31उपयुक्त है कि वे याहवेह के प्रति उनके करुणा-प्रेम के लिए

तथा उनके द्वारा मनुष्यों के हित में किए गए अद्भुत कार्यों के लिए उनका आभार व्यक्त करें.

32वे जनसमूह के सामने याहवेह का भजन करें,

वे अगुओं की सभा में उनकी महिमा करें.

33परमेश्वर ने नदियां मरुभूमि में बदल दीं,

परमेश्वर ने झरनों के प्रवाह को रोका.

34वहां के निवासियों की दुष्टता के कारण याहवेह नदियों को वन में,

नदी को शुष्क भूमि में और उर्वर भूमि को निर्जन भूमि में बदल देते हैं.

35याहवेह ही वन को जलाशय में बदल देते हैं

और शुष्क भूमि को झरनों में;

36वहां वह भूखों को बसने देते हैं,

कि वे वहां बसने के लिये एक नगर स्थापित कर दें,

37कि वे वहां कृषि करें, द्राक्षावाटिका का रोपण करें

तथा इनसे उन्हें बड़ा उपज प्राप्‍त हो.

38याहवेह ही की कृपादृष्टि में उनकी संख्या में बहुत वृद्धि होने लगती है,

याहवेह उनके पशु धन की हानि नहीं होने देते.

39जब उनकी संख्या घटने लगती है और पीछे,

क्लेश और शोक के कारण उनका मनोबल घटता और दब जाता है,

40परमेश्वर उन अधिकारियों पर निंदा-वृष्टि करते हैं,

वे मार्ग रहित वन में भटकाने के लिए छोड़ दिए जाते हैं.

41किंतु याहवेह दुःखी को पीड़ा से बचाकर

उनके परिवारों को भेड़ों के झुंड समान वृद्धि करते हैं.

42यह सब देख सीधे लोग उल्‍लसित होते हैं,

और दुष्टों को चुप रह जाना पड़ता है.

43जो कोई बुद्धिमान है, इन बातों का ध्यान रखे

और याहवेह के करुणा-प्रेम पर विचार करता रहे.