列王纪上 20 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible (Simplified)

列王纪上 20:1-43

亚兰王攻打撒玛利亚城

1亚兰便·哈达率领全军,联合三十二个王,带着车马围攻撒玛利亚2他派遣使者进城对以色列亚哈说: 3便·哈达说,‘你的金银和你家中最美的妻妾儿女都是我的。’” 4以色列王说:“我主我王啊,我答应你的要求,我和我的一切都是你的。”

5不久,使者又来对他说:“便·哈达说,‘我已派人吩咐你把金银、妻妾和儿女都给我。 6明天这个时候,我会派属下搜查你的王宫和你臣仆的家,他们要拿走你珍爱的一切。’” 7以色列亚哈召集国中的长老,说:“你们看,这人是在找麻烦。他派人来要我的妻妾、孩子和金银,我没有拒绝他。” 8长老和百姓都说:“别听从他,别答应他。”

9于是,他对使者说:“你们告诉我主我王,他第一次所要的,仆人可以照办,但这一次所要的,仆人不能从命。”使者就去回复便·哈达10便·哈达又派人去对亚哈说:“若撒玛利亚的尘土够我的士兵每人抓一把,愿神明重重地惩罚我。” 11以色列王说:“你去告诉便·哈达,叫他别刚穿上盔甲就夸口,打完仗卸下盔甲再夸口吧。” 12便·哈达和诸王正在营中饮酒,听见这话,就吩咐属下准备攻城。

亚哈打败便·哈达

13一位先知来见以色列亚哈,说:“耶和华说,‘你看见这大队人马了吗?今天我必将他们交在你手里,这样你就知道我是耶和华。’” 14亚哈问:“谁来完成这任务呢?”先知答道:“耶和华说,省长属下的青年军。”亚哈问:“谁来做统领呢?”先知答道:“你。”

15于是,亚哈召集了省长属下的青年军二百三十二人,又召集以色列全军,共七千人。

16中午,便·哈达正跟盟军的三十二个王在营中狂饮的时候,亚哈率军出发了。 17省长属下的青年军率先出城。便·哈达派出的巡逻队禀告他说:“有人从撒玛利亚城出来了。” 18便·哈达说:“不管他们是来求和还是求战,都要生擒他们!” 19省长属下的青年军率先出城,大军紧随其后, 20他们见敌人就杀。亚兰人败逃,以色列人乘势追击。亚兰便·哈达骑着马与一些骑兵落荒而逃。 21以色列王出城攻击敌军车马,重创亚兰人。

22先知又来见以色列王,说:“你要加强防卫,做好准备,因为明年春天亚兰王必卷土重来。”

23臣仆给亚兰王献计说:“以色列人的神是山神,所以他们占了上风,我们若在平原上跟他们交战,一定会取胜。 24王应该撤去诸王,委任将领代替他们, 25再招募军兵,补充失去的战车和人马,好在平原上跟他们交战,这样我们一定会取胜。”王采纳了他们的建议。

26第二年春天,便·哈达召集亚兰人进军亚弗,攻打以色列人。 27以色列人也召集军队,准备粮草,迎战敌军。他们在亚兰人对面安营,像两小群山羊,而敌军却满山遍野。 28有位上帝的仆人来见以色列王,说:“耶和华说,‘亚兰人以为我耶和华是山神,不是平原的神,所以我必将这大队人马交在你手里,这样你们就知道我是耶和华。’”

29以色列人和亚兰人两军对峙,一连七天。第七天,两军交战,以色列军一天杀了十万亚兰步兵, 30残余的亚兰人都逃进亚弗城,但城墙倒塌压死了两万七千人。便·哈达也逃进城,躲在一间房子的内室里。 31臣仆对他说:“我们听说以色列王很仁慈。现在,我们不如腰束麻布,头套绳索,向以色列王请降,或许他会饶王一命。” 32他们便腰束麻布,头套绳索,来见以色列王,说:“仆人便·哈达求王开恩饶命啊!”亚哈回答说:“他还活着吗?他是我的兄弟。” 33他们听见亚哈的口气温和,连忙附和说:“是啊,便·哈达是王的兄弟。”亚哈便吩咐他们去把便·哈达带来见他,然后让便·哈达登上他的战车。 34便·哈达亚哈说:“我必归还我父亲从你父亲那里夺来的城邑,你可以在大马士革设立贸易区,就像我父亲在撒玛利亚所设立的一样。”亚哈回答说:“你依此立个约,我就放你走。”立约之后,亚哈就放便·哈达走了。

先知责备亚哈

35众先知中有一位奉耶和华的命令对他的同伴说:“你打我吧!”同伴却不肯动手。 36那位先知就对他说:“既然你不听从耶和华的吩咐,你一离开我,就会被狮子咬死。”那同伴走后,果然遇见狮子,被咬死了。 37那先知又找了一个人,叫那人打他,那人就打他,把他打伤了。 38先知用头巾蒙着眼睛,乔装改扮,在路旁等候亚哈王。 39亚哈王经过的时候,他向王喊道:“仆人在打仗的时候,有人押来一个俘虏,要我看管,他说如果俘虏跑掉,我就要以性命抵偿或赔偿三十四公斤银子。 40可是那俘虏趁仆人忙乱之际跑掉了。”亚哈王说:“这是你自己的过失,你要自负其咎。” 41先知立刻拿去蒙眼的头巾,以色列王认出他是个先知。 42他对王说:“耶和华说,‘你放走了我决定要毁灭的人,所以你的命要抵他的命,你百姓的命要抵他百姓的命。’” 43以色列王闷闷不乐地回撒玛利亚的王宫去了。

Hindi Contemporary Version

1 राजा 20:1-43

अहाब का अराम से युद्ध

1अराम के राजा बेन-हदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठी की. उनके साथ बत्तीस राजा, घोड़े और रथ थे. उसने शमरिया की घेराबंदी कर उससे युद्ध किया. 2इसके बाद उसने दूतों द्वारा नगर में इस्राएल के राजा अहाब को यह संदेश भेजा, “यह बेन-हदद का संदेश है, 3‘तुम्हारा सोना और चांदी मेरा है; तुम्हारी सबसे उत्तम पत्नियां और तुम्हारे बच्‍चे भी मेरे हैं.’ ”

4इस्राएल के राजा का उत्तर था, “महाराज, मेरे स्वामी, जैसा आप कह रहे हैं, सही है. सब कुछ जो मेरा है आपका ही है और मैं खुद भी आपका हूं.”

5वे दूत दोबारा आए और उन्होंने यह संदेश दिया, “यह बेन-हदद का संदेश है ‘मैंने तुमसे कहा था, “मुझे अपना सोना, चांदी, पत्नियां और संतान दे दो,” 6फिर भी, कल लगभग इसी समय मैं अपने सेवक तुम्हारे यहां भेजूंगा. वे तुम्हारे घरों की और तुम्हारे सेवकों के घरों की छानबीन करेंगे और वह सब लेकर यहां आ जाएंगे, जो तुम्हें प्यारा है.’ ”

7यह सुन इस्राएल के राजा ने देश के सारे पुरनियों की एक सभा बुलाई और उन्हें यह कहा, “देख लीजिए, कैसे यह व्यक्ति हमसे झगड़ा मोल ले रहा है! वह मुझसे मेरी पत्नियां और संतान और मेरा सोना और चांदी छीनने की योजना बना रहा है! मैंने यह अस्वीकार नहीं किया है.”

8सारे पुरनियों और सभा के सदस्यों ने एक मत में कहा, “न तो उसकी सुनिए और न ही उसे सहमति दीजिए.”

9अहाब ने बेन-हदद के दूतों से यह कहा, “महाराज, मेरे स्वामी से जाकर कहना, ‘आपने अपने सेवक से पहले जो कुछ चाहा था, वह मैं करूंगा, किंतु यह मैं नहीं कर सकता.’ ” दूत लौट गए और दोबारा आकर अहाब को यह संदेश दिया.

10उनके लिए बेन-हदद का संदेश था, “देवता मुझसे ऐसा, बल्कि इससे भी अधिक बुरा व्यवहार करें, यदि शमरिया की धूल मेरे थोड़े से पीछे चलने वालों की मुट्ठी भरने के लिए भी काफ़ी हो20:10 धूल मेरे थोड़े से पीछे चलने वालों की मुट्ठी भरने के लिए भी काफ़ी हो इसका निहितार्थ पैरों से रौंदूंगा.”

11इस्राएल के राजा ने उसे उत्तर दिया, “उससे जाकर कह दो, ‘वह जो हथियार धारण करता है, (विजयी होकर) वह उतारने वाले के समान घमण्ड़ न करे.’ ”

12बेन-हदद दूसरे राजाओं के साथ, छावनी में, दाखमधु पीने में लगा था. जैसे ही उसने अहाब का संदेश सुना, उसने सैनिकों को आदेश दिया, “चलो मोर्चे पर!” इस पर उन्होंने नगर के विरुद्ध मोर्चा बांध लिया.

अहाब बेन-हदद को हराता है

13एक भविष्यद्वक्ता इस्राएल के राजा अहाब के सामने आ गए. उन्होंने राजा से कहा, “यह याहवेह का संदेश है: ‘क्या तुमने इस बड़ी भीड़ को देखी है? यह देख लेना कि आज मैं इसे तुम्हारे अधीन कर दूंगा. तब तुम यह जान लोगे कि याहवेह मैं ही हूं.’ ”

14अहाब ने भविष्यद्वक्ता से प्रश्न किया, “कौन करेगा यह?”

“भविष्यद्वक्ता ने उत्तर दिया, ‘याहवेह का संदेश यह है, कि यह काम राज्यपाल ही करेंगे.’

“तब अहाब ने प्रश्न किया, युद्ध की पहल कौन करेगा?”

भविष्यद्वक्ता ने उत्तर दिया, “आप.”

15अहाब ने राज्यपालों के सेवकों को इकट्ठा किया; कुल मिलाकर ये गिनती में दो सौ बत्तीस थे; उनके पीछे की पंक्तियों में सात हज़ार इस्राएली सैनिक थे. 16इन्होंने दोपहर के समय कूच किया. इस समय बेन-हदद बत्तीस साथी राजाओं के साथ छावनी में बैठा हुआ दाखमधु के नशे में धुत था. 17राज्यपालों के सेवक सबसे आगे थे.

बेन-हदद ने भेद लेने के लिए भेदिये भेजे थे. उन्होंने लौटकर उसे यह सूचना दी, “शमरिया से सेना निकल चुकी है.”

18बेन-हदद ने आदेश दिया, “चाहे वे शांति के लक्ष्य से आ रहे हैं या युद्ध के लक्ष्य से, उन्हें जीवित ही पकड़ लेना.”

19तब वे नगर से बाहर निकल पड़े. राज्यपालों के सेवक आगे-आगे और उनके पीछे सेना. 20हर एक ने अपने-अपने सामने के सैनिक को मार दिया. अरामी सेना के पैर उखड़ गए और इस्राएली सेना ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया; मगर अराम का राजा बेन-हदद अपने घोड़े पर घुड़सवारों के साथ भाग निकला. 21इस्राएल के राजा ने पीछा करके घोड़ों और रथों को खत्म कर दिया. अरामी सेना हार गई और उसमें बड़ी मार-काट हुई.

22तब वह भविष्यद्वक्ता इस्राएल के राजा की उपस्थिति में जाकर कहने लगा, “आप आइए और अपने आपको बलवंत करे. फिर सावधानीपूर्वक विचार कीजिए कि अब आपको क्या करना है; क्योंकि वसन्त ऋतु में अराम का राजा आप पर हमला करेगा.”

23अराम के राजा के मंत्रियों ने उससे कहा, “उनके देवता पहाड़ियों के देवता हैं. यही कारण है कि वे हमसे अधिक शक्तिशाली साबित हुए हैं, मगर आइए हम उनसे मैदान में युद्ध करें, तब हम निश्चित ही उनसे अधिक मजबूत साबित होंगे. 24हम ऐसा करें; राजाओं को हटाकर सेनापतियों को उनकी जगहों पर खड़ा कर दें, 25और फिर हारी हुई सेना के समान घोड़े के लिए घोड़े और रथ के लिए रथ की सेना इकट्ठी करें; फिर हम उनसे मैदान में ही युद्ध करेंगे. निश्चित ही हम उनसे अधिक मजबूत साबित होंगे.” राजा ने उनकी सलाह स्वीकार कर ली और वैसा ही किया भी.

26वसन्त काल में बेन-हदद ने अरामी सेना को इकट्ठा किया और इस्राएल से युद्ध करने अफेक नगर की ओर बढ़ गया. 27इस्राएली सैनिक भी इकट्‍ठे हुए, उन्होंने व्यूह रचना की और अरामियों का सामना करने के लिए आगे बढ़े. इस्राएली सेना ने उनके सामने ऐसे डेरे खड़े किए कि वे भेड़ों के दो छोटे समूहों समान दिखाई दे रहे थे; मगर अरामी सेना पूरी तरह से मैदान पर छा गई थी.

28परमेश्वर के एक दूत ने आकर इस्राएल के राजा से कहा, “यह संदेश याहवेह की ओर से है ‘इसलिये कि अरामियों का यह मानना है, याहवेह सिर्फ पहाड़ियों का परमेश्वर है, मगर घाटियों-मैदानों का नहीं, मैं इस पूरी बड़ी भीड़ को तुम्हारे अधीन कर दूंगा, और तुम यह जान जाओगे कि मैं ही याहवेह हूं.’ ”

29सात दिन तक वे इसी स्थिति में एक दूसरे के आमने-सामने डटे रहे. सातवें दिन युद्ध छिड़ गया. इस्राएली सेना ने एक ही दिन में एक लाख अरामी पैदल सैनिकों को मार डाला, 30बाकी अफेक नगर को भाग गए. उनमें से बाकी सत्ताईस हज़ार की मृत्यु उन पर दीवार के ढहने से हो गई. बेन-हदद भी भागा और एक भीतरी कमरे में जाकर छिप गया.

31उसके सेवकों ने उससे कहा, “सुनिए, हमने सुना है कि इस्राएल वंश के राजा कृपालु राजा होते हैं. हम ऐसा करें; हम कमर में टाट लपेट लेते हैं, अपने सिर पर रस्सियां डाल लेते हैं और इस्राएल के राजा की शरण में चले जाते हैं. संभव है वह आपको प्राण दान दे दें.”

32तब उन्होंने अपनी कमर में टाट लपेट ली, सिर पर रस्सियां डाल लीं और जाकर इस्राएल के राजा से कहा, “आपके सेवक बेन-हदद की विनती है, ‘कृपया मुझे प्राण दान दें.’ ”

अहाब ने उनसे पूछा, “क्या वह अब तक जीवित है? वह तो मेरा भाई है.”

33वहां बेन-हदद के मंत्री सही इशारे का इंतजार कर रहे थे. इसे ही शुभ संकेत समझकर उन्होंने तुरंत उत्तर दिया, “जी हां, जी हां, आपका ही भाई बेन-हदद.”

राजा अहाब ने उन्हें आदेश दिया, “जाओ, उसे ले आओ!” तब बेन-हदद अहाब के सामने आया. अहाब ने उसे अपने रथ पर ऊपर बुलाया.

34बेन-हदद ने अहाब को कहा, “जो नगर मेरे पिता ने आपके पिता से छीने थे, मैं उन्हें लौटा दूंगा. आप अपनी सुविधा के लिए दमेशेक में अपने व्यापार के केंद्र बना सकते हैं; जैसा मेरे पिता ने शमरिया में किया था.”

अहाब ने बेन-हदद से कहा, “यदि तुम्हारी ओर से यही सुझाव है, तो मैं तुम्हें मुक्त किए देता हूं.” तब उसने बेन-हदद से संधि की और उसे मुक्त कर दिया.

नबी द्वारा बेन-हद्द की मुक्ति का धिक्कार

35याहवेह के आदेश पर भविष्यद्वक्ता मंडल के एक भविष्यद्वक्ता ने अन्य सदस्य से विनती की, “कृपा कर मुझ पर वार करो.” मगर उसने यह विनती अस्वीकार कर दी.

36तब उस पहले ने दूसरे से कहा, “इसलिये कि तुमने याहवेह की आज्ञा तोड़ी है, यह देख लेना कि जैसे ही तुम यहां से बाहर जाओगे, एक शेर तुम्हें दबोच लेगा. हुआ भी यही: जैसे ही वह वहां से बाहर गया एक सिंह ने उसे दबोच लिया और मार डाला.”

37तब उसे एक दूसरा व्यक्ति मिला. उससे उसने विनती की, “कृपया मुझ पर वार कीजिए.” उस व्यक्ति ने उस पर वार किया और ऐसा वार किया कि वह भविष्यद्वक्ता चोटिल हो गया. 38तब वह भविष्यद्वक्ता वहां से चला गया और जाकर मार्ग में राजा का इंतजार करने लगा. उसने अपना रूप बदलने के उद्देश्य से अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. 39जैसे ही राजा वहां से गुजरा, उसने पुकारकर राजा से कहा, “आपका सेवक युद्ध-भूमि में गया हुआ था. वहां एक सैनिक ने एक व्यक्ति को मेरे पास लाकर कहा, ‘इस व्यक्ति की रक्षा करना. यदि किसी कारण से मुझे लौटने पर यह यहां न मिले, उसके प्राण के बदले में तुम्हारा प्राण लिया जाएगा. यदि यह नहीं तो तुम्हें उसके स्थान पर मुझे पैंतीस किलो20:39 पैंतीस किलो मूल में एक तालन्त चांदी देनी होगी.’ 40मैं, आपका सेवक जब अपने काम में जुट गया, वह व्यक्ति वहां से जा चुका था.”

इस्राएल के राजा ने उससे कहा, “तुम्हारा न्याय तुम्हारे ही कथन के अनुसार किया जाएगा. तुमने खुद अपना निर्णय सुना दिया है.”

41तब भविष्यद्वक्ता ने तुरंत अपनी आंखों पर से पट्टी हटा दी और इस्राएल का राजा तुरंत पहचान गया कि वह भविष्यद्वक्ता मंडल में से एक भविष्यद्वक्ता है. 42तब भविष्यद्वक्ता ने राजा से कहा, “यह संदेश याहवेह की ओर से है, ‘जिस व्यक्ति को मैंने पूर्ण विनाश के लिए अलग किया था, तुमने उसे अपने अधिकार में आने के बाद भी मुक्त कर दिया है, अब उसके प्राणों के स्थान पर तुम्हारे प्राण ले लिए जाएंगे और उसकी प्रजा के स्थान पर तुम्हारी प्रजा.’ ” 43इस्राएल का राजा उदास और अप्रसन्‍न होकर शमरिया पहुंचा.