Песнь 68
1Дирижёру хора. На мотив «Лилии». Песнь Довуда.
2Спаси меня, Всевышний,
потому что воды поднялись до шеи моей!
3Я погряз в глубоком иле, и нет опоры;
вошёл в глубокие воды, и потоком накрыло меня.
4Устал я, взывая о помощи;
иссушено моё горло.
Я выплакал глаза свои
в ожидании моего Бога.
5Ненавидящих меня без всякой причины
стало больше, чем волос на моей голове.
Умножились враги мои,
несправедливо меня преследующие.
То, чего не отнимал,
я должен отдать.
6Всевышний, Ты знаешь глупость мою,
и грехи мои от Тебя не сокрыты.
7Да не смущу я тех, кто надеется на Тебя,
Владыка Вечный, Повелитель Сил.
Пусть не будут опозорены из-за меня те,
кто ищет Тебя, Бог Исроила.
8Ведь ради Тебя сношу я упрёки,
и позор покрыл моё лицо.
9Изгоем я стал для братьев моих,
чужим для сыновей матери моей,
10потому что ревность о доме Твоём снедает меня,
и оскорбления тех, кто злословит Тебя, пали на меня.
11Когда я плакал и постился,
это ставили мне в упрёк.
12Когда я одевался в рубище,
я был посмешищем для них.
13Беседуют обо мне старейшины, сидящие у ворот68:13 Ворота города были центром всей общественной жизни, около них проходили и судебные разбирательства.,
и поют обо мне пьяницы.
14А я молюсь Тебе, Вечный,
во время Твоего благоволения.
По Своей великой милости ответь мне, Всевышний,
и в верности Твоей спаси меня.
15Вытащи меня из тины
и не дай погрязнуть мне!
Дай избавиться от ненавистников моих,
от вод глубоких!
16Да не накроет меня потоком вод,
и да не поглотит меня глубина,
и да не сомкнёт надо мной яма пасть свою.
17Ответь мне, Вечный, потому что благостна милость Твоя;
по Своей великой милости посмотри на меня.
18Не скрывай Своего лица от раба Твоего,
ведь я в беде.
Поспеши, ответь мне!
19Приблизься и избавь меня,
от моих врагов спаси!
20Ты знаешь, как меня презирают,
как бесчестят и позорят меня;
все враги мои пред Тобой.
21Поругание разбило моё сердце, и я сокрушён.
Рассчитывал на сострадание, но нет его,
на утешителей, но не нашёл их.
22Дали мне в пищу желчь;
при жажде моей уксусом меня напоили68:22 См. Мат. 27:34, 48; Мк. 15:36; Лк. 23:36; Ин. 19:29..
23Пусть их праздничные застолья станут для них ловушкой,
а священные праздники – западнёй68:23 Или: «ловушкой, возмездием и западнёй»..
24Пусть их глаза померкнут, чтобы они не видели,
и пусть их спины согнутся навсегда.
25Пролей на них Своё негодование,
и пусть пылающий гнев Твой настигнет их.
26Пусть их жилище будет в запустении;
пусть никто в шатрах их больше не живёт,
27потому что они преследуют тех, кого Ты и без того поразил,
и говорят о страданиях поверженных Тобою.
28Прибавь грех этот к грехам их,
и оправдания пусть не найдут они.
29Пусть будут вычеркнуты они из книги жизни
и да не будут записаны там вместе с праведниками.
30Я же угнетён и страдаю.
Спасение Твоё, Всевышний, пусть возвысит меня!
31Буду славить имя Всевышнего в песне,
буду превозносить Его с благодарностью.
32Это будет приятней Вечному, нежели вол,
приятнее, чем молодой бык с рогами и копытами.
33Когда увидят угнетённые, обрадуются.
Ищущие Всевышнего, пусть оживут ваши сердца!
34Вечный слышит нуждающихся
и узниками Своими не пренебрегает.
35Да восхвалят Его небеса и земля,
моря и всё, что живёт в них,
36потому что Всевышний освободит Иерусалим68:36 Букв.: «Сион».
и восстановит города Иудеи.
Его народ будет жить там и владеть ими,
37потомки Его рабов унаследуют их,
и любящие Его имя будут проживать в них.
سرود پيروزی
1ای خدا، برخيز و دشمنانت را پراكنده ساز. بگذار آنانی كه از تو نفرت دارند از حضور تو بگريزند. 2چنانكه دود در برابر باد پراكنده میشود، همچنان تو ايشان را پراكنده ساز؛ همانگونه كه موم در مقابل آتش گداخته میشود، همچنان بگذار گناهكاران در حضورت نابود شوند. 3اما نيكوكاران شادی كنند و در حضور تو خوشحال باشند؛ از شادی فرياد برآورند و خوش باشند.
4در وصف خدا سرود بخوانيد. نام او را ستايش كنيد. برای او كه بر ابرها سوار است، راهی درست كنيد. نام او خداوند است! در حضورش شادی كنيد!
5خدايی كه در خانهٔ مقدس خود ساكن است، پدر يتيمان و دادرس بيوهزنان میباشد. 6او بیكسان و آوارگان را در خانهها ساكن میگرداند و اسيران را آزاد میسازد. اما ياغيان در زمين خشک و بیآب ساكن خواهند شد.
7-8ای خدای اسرائيل، وقتی تو قوم برگزيدهٔ خود را هدايت كردی و از ميان بيابان عبور نمودی، زمين تكان خورد و آسمان باريد و كوه سينا از ترس حضور تو به لرزه افتاد. 9ای خدا، تو نعمتها بارانيدی و قوم برگزيدهٔ خود را كه خسته و ناتوان بودند، نيرو و توان بخشيدی. 10جماعت تو در زمين موعود ساكن شدند و تو ای خدای مهربان، حاجت نيازمندان را برآوردی.
11خداوند كلام را اعلان كرد و كسانی كه آن را بشارت دادند عدهٔ بیشماری بودند؛ كلام او اين است: 12«پادشاهان و سپاهيانشان بشتاب میگريزند! زنانی كه در خانه هستند غنايم جنگی را بين خود قسمت میكنند. 13آنها اگرچه روزی فقير و بينوا بودند، اما اينک خوشبخت و ثروتمندند و خود را مانند كبوتری كه بالهايش نقرهفام و پرهايش طلايی است با زر و زيور آراستهاند.» 14خدای قادر مطلق پادشاهانی را كه دشمن اسرائيل بودند مانند دانههای برف كه در جنگلهای كوه صلمون آب میشود، پراكنده و محو ساخت.
15-16ای کوههای عظيم باشان، ای سلسله جبال بزرگ كه قلههای بلند داريد، چرا با حسرت به اين كوهی كه خدا برای مسكن خود برگزيده است نگاه میكنيد؟ به يقين خداوند تا به ابد در آن ساكن خواهد بود.
17خداوند در ميان هزاران هزار عرابه از كوه سينا به خانهٔ مقدس خويش كه در كوه صهيون است، رفته است. 18او به عالم بالا صعود نموده عدهٔ زيادی را با خود به اسارت برده است. از ميان آدميان، حتی از كسانی كه زمانی ياغی بودهاند، بخششها گرفته است. خداوند در ميان ما ساكن خواهد شد.
19شكر و سپاس بر خداوندی كه هر روز متحمل بارهای ما میشود و خدايی كه نجات ماست. 20او نجات دهندهٔ ماست و ما را از مرگ میرهاند.
21خدا سر دشمنانش را كه در گناه زندگی میكنند، خرد خواهد كرد. 22-23خداوند میفرمايد: «دشمنان شما را از باشان و از اعماق دريا باز خواهم آورد تا در ميان خون ريخته شدهٔ آنان راه برويد و سگها خون ايشان را بخورند.»
24ای خدايی كه پادشاه و خداوند من هستی، همهٔ قومها حركت پيروزمندانهٔ تو را به سوی خانهٔ مقدست ديدهاند. 25سرايندگان در پيش و نوازندگان در عقب و دوشيزگان در وسط آنان دفزنان حركت میكنند. 26همهٔ مردم اسرائيل خدا را حمد گويند. ای فرزندان يعقوب، خداوند را ستايش كنيد. 27قبيلهٔ كوچک «بنيامين» پيشاپيش ستايشكنندگان خدا در حركت است؛ بعد از او رهبران قبيلهٔ «يهودا» با دستههای خود، سپس بزرگان قبيلهٔ «زبولون» و «نفتالی» حركت میكنند.
28ای خدا، نيروی خود را برای ما به کار ببر، همانگونه كه در گذشته اين كار را كردی. 29به احترام خانهٔ تو در اورشليم، پادشاهان هدايا نزد تو خواهند آورد. 30مصر، آن حيوان وحشی را كه در ميان نيزارها ساكن است، توبيخ نما. قومهای جهان را كه همچون رمههای گاو و گوساله هستند، سرزنش كن تا به فرمان تو گردن نهند و نقرههای خود را به تو تقديم كنند. اقوامی را كه جنگ را دوست میدارند، پراكنده ساز. 31مصر هدايا به دست سفيران خود خواهد فرستاد و حبشه دست دعا به سوی خداوند دراز خواهد كرد.
32-33ای سرزمينهای جهان، برای خدای ازلی و ابدی كه در آسمانها نشسته است، سرود بخوانيد؛ خداوند را كه با صدای بلند و نيرومند سخن میگويد، ستايش كنيد. 34قدرت خدا را توصيف نماييد خدايی كه شكوه و جلالش بر اسرائيل است و قوتش در آسمانها پابرجاست. 35چه سهمناک است خداوند در مكان مقدس خويش! خدای اسرائيل به قوم برگزيدهٔ خود قوت و عظمت میبخشد. او را شكر و سپاس باد!