स्तोत्र 90:1-10
चतुर्थ पुस्तक
स्तोत्र 90–106
स्तोत्र 90
परमेश्वर के प्रिय पात्र मोशेह की एक प्रार्थना
प्रभु, समस्त पीढ़ियों में
आप हमारे आश्रय-स्थल बने रहे हैं.
इसके पूर्व कि पर्वत अस्तित्व में आते
अथवा पृथ्वी तथा संसार की रचना की जाती,
अनादि से अनंत तक परमेश्वर आप ही हैं.
आप मनुष्य को यह कहकर पुनः धूल में लौटा देते हैं,
“मानव-पुत्र, लौट जा.”
आपके लिए एक हजार वर्ष वैसे ही होते हैं,
जैसे गत कल का दिन;
अथवा रात्रि का एक प्रहर.
आप मनुष्यों को ऐसे समेट ले जाते हैं, जैसे बाढ़; वे स्वप्न मात्र होते हैं—
प्रातःकाल में बढ़ने वाली कोमल घास के समान:
जो प्रातःकाल फूलती है, उसमें बढ़ती है,
किंतु संध्या होते-होते यह मुरझाती और सूख जाती है.
आपका कोप हमें मिटा डालता है,
आपकी अप्रसन्नता हमें घबरा देती है.
हमारे अपराध आपके सामने खुले हैं,
आपकी उपस्थिति में हमारे गुप्त पाप प्रकट हो जाते हैं.
हमारे जीवन के दिन आपके क्रोध की छाया में ही व्यतीत होते हैं;
हम कराहते हुए ही अपने वर्ष पूर्ण करते हैं.
हमारी जीवन अवधि सत्तर वर्ष है—संभवतः
अस्सी वर्ष, यदि हम बलिष्ठ हैं;
हमारी आयु का अधिकांश हम दुःख और कष्ट में व्यतीत करते हैं,
हां, ये तीव्र गति से समाप्त हो जाते हैं और हम कूच कर जाते हैं.