स्तोत्र 77:10-20 HCV

स्तोत्र 77:10-20

तब मैंने विचार किया, “वस्तुतः मेरे दुःख का कारण यह है:

कि सर्वोच्च प्रभु परमेश्वर ने अपना दायां हाथ खींच लिया है.

मैं याहवेह के महाकार्य स्मरण करूंगा;

हां, प्रभु पूर्व युगों में आपके द्वारा किए गए आश्चर्य कार्यों का मैं स्मरण करूंगा.

आपके समस्त महाकार्य मेरे मनन का विषय होंगे

और आपके आश्चर्य कार्य मेरी सोच का विषय.”

परमेश्वर, पवित्र हैं, आपके मार्ग.

और कौन सा ईश्वर हमारे परमेश्वर के तुल्य महान है?

आप तो वह परमेश्वर हैं, जो आश्चर्य कार्य करते हैं;

समस्त राष्ट्रों पर आप अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करते हैं.

आपने अपने भुजबल से अपने लोगों को,

याकोब और योसेफ़ के वंशजों को, छुड़ा लिया.

परमेश्वर, महासागर ने आपकी ओर दृष्टि की,

महासागर ने आपकी ओर दृष्टि की और छटपटाने लगा;

महासागर की गहराइयों तक में उथल-पुथल हो गई.

मेघों ने जल वृष्टि की,

स्वर्ग में मेघ की गरजना गूंज उठी;

आपके बाण इधर-उधर-सर्वत्र बरसने लगे.

आपकी गरजना का स्वर बवंडर में सुनाई पड़ रहा था,

आपकी बिजली की चमक से समस्त संसार प्रकाशित हो उठा;

पृथ्वी कांपी और हिल उठी.

आपका मार्ग सागर में से होकर गया है,

हां, महासागर में होकर आपका मार्ग गया है,

किंतु आपके पदचिन्ह अदृश्य ही रहे.

एक चरवाहे के समान आप अपनी प्रजा को लेकर आगे बढ़ते गए.

मोशेह और अहरोन आपके प्रतिनिधि थे.

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