स्तोत्र 77:1-9 HCV

स्तोत्र 77:1-9

स्तोत्र 77

संगीत निर्देशक के लिये. यदूथून के लिए. आसफ का एक स्तोत्र. एक गीत.

मैं परमेश्वर को पुकारता हूं—उच्च स्वर में परमेश्वर की दुहाई दे रहा हूं;

कि वह मेरी प्रार्थना पर ध्यान दें.

अपनी संकट की स्थिति में, मैंने प्रभु की सहायता की कामना की;

रात्रि के समय थकावट की अनदेखी कर मैं उनकी ओर हाथ बढ़ाए रहा

किंतु, मेरे प्राण को थोडी भी सांत्वना प्राप्‍त न हुई.

परमेश्वर, कराहते हुए मैं आपको स्मरण करता रहा;

आपका ध्यान करते हुए मेरी आत्मा क्षीण हो गई.

जब मैं संकट में निराश हो चुका था;

आपने मेरी आंख न लगने दी.

मेरे विचार प्राचीन काल में चले गए,

और फिर मैं प्राचीन काल में दूर चला गया.

जब रात्रि में मैं अपनी गीत रचनाएं स्मरण कर रहा था,

मेरा हृदय उन पर विचार करने लगा, तब मेरी आत्मा में यह प्रश्न उभर आया.

“क्या प्रभु स्थाई रूप से हमारा परित्याग कर देंगे?

क्या हमने स्थाई रूप से उनकी कृपादृष्टि खो दी है?

क्या उनका बड़ा प्रेम अब पूर्णतः शून्य हो गया?

क्या उनकी प्रतिज्ञा पूर्णतः विफल प्रमाणित हो गई?

क्या परमेश्वर की कृपालुता अब जाती रही?

क्या अपने क्रोध के कारण वह दया नहीं करेंगे?”

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