स्तोत्र 73:15-28 HCV

स्तोत्र 73:15-28

अब मेरा बोलना उन्हीं के जैसा होगा,

तो यह आपकी प्रजा के साथ विश्वासघात होता.

मैंने इस मर्म को समझने का प्रयास किया,

तो यह अत्यंत कठिन लगा.

तब मैं परमेश्वर के पवित्र स्थान में जा पहुंचा;

और वहां मुझ पर दुष्टों की नियति का प्रकाशन हुआ.

सचमुच में, आपने दुष्टों को फिसलने वाली भूमि पर रखा है;

विनाश होने के लिए आपने उन्हें निर्धारित कर रखा है.

अचानक ही आ पड़ेगा

उन पर विनाश, आतंक उन्हें एकाएक ही ले उड़ेगा!

जब दुस्वप्न के कारण निद्रा से जागने पर एक व्यक्ति

दुस्वप्न के रूप से घृणा करता है,

हे प्रभु, उसी प्रकार आपके जागने पर

उनके स्वरूप से आप घृणा करेंगे!

जब मेरा हृदय खेदित था

तथा मेरी आत्मा कड़वाहट से भर गई थी,

उस समय मैं नासमझ और अज्ञानी ही था;

आपके सामने मैं पशु समान था.

किंतु मैं सदैव आपके निकट रहा हूं;

और आप मेरा दायां हाथ थामे रहे.

आप अपनी सम्मति द्वारा मेरी अगुवाई करते हैं,

और अंत में आप मुझे अपनी महिमा में सम्मिलित कर लेंगे.

स्वर्ग में आपके अतिरिक्त मेरा कौन है?

आपकी उपस्थिति में मुझे पृथ्वी की किसी भी वस्तु की कामना नहीं रह जाती.

यह संभव है कि मेरी देह मेरा साथ न दे और मेरा हृदय क्षीण हो जाए,

किंतु मेरा बल स्वयं परमेश्वर हैं;

वही मेरी निधि हैं.

क्योंकि वे, जो आपसे दूर हैं, नष्ट हो जाएंगे;

आपने उन सभी को नष्ट कर दिया है, जो आपके प्रति विश्वासघाती हैं.

मेरा अपना अनुभव यह है, कि मनोरम है परमेश्वर का सान्‍निध्य.

मैंने प्रभु याहवेह को अपना आश्रय-स्थल बना लिया है;

कि मैं आपके समस्त महाकार्य को लिख सकूं.

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