स्तोत्र 73:1-14 HCV

स्तोत्र 73:1-14

तृतीय पुस्तक

स्तोत्र 73–89

स्तोत्र 73

आसफ का एक स्तोत्र.

इसमें कोई संदेह नहीं कि परमेश्वर इस्राएल के प्रति,

उनके प्रति, जिनके हृदय निर्मल हैं, हितकारी हैं.

वैसे मैं लगभग इस स्थिति तक पहुंच चुका था;

कि मेरे पैर फिसलने पर ही थे, मेरे कदम लड़खड़ाने पर ही थे.

मुझे दुर्जनों की समृद्धि से डाह होने लगी थी

क्योंकि मेरा ध्यान उनके घमंड पर था.

मृत्यु तक उनमें पीड़ा के प्रति कोई संवेदना न थी;

उनकी देह स्वस्थ तथा बलवान थी.

उन्हें अन्य मनुष्यों के समान सामान्य समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता;

उन्हें परिश्रम भी नहीं करना पड़ता.

अहंकार उनके गले का हार है;

तथा हिंसा उनका वस्त्र.

उनके संवेदन शून्य हृदय से अपराध ही निकलता है;

उनके मस्तिष्क में घुमड़ती दुष्कल्पनाओं की कोई सीमा ही नहीं है.

वे उपहास करते रहते हैं, बुराई करने की वार्तालाप करते हैं;

तथा अहंकार के साथ वे उत्पीड़न की धमकी देते हैं.

उनकी डींगे आकाश तक ऊंची होती हैं,

और वे दावा करते हैं कि वे पृथ्वी के अधिकारी हैं.

इसलिये उनके लोग इस स्थान पर लौट आते हैं,

और वे भरे हुए जल में से पान करते हैं.

वे कहते हैं, “यह कैसे हो सकता है, कि यह परमेश्वर को ज्ञात हो जाए?

क्या परम प्रधान को इसका बोध है?”

ऐसे होते हैं दुष्ट पुरुष—सदैव निश्चिंत;

और उनकी संपत्ति में वृद्धि होती रहती है.

क्या लाभ हुआ मुझे अपने हृदय को शुद्ध रखने का?

व्यर्थ ही मैंने अपने हाथ निर्दोष रखे.

सारे दिन मैं यातनाएं सहता रहा,

प्रति भोर मुझे दंड दिया जाता रहा.

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