स्तोत्र 55:12-23
यदि शत्रु मेरी निंदा करता तो यह,
मेरे लिए सहनीय है;
यदि मेरा विरोधी मेरे विरुद्ध उठ खड़ा हो तो,
मैं उससे छिप सकता हूं.
किंतु यहां तो तुम, मेरे साथी, मेरे परम मित्र,
मेरे शत्रु हो गए हैं, जो मेरे साथ साथ रहे हैं,
तुम्हारे ही साथ मैंने संगति के मेल-मिलाप अवसरों का आनंद लिया था,
अन्य आराधकों के साथ
हम भी साथ साथ
परमेश्वर के भवन को जाते थे.
अब उत्तम वही होगा कि अचानक ही मेरे शत्रुओं पर मृत्यु आ पड़े;
वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएं,
क्योंकि बुराई उनके घर में आ बसी है, उनकी आत्मा में भी.
यहां मैं तो परमेश्वर को ही पुकारूंगा,
याहवेह ही मेरा उद्धार करेंगे.
प्रातः, दोपहर और संध्या
मैं पीड़ा में कराहता रहूंगा,
और वह मेरी पुकार सुनेंगे.
उन्होंने मुझे उस युद्ध से
बिना किसी हानि के सुरक्षित निकाल लिया,
जो मेरे विरुद्ध किया जा रहा था जबकि मेरे अनेक विरोधी थे.
सर्वदा के सिंहासन पर विराजमान परमेश्वर,
मेरी विनती सुनकर उन्हें ताड़ना करेंगे.
वे ऐसे हैं, जिनका हृदय परिवर्तित नहीं होता;
उनमें परमेश्वर का कोई भय नहीं.
मेरा साथी ही अपने मित्रों पर प्रहार कर रहा है;
उसने अपनी वाचा भंग कर दी है.
मक्खन जैसी चिकनी हैं उसकी बातें,
फिर भी युद्ध उसके दिल में है;
उसके शब्दों में तेल से अधिक कोमलता थी,
फिर भी वे नंगी तलवार थे.
अपने दायित्वों का बोझ याहवेह को सौंप दो,
तुम्हारे बल का स्रोत वही हैं;
यह हो ही नहीं सकता कि वह किसी धर्मी पुरुष को
पतन के लिए शोकित छोड़ दें.
किंतु परमेश्वर, आपने दुष्टों के लिए विनाश
के गड्ढे को निर्धारित किया है;
रक्त पिपासु और कपटी मनुष्य अपनी
आधी आयु तक भी पहुंच न पाएंगे.
किंतु मेरा भरोसा आप पर अटल बना रहेगा.