स्तोत्र 51:10-19
परमेश्वर, मुझमें एक शुद्ध हृदय को उत्पन्न कीजिए,
और मेरे अंदर में सुदृढ़ आत्मा की पुनःस्थापना कीजिए.
मुझे अपने सान्निध्य से दूर न कीजिए
और मुझसे आपके पवित्रात्मा को न छीनिए.
अपने उद्धार का उल्लास मुझमें पुनः संचारित कीजिए,
और एक तत्पर आत्मा प्रदान कर मुझमें नवजीवन का संचार कीजिए.
तब मैं अपराधियों को आपकी नीतियों की शिक्षा दे सकूंगा,
कि पापी आपकी ओर पुनः फिर सकें.
परमेश्वर, मेरे छुड़ानेवाले परमेश्वर,
मुझे रक्तपात के दोष से मुक्त कर दीजिए,
कि मेरी जीभ आपकी धार्मिकता का स्तुति गान कर सके.
प्रभु, मेरे होंठों को खोल दीजिए,
कि मेरे मुख से आपकी स्तुति-प्रशंसा हो सके.
आपकी प्रसन्नता बलियों में नहीं है, अन्यथा मैं बलि अर्पित करता,
अग्निबलि में भी आप प्रसन्न नहीं हैं.
टूटी आत्मा ही परमेश्वर को स्वीकार्य योग्य बलि है;
टूटे और पछताये हृदय से,
हे परमेश्वर, आप घृणा नहीं करते हैं.
आपकी कृपादृष्टि से ज़ियोन की समृद्धि हो,
येरूशलेम की शहरपनाह का पुनर्निर्माण हो.
तब धर्मी की अग्निबलि
तथा सर्वांग पशुबलि अर्पण से आप प्रसन्न होंगे;
और आपकी वेदी पर बैल अर्पित किए जाएंगे.