स्तोत्र 35:1-10 HCV

स्तोत्र 35:1-10

स्तोत्र 35

दावीद की रचना

याहवेह, आप उनसे न्याय-विन्याय करें, जो मुझसे न्याय-विन्याय कर रहे हैं;

आप उनसे युद्ध करें, जो मुझसे युद्ध कर रहे हैं.

ढाल और कवच के साथ;

मेरी सहायता के लिए आ जाइए.

उनके विरुद्ध, जो मेरा पीछा कर रहे हैं,

बर्छी और भाला उठाइये.

मेरे प्राण को यह आश्वासन दीजिए,

“मैं हूं तुम्हारा उद्धार.”

वे, जो मेरे प्राणों के प्यासे हैं,

वे लज्जित और अपमानित हों;

जो मेरे विनाश की योजना बना रहे हैं,

पराजित हो भाग खड़े हों.

जब याहवेह का दूत उनका पीछा करे,

वे उस भूसे समान हो जाएं, जिसे पवन उड़ा ले जाता है;

उनका मार्ग ऐसा हो जाए, जिस पर अंधकार और फिसलन है.

और उस पर याहवेह का दूत उनका पीछा करता जाए.

उन्होंने अकारण ही मेरे लिए जाल बिछाया

और अकारण ही उन्होंने मेरे लिए गड्ढा खोदा है,

उनका विनाश उन पर अचानक ही आ पड़े,

वे उसी जाल में जा फंसे, जो उन्होंने बिछाया था,

वे स्वयं उस गड्ढे में गिरकर नष्ट हो जाएं.

तब याहवेह में मेरा प्राण उल्‍लसित होगा

और उनके द्वारा किया गया उद्धार मेरे हर्षोल्लास का विषय होगा.

मेरी हड्डियां तक कह उठेंगी,

“कौन है याहवेह के तुल्य?

आप ही हैं जो दुःखी को बलवान से,

तथा दरिद्र और दीन को लुटेरों से छुड़ाते हैं.”

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