स्तोत्र 34:1-10
स्तोत्र 34
दावीद की रचना. जब दावीद ने राजा अबीमेलेक के सामने पागल होने का स्वांग रचा था और अबीमेलेक ने उन्हें बाहर निकाल दिया जिससे वह वहां से पलायन कर सके थे.
हर एक स्थिति में मैं याहवेह को योग्य कहता रहूंगा;
मेरे होंठों पर उनकी स्तुति-प्रशंसा के उद्गार सदैव ही बने रहेंगे.
मेरी आत्मा याहवेह में गर्व करती है;
पीड़ित यह सुनें और उल्लसित हों.
मेरे साथ याहवेह का गुणगान करो;
हम सब मिलकर याहवेह की महिमा को ऊंचा करें.
मैंने याहवेह से प्रार्थना की और उन्होंने प्रत्युत्तर दिया;
उन्होंने मुझे सब प्रकार के भय से मुक्त किया.
जिन्होंने उनसे अपेक्षा की, वे उल्लसित ही हुए;
इसमें उन्हें कभी लज्जित न होना पड़ा.
इस दुःखी पुरुष ने सहायता के लिए पुकारा और याहवेह ने प्रत्युत्तर दिया;
उन्होंने उसे उसके समस्त संकटों से छुड़ा लिया है.
याहवेह का दूत उनके श्रद्धालुओं के चारों ओर उनकी चौकसी करता रहता है
और उनको बचाता है.
स्वयं चखकर देख लो कि कितने भले हैं याहवेह;
कैसा धन्य है वे, जो उनका आश्रय लेते हैं.
सभी भक्तो, याहवेह के प्रति श्रद्धा रखो.
जो उन पर श्रद्धा रखते हैं, उन्हें कोई भी घटी नहीं होती.
युवा सिंह दुर्बल हो सकते हैं और वे भूखे भी रह जाते हैं,
किंतु जो याहवेह के खोजी हैं, उन्हें किसी उपयुक्त वस्तु की घटी नहीं होगी.