स्तोत्र 32:1-11 HCV

स्तोत्र 32:1-11

स्तोत्र 32

दावीद की मसकील32:0 शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द गीत रचना

धन्य हैं वे,

जिनके अपराध क्षमा कर दिए गए,

जिनके पापों को ढांप दिया गया है.

धन्य है वह व्यक्ति,

जिसके पापों का हिसाब याहवेह कभी न लेंगे.

तथा जिसके हृदय में कोई कपट नहीं है.

जब तक मैंने अपना पाप छिपाए रखा,

दिन भर कराहते रहने के कारण,

मेरी हड्डियां क्षीण होती चली गईं,

क्योंकि दिन-रात

आपका हाथ मुझ पर भारी था;

मेरा बल मानो ग्रीष्मकाल की

ताप से सूख गया.

तब मैंने अपना पाप अंगीकार किया,

मैंने अपना अपराध नहीं छिपाया.

मैंने निश्चय किया,

“मैं याहवेह के सामने अपने अपराध स्वीकार करूंगा.”

जब मैंने आपके सामने अपना पाप स्वीकार किया

तब आपने मेरे अपराध का दोष क्षमा किया.

इसलिये आपके सभी श्रद्धालु,

जब तक संभव है आपसे प्रार्थना करते रहें.

तब, जब संकट का प्रबल जल प्रवाह आएगा,

वह उनको स्पर्श न कर सकेगा.

आप मेरे आश्रय-स्थल हैं;

आप ही मुझे संकट से बचाएंगे

और मुझे उद्धार के विजय घोष से घेर लेंगे.

याहवेह ने कहा, मैं तुम्हें सद्बुद्धि प्रदान करूंगा तथा उपयुक्त मार्ग के लिए तुम्हारी अगुवाई करूंगा;

मैं तुम्हें सम्मति दूंगा और तुम्हारी रक्षा करता रहूंगा.

तुम्हारी मनोवृत्ति न तो घोड़े समान हो, न खच्चर समान,

जिनमें समझ ही नहीं होती.

उन्हें तो रास और लगाम द्वारा नियंत्रित करना पड़ता है,

अन्यथा वे तुम्हारे निकट नहीं आते.

दुष्ट अपने ऊपर अनेक संकट ले आते हैं,

किंतु याहवेह का करुणा-प्रेम32:10 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं

उनके सच्चे लोगों को घेरे हुए उसकी सुरक्षा करता रहता है.

याहवेह में उल्‍लसित होओ और आनंद मनाओ, धर्मियो गाओ;

तुम सभी, जो सीधे मनवाले हो, हर्षोल्लास में जय जयकार करो!

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