स्तोत्र 31:9-18 HCV

स्तोत्र 31:9-18

याहवेह, मुझ पर अनुग्रह कीजिए, मैं इस समय संकट में हूं;

शोक से मेरी आंखें धुंधली पड़ चुकी हैं,

मेरे प्राण तथा मेरी देह भी शिथिल हो चुकी है.

वेदना में मेरा जीवन समाप्‍त हुआ जा रहा है;

आहें भरते-भरते मेरी आयु नष्ट हो रही है;

अपराधों ने मेरी शक्ति को खत्म कर दिया है,

मेरी हड्डियां तक जीर्ण हो चुकी हैं.

विरोधियों के कारण,

मैं अपने पड़ोसियों के सामने घृणास्पद बन गया हूं,

मैं अपने परिचितों के सामने भयास्पद बन गया हूं,

सड़क पर मुझे देख वे छिपने लगते हैं.

उन्होंने मुझे ऐसे भुला दिया है मानो मैं एक मृत पुरुष हूं;

मैं वैसा ही व्यर्थ हो गया हूं जैसे एक टूटा पात्र.

अनेकों का फुसफुस करना मैं सुन रहा हूं;

“आतंक ने मुझे चारों ओर से घेर लिया है!”

वे मेरे विरुद्ध सम्मति रच रहे हैं,

वे मेरे प्राण लेने के लिए तैयार हो गए हैं.

किंतु याहवेह, मैंने आप पर भरोसा रखा है;

यह मेरी साक्षी है, “आप ही मेरे परमेश्वर हैं.”

मेरा जीवन आपके ही हाथों में है;

मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ा लीजिए,

उन सबसे मेरी रक्षा कीजिए, जो मेरा पीछा कर रहे हैं.

अपने मुखमंडल का प्रकाश अपने सेवक पर चमकाईए;

अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए.

याहवेह, मुझे लज्जित न होना पड़े,

मैं बार-बार आपको पुकारता रहा हूं;

लज्जित हों दुष्ट और अधोलोक हो उनकी नियति,

जहां जाकर वे चुपचाप हो जाएं.

उनके झूठ भाषी ओंठ मूक हो जाएं,

क्योंकि वे घृणा एवं घमण्ड से प्रेरित हो,

धर्मियों के विरुद्ध अहंकार करते रहते हैं.

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