स्तोत्र 30:1-7 HCV

स्तोत्र 30:1-7

स्तोत्र 30

एक स्तोत्र. मंदिर के समर्पणोत्सव के लिए एक गीत, दावीद की रचना.

याहवेह, मैं आपकी महिमा और प्रशंसा करूंगा,

क्योंकि आपने मुझे गहराई में से बचा लिया है

अब मेरे शत्रुओं को मुझ पर हंसने का संतोष प्राप्‍त न हो सकेगा.

याहवेह, मेरे परमेश्वर, मैंने सहायता के लिए आपको पुकारा,

आपने मुझे पुनःस्वस्थ कर दिया.

याहवेह, आपने मुझे अधोलोक से ऊपर खींच लिया;

आपने मुझे जीवनदान दिया, उनमें से बचा लिया, जो अधोलोक-कब्र में हैं.

याहवेह के भक्तो, उनके स्तवन गान गाओ;

उनकी महिमा में जय जयकार करो.

क्योंकि क्षण मात्र का होता है उनका कोप,

किंतु आजीवन स्थायी रहती है उनकी कृपादृष्टि;

यह संभव है रोना रात भर रहे,

किंतु सबेरा उल्लास से भरा होता है.

अपनी समृद्धि की स्थिति में मैं कह उठा,

“अब मुझ पर विषमता की स्थिति कभी न आएगी.”

याहवेह, आपने ही मुझ पर कृपादृष्टि कर,

मुझे पर्वत समान स्थिर कर दिया;

किंतु जब आपने मुझसे अपना मुख छिपा लिया,

तब मैं निराश हो गया.

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