स्तोत्र 18:7-15
पृथ्वी झूलकर कांपने लगी,
पहाड़ों की नींव थरथरा उठी;
और कांपने लगी. क्योंकि प्रभु क्रुद्ध थे.
उनके नथुनों से धुआं उठ रहा था;
उनके मुख की आग चट करती जा रही थी,
उसने कोयलों को दहका रखा था.
उन्होंने आकाशमंडल को झुकाया और उतर आए;
उनके पैरों के नीचे घना अंधकार था.
वह करूब पर चढ़कर उड़ गए;
वह हवा के पंखों पर चढ़कर उड़ गये!
उन्होंने अंधकार ओढ़ लिया, वह उनका छाता बन गया,
घने-काले वर्षा के मेघ में घिरे हुए.
उनकी उपस्थिति के तेज से मेघ ओलों
और बिजलियां के साथ आगे बढ़ रहे थे.
स्वर्ग से याहवेह ने गर्जन की
और परम प्रधान ने अपने शब्द सुनाए.
उन्होंने बाण छोड़े और उन्हें बिखरा दिया,
बिजलियों ने उनके पैर उखाड़ दिए.
याहवेह की प्रताड़ना से,
नथुनों से उनके सांस के झोंके से
सागर के जलमार्ग दिखाई देने लगे;
संसार की नीवें खुल गईं.