स्तोत्र 139:11-16 HCV

स्तोत्र 139:11-16

यदि मैं यह विचार करूं, “निश्चयतः मैं अंधकार में छिप जाऊंगा

और मेरे चारों ओर का प्रकाश रात्रि में बदल जाएगा,”

अंधकार भी आपकी दृष्टि के लिए अंधकार नहीं;

आपके लिए तो रात्रि भी दिन के समान ज्योतिर्मय है,

आपके सामने अंधकार और प्रकाश एक समान हैं.

आपने ही मेरे आन्तरिक अंगों की रचना की;

मेरी माता के गर्भ में आपने मेरी देह की रचना की.

मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूं, क्योंकि आपने मेरी रचना भयानक एवं अद्भुत ढंग से की है;

आश्चर्य हैं आपके कार्य,

मेरे प्राणों को इसका पूर्ण बोध है.

मेरा ढांचा उस समय आपके लिए रहस्य नहीं था

जब सभी अवस्था में मेरा निर्माण हो रहा था,

जब मैं पृथ्वी की गहराइयों में जटिल कौशल में तैयार किया जा रहा था.

आपकी दृष्टि मेरे विकासोन्मुख भ्रूण पर थी;

मेरे लिए निर्धारित समस्त दिनों का कुल लेखा आपके ग्रंथ में अंकित था,

जबकि वे उस समय अस्तित्व में भी न थे.

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