स्तोत्र 129:1-8 HCV

स्तोत्र 129:1-8

स्तोत्र 129

आराधना के लिए यात्रियों का गीत.

“मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं,”

इस्राएल राष्ट्र यही कहे;

“मेरे बचपन से वे मुझ पर घोर अत्याचार करते आए हैं,

किंतु वे मुझ पर प्रबल न हो सके हैं.

हल चलानेवालों ने मेरे पीठ पर हल चलाया है,

और लम्बी-लम्बी हल रेखाएं खींच दी हैं.

किंतु याहवेह युक्त है;

उन्हीं ने मुझे दुष्टों के बंधनों से मुक्त किया है.”

वे सभी, जिन्हें ज़ियोन से बैर है,

लज्जित हो लौट जाएं.

उनकी नियति भी वही हो, जो घर की छत पर उग आई घास की होती है,

वह विकसित होने के पूर्व ही मुरझा जाती है;

किसी के हाथों में कुछ भी नहीं आता,

और न उसकी पुलियां बांधी जा सकती हैं.

आते जाते पुरुष यह कभी न कह पाएं,

“तुम पर याहवेह की कृपादृष्टि हो;

हम याहवेह के नाम में तुम्हारे लिए मंगल कामना करते हैं.”

Read More of स्तोत्र 129