स्तोत्र 119:81-88 HCV

स्तोत्र 119:81-88

आपके उद्धार की तीव्र अभिलाषा करते हुए मेरा प्राण बेचैन हुआ जा रहा है,

अब आपका वचन ही मेरी आशा का आधार है.

आपकी प्रतिज्ञा-पूर्ति की प्रतीक्षा में मेरी आंखें थक चुकी हैं;

मैं पूछ रहा हूं, “कब मुझे आपकी ओर से सांत्वना प्राप्‍त होगी?”

यद्यपि मैं धुएं में संकुचित द्राक्षारस की कुप्पी के समान हो गया हूं,

फिर भी आपकी विधियां मेरे मन से लुप्‍त नहीं हुई हैं.

और कितनी प्रतीक्षा करनी होगी आपके सेवक को?

आप कब मेरे सतानेवालों को दंड देंगे?

अहंकारियों ने मेरे लिए गड्ढे खोद रखे हैं,

उनका आचरण आपकी व्यवस्था के विपरीत है.

विश्वासयोग्य हैं आपके आदेश;

मेरी सहायता कीजिए, झूठ बोलनेवाले मुझे दुःखित कर रहे हैं.

उन्होंने मुझे धरती पर से लगभग मिटा ही डाला था,

फिर भी मैं आपके नीति सूत्रों से दूर न हुआ.

मैं आपके मुख से बोले हुए नियमों का पालन करता रहूंगा,

अपने करुणा-प्रेम के अनुरूप मेरे जीवन की रक्षा कीजिए.

ל लामेध

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