स्तोत्र 118:17-29 HCV

स्तोत्र 118:17-29

मैं जीवित रहूंगा, मेरी मृत्यु नहीं होगी,

और मैं याहवेह के महाकार्य की उद्घोषणा करता रहूंगा.

कठोर थी मुझ पर याहवेह की प्रताड़ना,

किंतु उन्होंने मुझे मृत्यु के हाथों में नहीं सौंप दिया.

मेरे लिए धार्मिकता के द्वार खोल दिए जाएं;

कि मैं उनमें से प्रवेश करके याहवेह को आभार भेंट अर्पित कर सकूं.

यह याहवेह का प्रवेश द्वार है,

जिसमें से धर्मी ही प्रवेश करेंगे.

याहवेह, मैं आपको आभार भेंट अर्पित करूंगा;

क्योंकि आपने मेरी प्रार्थना सुन ली; आप मेरे उद्धारक हो गए हैं.

भवन निर्माताओं द्वारा

अयोग्य घोषित शिला ही आधारशिला बन गई है;

यह कार्य याहवेह का है,

हमारी दृष्टि में अद्भुत.

यह याहवेह द्वारा बनाया गया दिन है;

आओ, हम आनंद में उल्‍लसित हों.

याहवेह, हमारी रक्षा कीजिए!

याहवेह, हमें समृद्धि दीजिए!

स्तुत्य हैं वह, जो याहवेह के नाम में आ रहे हैं.

हम याहवेह के आवास से आपका अभिनंदन करते हैं.

याहवेह ही परमेश्वर हैं,

उन्होंने हम पर अपनी रोशनी डाली है.

उत्सव के बलि पशु को

वेदी के सींगों से बांध दो.

आप ही मेरे परमेश्वर हैं, मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करूंगा;

आप ही मेरे परमेश्वर हैं, मैं आपका गुणगान करूंगा.

याहवेह का धन्यवाद करो,

क्योंकि वे भले हैं, सनातन है उनकी करुणा.

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