स्तोत्र 109:21-31 HCV

स्तोत्र 109:21-31

किंतु आप, सर्वसत्ताधारी याहवेह,

अपनी महिमा के अनुरूप मुझ पर कृपा कीजिए;

अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए.

मैं दीन और दरिद्र हूं,

और मेरा हृदय घायल है.

संध्याकालीन छाया-समान मेरा अस्तित्व समाप्‍ति पर है;

मुझे ऐसे झाड़ दिया जाता है मानो मैं अरबेह टिड्डी हूं.

उपवास के कारण मेरे घुटने दुर्बल हो चुके हैं;

मेरा शरीर क्षीण और कमजोर हो गया है.

मेरे विरोधियों के लिए मैं घृणास्पद हो चुका हूं;

मुझे देखते ही वे सिर हिलाने लगते हैं.

याहवेह मेरे परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए;

अपने करुणा-प्रेम के कारण मेरा उद्धार कीजिए.

उनको यह स्पष्ट हो जाए कि, वह आपके बाहुबल के कारण ही हो रहा है,

यह कि याहवेह, यह सब आपने ही किया है.

वे शाप देते रहें, किंतु आप आशीर्वचन ही कहें;

तब जब वे, आक्रमण करेंगे, उन्हें लज्जित होना पड़ेगा,

यह आपके सेवक के लिए आनंद का विषय होगा.

मेरे विरोधियों को अनादर के वस्त्रों के समान धारण करनी होगी,

वे अपनी ही लज्जा को कंबल जैसे लपेट लेंगे.

मेरे मुख की वाणी याहवेह के सम्मान में उच्चतम धन्यवाद होगी;

विशाल जनसमूह के सामने मैं उनका स्तवन करूंगा,

क्योंकि याहवेह दुःखितों के निकट दायें पक्ष पर आ खड़े रहते हैं,

कि वह उनके जीवन को उन सबसे सुरक्षा प्रदान करें, जिन्होंने उसके लिए मृत्यु दंड निर्धारित किया था.

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