स्तोत्र 106:1-15 HCV

स्तोत्र 106:1-15

स्तोत्र 106

याहवेह की स्तुति हो!

याहवेह का धन्यवाद करो-वे भले हैं;

उनकी करुणा सदा की है.

किसमें क्षमता है याहवेह के महाकार्य को लिखने की

अथवा उनका तृप्‍त स्तवन करने की?

प्रशंसनीय हैं वे, जो न्याय का पालन करते हैं,

जो सदैव वही करते हैं, जो न्याय संगत ही होता है.

याहवेह, जब आप अपनी प्रजा पर कृपादृष्टि करें, तब मुझे स्मरण रखिए,

जब आप उन्हें उद्धार दिलाएं, तब मेरा भी ध्यान रखें.

कि मैं आपके चुने हुओं की समृद्धि देख सकूं,

कि मैं आपके राष्ट्र के आनंद में उल्‍लसित हो सकूं,

कि मैं आपके निज भाग के साथ गर्व कर सकूं.

हमने अपने पूर्वजों के समान पाप किए हैं;

हमने अपराध किया है, हमारे आचरण में अधर्म था.

जब हमारे पूर्वज मिस्र देश में थे,

उन्होंने आपके द्वारा किए गए आश्चर्य कार्यों की गहनता को मन में ग्रहण नहीं किया;

उनके लिए आपके करुणा-प्रेम में किए गए वे अनेक हितकार्य नगण्य ही रहे,

सागर, लाल सागर के तट पर उन्होंने विद्रोह कर दिया.

फिर भी परमेश्वर ने अपनी महिमा के निमित्त उनकी रक्षा की,

कि उनका अतुलनीय सामर्थ्य प्रख्यात हो जाए.

परमेश्वर ने लाल सागर को डांटा और वह सूख गया;

परमेश्वर उन्हें उस गहराई में से इस प्रकार लेकर आगे बढ़ते गए मानो वे वन के मार्ग पर चल रहे हों.

परमेश्वर ने शत्रुओं से उनकी सुरक्षा की;

उन्हें शत्रुओं के अधिकार से मुक्त कर दिया.

उनके प्रतिरोधी जल में डूब गए;

उनमें से एक भी जीवित न रहा.

तब उन्होंने परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास किया

और उनकी वंदना की.

किंतु शीघ्र ही वह परमेश्वर के महाकार्य को भूल गए;

यहां तक कि उन्होंने परमेश्वर के निर्देशों की प्रतीक्षा भी नहीं की.

जब वे बंजर भूमि में थे, वे अपने अनियंत्रित आवेगों में बह गए;

उजाड़ क्षेत्र में उन्होंने परमेश्वर की परीक्षा ली.

तब परमेश्वर ने उनकी अभिलाषा की पूर्ति कर दी;

इसके अतिरिक्त परमेश्वर ने उन पर महामारी भेज दी.

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