स्तोत्र 104:19-30 HCV

स्तोत्र 104:19-30

आपने नियत समय के लिए चंद्रमा बनाया है,

सूर्य को अपने अस्त होने का स्थान ज्ञात है.

आपने अंधकार का प्रबंध किया, कि रात्रि हो,

जिस समय वन्य पशु चलने फिरने को निकल पड़ते हैं.

अपने शिकार के लिए पुष्ट सिंह गरजनेवाले हैं,

वे परमेश्वर से अपने भोजन खोजते हैं.

सूर्योदय के साथ ही वे चुपचाप छिप जाते हैं;

और अपनी-अपनी मांदों में जाकर सो जाते हैं.

इस समय मनुष्य अपने-अपने कार्यों के लिए निकल पड़ते हैं,

वे संध्या तक अपने कार्यों में परिश्रम करते रहते हैं.

याहवेह! असंख्य हैं आपके द्वारा निष्पन्‍न कार्य,

आपने अपने अद्भुत ज्ञान में इन सब की रचना की है;

समस्त पृथ्वी आपके द्वारा रचे प्राणियों से परिपूर्ण हो गई है.

एक ओर समुद्र है, विस्तृत और गहरा,

उसमें भी असंख्य प्राणी चलते फिरते हैं—

समस्त जीवित प्राणी हैं, सूक्ष्म भी और विशालकाय भी.

इसमें जलयानों का आगमन होता रहता है,

साथ ही इसमें विशालकाय जंतु हैं, लिवयाथान104:26 बड़ा मगरमच्छ हो सकता है, जिसे आपने समुद्र में खेलने के लिए बनाया है.

इन सभी की दृष्टि आपकी ओर इसी आशा में लगी रहती है,

कि इन्हें आपकी ओर से उपयुक्त अवसर पर आहार प्राप्‍त होगा.

जब आप उन्हें आहार प्रदान करते हैं,

वे इसे एकत्र करते हैं;

जब आप अपनी मुट्ठी खोलते हैं,

उन्हें उत्तम वस्तुएं प्राप्‍त हो जाती हैं.

जब आप उनसे अपना मुख छिपा लेते हैं,

वे घबरा जाते हैं;

जब आप उनकी श्वास छीन लेते हैं,

उनके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं और वे उसी धूलि में लौट जाते हैं.

जब आप अपना पवित्रात्मा प्रेषित करते हैं,

उनका उद्भव होता है,

उस समय आप पृथ्वी के स्वरूप को नया बना देते हैं.

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