स्तोत्र 103:1-12 HCV

स्तोत्र 103:1-12

स्तोत्र 103

दावीद की रचना

मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो;

मेरी संपूर्ण आत्मा उनके पवित्र नाम का स्तवन करे.

मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो,

उनके किसी भी उपकार को न भूलो.

वह तेरे सब अपराध क्षमा करते

तथा तेरे सब रोग को चंगा करते हैं.

वही तेरे जीवन को गड्ढे से छुड़ा लेते हैं

तथा तुझे करुणा-प्रेम एवं मनोहरता से सुशोभित करते हैं.

वह तेरी अभिलाषाओं को मात्र उत्कृष्ट वस्तुओं से ही तृप्‍त करते हैं,

जिसके परिणामस्वरूप तेरी जवानी गरुड़-समान नई हो जाती है.

याहवेह सभी दुःखितों के निमित्त धर्म

एवं न्यायसंगतता के कार्य करते हैं.

उन्होंने मोशेह को अपनी नीति स्पष्ट की,

तथा इस्राएल राष्ट्र के सामने अपना अद्भुत कृत्य:

याहवेह करुणामय, कृपानिधान,

क्रोध में विलंबी तथा करुणा-प्रेम में समृद्ध हैं.

वह हम पर निरंतर आरोप नहीं लगाते रहेंगे,

और न ही हम पर उनकी अप्रसन्‍नता स्थायी बनी रहेगी;

उन्होंने हमें न तो हमारे अपराधों के लिए निर्धारित दंड दिया

और न ही उन्होंने हमारे अधर्मों का प्रतिफल हमें दिया है.

क्योंकि आकाश पृथ्वी से जितना ऊपर है,

उतना ही महान है उनका करुणा-प्रेम उनके श्रद्धालुओं के लिए.

पूर्व और पश्चिम के मध्य जितनी दूरी है,

उन्होंने हमारे अपराध हमसे उतने ही दूर कर दिए हैं.

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