स्तोत्र 102:18-28 HCV

स्तोत्र 102:18-28

भावी पीढ़ी के हित में यह लिखा जाए,

कि वे, जो अब तक अस्तित्व में ही नहीं आए हैं, याहवेह का स्तवन कर सकें:

“याहवेह ने अपने महान मंदिर से नीचे की ओर दृष्टि की,

उन्होंने स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि की,

कि वह बंदियों का कराहना सुनें और उन्हें मुक्त कर दें,

जिन्हें मृत्यु दंड दिया गया है.”

कि मनुष्य ज़ियोन में याहवेह की महिमा की घोषणा कर सकें

तथा येरूशलेम में उनका स्तवन,

जब लोग तथा राज्य

याहवेह की वंदना के लिए एकत्र होंगे.

मेरी जीवन यात्रा पूर्ण भी न हुई थी, कि उन्होंने मेरा बल शून्य कर दिया;

उन्होंने मेरी आयु घटा दी.

तब मैंने आग्रह किया:

“मेरे परमेश्वर, मेरे जीवन के दिनों के पूर्ण होने के पूर्व ही मुझे उठा न लीजिए;

आप तो पीढ़ी से पीढ़ी स्थिर ही रहते हैं.

प्रभु, आपने प्रारंभ में ही पृथ्वी की नींव रखी,

तथा आकाशमंडल आपके ही हाथों की कारीगरी है.

वे तो नष्ट हो जाएंगे किंतु आप अस्तित्व में ही रहेंगे;

वे सभी वस्त्र समान पुराने हो जाएंगे.

आप उन्हें वस्त्रों के ही समान परिवर्तित कर देंगे

उनका अस्तित्व समाप्‍त हो जाएगा.

आप न बदलनेवाले हैं,

आपकी आयु का कोई अंत नहीं.

आपके सेवकों की सन्तति आपकी उपस्थिति में निवास करेंगी;

उनके वंशज आपके सम्मुख स्थिर रहेंगे.”

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