सूक्ति संग्रह 8:1-11
बुद्धि का आह्वान
क्या ज्ञान आह्वान नहीं करता?
क्या समझ उच्च स्वर में नहीं पुकारती?
वह गलियों के ऊंचे मार्ग पर,
चौराहों पर जाकर खड़ी हो जाती है;
वह नगर प्रवेश द्वार के सामने खड़ी रहती है,
उसके द्वार के सामने खड़ी होकर वह उच्च स्वर में पुकारती रहती है:
“मनुष्यो, मैं तुम्हें संबोधित कर रही हूं;
मेरी पुकार मनुष्यों की सन्तति के लिए है.
साधारण सरल व्यक्तियो, चतुराई सीख लो;
अज्ञानियो, बुद्धिमत्ता सीख लो.
क्योंकि मैं तुम पर उत्कृष्ट बातें प्रकट करूंगी;
मेरे मुख से वही सब निकलेगा जो सुसंगत ही है,
क्योंकि मेरे मुख से मात्र सत्य ही निकलेगा,
मेरे होंठों के लिए दुष्टता घृणास्पद है.
मेरे मुख से निकला हर एक शब्द धर्ममय ही होता है;
उनमें न तो छल-कपट होता है, न ही कोई उलट फेर का विषय.
जिस किसी ने इनका मूल्य पहचान लिया है, उनके लिए ये उपयुक्त हैं,
और जिन्हें ज्ञान की उपलब्धि हो चुकी है, उनके लिए ये उत्तम हैं.
चांदी के स्थान पर मेरी शिक्षा को संग्रहीत करो,
वैसे ही उत्कृष्ट स्वर्ण के स्थान पर ज्ञान को,
क्योंकि ज्ञान रत्नों से अधिक कीमती है,
और तुम्हारे द्वारा अभिलाषित किसी भी वस्तु से इसकी तुलना नहीं की जा सकती.