सूक्ति संग्रह 5:15-23 HCV

सूक्ति संग्रह 5:15-23

तुम अपने ही जलाशय से जल का पान करना,

तुम्हारा अपना कुंआ तुम्हारा सोता हो.

क्या तुम्हारे सोते की जलधाराएं इधर-उधर बह जाएं,

क्या ये जलधाराएं सार्वजनिक गलियों के लिए हैं?

इन्हें मात्र अपने लिए ही आरक्षित रखना,

न कि तुम्हारे निकट आए अजनबी के लिए.

आशीषित बने रहें तुम्हारे सोते,

युवावस्था से जो तुम्हारी पत्नी है, वही तुम्हारे आनंद का सोता हो.

वह हिरणी सी कमनीय और मृग सी आकर्षक है.

उसी के स्तन सदैव ही तुम्हें उल्लास से परिपूर्ण करते रहें,

उसका प्रेम ही तुम्हारा आकर्षण बन जाए.

मेरे पुत्र, वह व्यभिचारिणी भली क्यों तुम्हारे आकर्षण का विषय बने?

वह व्यभिचारिणी क्यों तुम्हारे सीने से लगे?

पुरुष का चालचलन सदैव याहवेह की दृष्टि में रहता है,

वही तुम्हारी चालों को देखते रहते हैं.

दुष्ट के अपराध उन्हीं के लिए फंदा बन जाते हैं;

बड़ा सशक्त होता है उसके पाप का बंधन.

उसकी मृत्यु का कारण होती है उसकी ही शिक्षा,

उसकी अतिशय मूर्खता ही उसे भटका देती है.

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