सूक्ति संग्रह 30:11-23 HCV

सूक्ति संग्रह 30:11-23

“एक पीढ़ी ऐसी है, जो अपने ही पिता को शाप देती है,

तथा उनके मुख से उनकी माता के लिए कोई भी धन्य उद्गार नहीं निकलते;

कुछ की दृष्टि में उनका अपना चालचलन शुद्ध होता है

किंतु वस्तुतः उनकी अपनी ही मलिनता से वे धुले हुए नहीं होते है;

एक और समूह ऐसा है,

आंखें गर्व से चढ़ी हुई तथा उन्‍नत भौंहें;

कुछ वे हैं, जिनके दांत तलवार समान

तथा जबड़ा चाकू समान हैं,

कि पृथ्वी से उत्पीड़ितों को

तथा निर्धनों को मनुष्यों के मध्य में से लेकर निगल जाएं.

“जोंक की दो बेटियां हैं.

जो चिल्लाकर कहती हैं, ‘और दो! और दो!’

“तीन वस्तुएं असंतुष्ट ही रहती है,

वस्तुतः चार कभी नहीं कहती, ‘अब बस करो!’:

अधोलोक तथा

बांझ की कोख;

भूमि, जो जल से कभी तृप्‍त नहीं होती,

और अग्नि, जो कभी नहीं कहती, ‘बस!’

“वह नेत्र, जो अपने पिता का अनादर करते हैं,

तथा जिसके लिए माता का आज्ञापालन घृणास्पद है,

घाटी के कौवों द्वारा नोच-नोच कर निकाल लिया जाएगा,

तथा गिद्धों का आहार हो जाएगा.

“तीन वस्तुएं मेरे लिए अत्यंत विस्मयकारी हैं,

वस्तुतः चार, जो मेरी समझ से सर्वथा परे हैं:

आकाश में गरुड़ की उड़ान,

चट्टान पर सर्प का रेंगना,

महासागर पर जलयान का आगे बढ़ना,

तथा पुरुष और स्त्री का पारस्परिक संबंध.

“व्यभिचारिणी स्त्री की चाल यह होती है:

संभोग के बाद वह कहती है, ‘क्या विसंगत किया है मैंने.’

मानो उसने भोजन करके अपना मुख पोंछ लिया हो.

“तीन परिस्थितियां ऐसी हैं, जिनमें पृथ्वी तक कांप उठती है;

वस्तुतः चार इसे असहाय हैं:

दास का राजा बन जाना,

मूर्ख व्यक्ति का छक कर भोजन करना,

पूर्णतः घिनौनी स्त्री का विवाह हो जाना

तथा दासी का स्वामिनी का स्थान ले लेना.

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