सूक्ति संग्रह 30:1-10 HCV

सूक्ति संग्रह 30:1-10

आगूर द्वारा प्रस्तुत नीति सूत्र

याकेह के पुत्र आगूर का वक्तव्य—एक प्रकाशन ईथिएल के लिए.

इस मनुष्य की घोषणा—ईथिएल और उकाल के लिए:

निःसंदेह, मैं इन्सान नहीं, जानवर जैसा हूं;

मनुष्य के समान समझने की क्षमता भी खो चुका हूं.

न तो मैं ज्ञान प्राप्‍त कर सका हूं,

और न ही मुझमें महा पवित्र परमेश्वर को समझने की कोई क्षमता शेष रह गई है.

कौन है, जो स्वर्ग में चढ़कर फिर उतर आया है?

किसने वायु को अपनी मुट्ठी में एकत्र कर रखा है?

किसने महासागर को वस्त्र में बांधकर रखा है?

किसने पृथ्वी की सीमाएं स्थापित कर दी हैं?

क्या है उनका नाम और क्या है उनके पुत्र का नाम?

यदि आप जानते हैं! तो मुझे बता दीजिए.

“परमेश्वर का हर एक वचन प्रामाणिक एवं सत्य है;

वही उनके लिए ढाल समान हैं जो उनमें आश्रय लेते हैं.

उनके वक्तव्य में कुछ भी न जोड़ा जाए ऐसा न हो कि तुम्हें उनकी फटकार सुननी पड़े और तुम झूठ प्रमाणित हो जाओ.

“अपनी मृत्यु के पूर्व मैं आपसे दो आग्रह कर रहा हूं;

मुझे इनसे वंचित न कीजिए.

मुझसे वह सब अत्यंत दूर कर दीजिए, जो झूठ है, असत्य है;

न तो मुझे निर्धनता में डालिए और न मुझे धन दीजिए,

मात्र मुझे उतना ही भोजन प्रदान कीजिए, जितना आवश्यक है.

ऐसा न हो कि सम्पन्‍नता में मैं आपका त्याग ही कर दूं

और कहने लगूं, ‘कौन है यह याहवेह?’

अथवा ऐसा न हो कि निर्धनता की स्थिति में मैं चोरी करने के लिए बाध्य हो जाऊं,

और मेरे परमेश्वर के नाम को कलंकित कर बैठूं.

“किसी सेवक के विरुद्ध उसके स्वामी के कान न भरना,

ऐसा न हो कि वह सेवक तुम्हें शाप दे और तुम्हीं दोषी पाए जाओ.

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