सूक्ति संग्रह 29:1-9 HCV

सूक्ति संग्रह 29:1-9

वह, जिसे बार-बार डांट पड़ती रहती है, फिर भी अपना हठ नहीं छोड़ता,

उस पर विनाश अचानक रूप से टूट पड़ेगा और वह पुनः उठ न सकेगा.

जब खरे की संख्या में वृद्धि होती है, लोगों में हर्ष की लहर दौड़ जाती है;

किंतु जब दुष्ट शासन करने लगते हैं, तब प्रजा कराहने लगती है.

बुद्धि से प्रेम करनेवाला पुत्र अपने पिता के हर्ष का विषय होता है,

किंतु जो वेश्याओं में संलिप्‍त रहता है वह अपनी संपत्ति उड़ाता जाता है.

न्याय्यता पर ही राजा अपने राष्ट्र का निर्माण करता है,

किंतु वह, जो जनता को करो के बोझ से दबा देता है, राष्ट्र के विनाश को आमंत्रित करता है.

जो अपने पड़ोसियों की चापलूसी करता है,

वह अपने पड़ोसी के पैरों के लिए जाल बिछा रहा होता है.

दुष्ट अपने ही अपराधों में उलझा रहता है,

किंतु धर्मी सदैव उल्‍लसित हो गीत गाता रहता है.

धर्मी को सदैव निर्धन के अधिकारों का बोध रहता है,

किंतु दुष्ट को इस विषय का ज्ञान ही नहीं होता.

ठट्ठा करनेवाले नगर को अग्नि लगाते हैं,

किंतु बुद्धिमान ही कोप को शांत करते हैं.

यदि बुद्धिमान व्यक्ति किसी मूर्ख को न्यायालय ले जाता है,

तो विवाद न तो शीघ्र क्रोधी होने से सुलझता है न ही हंसी में उड़ा देने से.

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