सूक्ति संग्रह 28:18-28 HCV

सूक्ति संग्रह 28:18-28

जिसका चालचलन खराईपूर्ण है, वह विपत्तियों से बचा रहेगा,

किंतु जिसके चालचलन में कुटिलता है, शीघ्र ही पतन के गर्त में जा गिरेगा.

जो किसान अपनी भूमि की जुताई-गुड़ाई करता रहता है, उसे भोजन का अभाव नहीं होता,

किंतु जो व्यर्थ कार्यों में समय नष्ट करता है, निर्बुद्धि प्रमाणित होता है.

खरे व्यक्ति को प्रचुरता में आशीषें प्राप्‍त होती रहती है,

किंतु जो शीघ्र ही धनाढ्य होने की धुन में रहता है, वह दंड से बच न सकेगा.

पक्षपात भयावह होता है.

फिर भी यह संभव है कि मनुष्य मात्र रोटी के एक टुकड़े को प्राप्‍त करने के लिए अपराध कर बैठे.

कंजूस व्यक्ति को धनाढ्य हो जाने की उतावली होती है,

जबकि उन्हें यह अन्देशा ही नहीं होता, कि उसका निर्धन होना निर्धारित है.

अंततः कृपापात्र वही बन जाएगा, जो किसी को किसी भूल के लिए डांटता है,

वह नहीं, जो चापलूसी करता रहता है.

जो अपने माता-पिता से संपत्ति छीनकर

यह कहता है, “इसमें मैंने कुछ भी अनुचित नहीं किया है,”

लुटेरों का सहयोगी होता है.

लोभी व्यक्ति कलह उत्पन्‍न करा देता है,

किंतु समृद्ध वह हो जाता है, जिसने याहवेह पर भरोसा रखा है.

मूर्ख होता है वह, जो मात्र अपनी ही बुद्धि पर भरोसा रखता है,

किंतु सुरक्षित वह बना रहता है, जो अपने निर्णय विद्वत्ता में लेता है.

जो निर्धनों को उदारतापूर्वक दान देता है, उसे अभाव कभी नहीं होता,

किंतु वह, जो दान करने से कतराता है अनेक ओर से शापित हो जाता है.

दुष्टों का उत्थान लोगों को छिपने के लिए विवश कर देता है;

किंतु दुष्ट नष्ट हो जाते हैं, खरे की वृद्धि होने लगती है.

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