सूक्ति संग्रह 25:21-28
यदि तुम्हारा विरोधी भूखा है, उसे भोजन कराओ,
यदि प्यासा है, उसे पीने के लिए जल दो;
इससे तुम उसके सिर पर प्रज्वलित कोयलों का ढेर लगा दोगे,
और तुम्हें याहवेह की ओर से पारितोषिक प्राप्त होगा.
जैसे उत्तरी वायु प्रवाह वृष्टि का उत्पादक होता है,
वैसे ही पीठ पीछे पर निंदा करती जीभ शीघ्र क्रोधी मुद्रा उत्पन्न करती है.
विवादी पत्नी के साथ घर में निवास करने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है
छत के एक कोने में रह लेना.
दूर देश से आया शुभ संदेश वैसा ही होता है,
जैसा प्यासी आत्मा को दिया गया शीतल जल.
वह धर्मी व्यक्ति, जो दुष्टों के आगे झुक जाता है,
गंदले सोते तथा दूषित कुओं-समान होता है.
मधु का अत्यधिक सेवन किसी प्रकार लाभकर नहीं होता,
ठीक इसी प्रकार अपने लिए सम्मान से और अधिक सम्मान का यत्न करना लाभकर नहीं होता.
वह व्यक्ति, जिसका स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं है, वैसा ही है,
जैसा वह नगर, जिसकी सुरक्षा के लिए कोई दीवार नहीं है.
सूक्ति संग्रह 26:1-2
मूर्ख को सम्मानित करना वैसा ही असंगत है,
जैसा ग्रीष्मऋतु में हिमपात तथा कटनी के समय वृष्टि.
निर्दोष को दिया गया शाप वैसे ही प्रभावी नहीं हो पाता,
जैसे गौरेया का फुदकना और अबाबील की उड़ान.