सूक्ति संग्रह 23:29-35, सूक्ति संग्रह 24:1-4 HCV

सूक्ति संग्रह 23:29-35

उन्‍नीसवां सूत्र

कौन है शोक संतप्‍त? कौन है विपदा में?

कौन विवादग्रस्त है? और कौन असंतोष में पड़ा है?

किस पर अकारण ही घाव हुए है? किसके नेत्र लाल हो गए हैं?

वे ही न, जिन्होंने देर तक बैठे दाखमधु पान किया है,

वे ही न, जो विविध मिश्रित दाखमधु का पान करते रहे हैं?

उस लाल आकर्षक दाखमधु पर दृष्टि ही मत डालो और न तब,

जब यह प्याले में उंडेली जाती है,

अन्यथा यह गले से नीचे उतरने में विलंब नहीं करेगी.

अंत में सर्पदंश के समान होता है

दाखमधु का प्रभाव तथा विषैले सर्प के समान होता है उसका प्रहार.

तुम्हें असाधारण दृश्य दिखाई देने लगेंगे,

तुम्हारा मस्तिष्क कुटिल विषय प्रस्तुत करने लगेगा.

तुम्हें ऐसा अनुभव होगा, मानो तुम समुद्र की लहरों पर लेटे हुए हो,

ऐसा, मानो तुम जलयान के उच्चतम स्तर पर लेटे हो.

तब तुम यह दावा भी करने लगोगे, “उन्होंने मुझे पीटा था, फिर भी मुझ पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा.

उन्होंने मुझे मारा पर मुझे तो लगा ही नहीं!

कब टूटेगी मेरी यह नींद?

लाओ, मैं एक प्याला और पी लूं.”

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सूक्ति संग्रह 24:1-4

बीसवां सूत्र

दुष्टों से ईर्ष्या न करना,

उनके साहचर्य की कामना भी न करना;

उनके मस्तिष्क में हिंसा की युक्ति तैयार होती रहती है,

और उनके मुख से हानिकर शब्द ही निकलते हैं.

इक्‍कीसवां सूत्र

गृह-निर्माण के लिए विद्वत्ता आवश्यक होती है,

और इसकी स्थापना के लिए चतुरता;

ज्ञान के द्वारा घर के कक्षों में सभी प्रकार की बहुमूल्य

तथा सुखदाई वस्तुएं सजाई जाती हैं.

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