सूक्ति संग्रह 21:5-16 HCV

सूक्ति संग्रह 21:5-16

यह सुनिश्चित होता है कि परिश्रमी व्यक्ति की योजनाएं लाभ में निष्पन्‍न होती हैं,

किंतु हर एक उतावला व्यक्ति निर्धन ही हो जाता है.

झूठ बोलने के द्वारा पाया गया धन

इधर-उधर लहराती वाष्प होती है, यह मृत्यु का फंदा है.

दुष्ट अपने ही हिंसक कार्यों में उलझ कर विनष्ट हो जाएंगे,

क्योंकि वे उपयुक्त और सुसंगत विकल्प को ठुकरा देते हैं.

दोषी व्यक्ति कुटिल मार्ग को चुनता है,

किंतु सात्विक का चालचलन धार्मिकतापूर्ण होता है.

विवादी पत्नी के साथ घर में निवास करने से

कहीं अधिक श्रेष्ठ है छत के एक कोने में रह लेना.

दुष्ट के मन की लालसा ही बुराई की होती है;

उसके पड़ोसी तक भी उसकी आंखों में कृपा की झलक नहीं देख पाते.

जब ज्ञान के ठट्ठा करनेवालों को दंड दिया जाता है, बुद्धिहीनों में ज्ञानोदय हो जाता है;

जब बुद्धिमान को शिक्षा दी जाती है, उसमें ज्ञानवर्धन होता जाता है.

धर्मी दुष्ट के घर पर दृष्टि बनाए रखता है,

और वह दुष्ट को विनाश गर्त में डाल देता है.

जो कोई निर्धन की पुकार की अनसुनी करता है,

उसकी पुकार के अवसर पर उसकी भी अनसुनी की जाएगी.

गुप्‍त रूप से दिया गया उपहार

और चुपचाप दी गई घूस कोप शांत कर देती है.

बिना पक्षपात न्याय को देख धर्मी हर्षित होते हैं,

किंतु यही दुष्टों के लिए आतंक प्रमाणित होता है.

जो ज्ञान का मार्ग छोड़ देता है,

उसका विश्रान्ति स्थल मृतकों के साथ निर्धारित है.

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