सूक्ति संग्रह 2:1-11 HCV

सूक्ति संग्रह 2:1-11

बुद्धि का मूल्य

मेरे पुत्र, यदि तुम मेरे वचन स्वीकार करो

और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में संचित कर रखो,

यदि अपने कानों को ज्ञान के प्रति चैतन्य

तथा अपने हृदय को समझदारी की ओर लगाए रखो;

वस्तुतः यदि तुम समझ को आह्वान करो

और समझ को उच्च स्वर में पुकारो,

यदि तुम इसकी खोज उसी रीति से करो

जैसी चांदी के लिए की जाती है और इसे एक गुप्‍त निधि मानते हुए खोजते रहो,

तब तुम्हें ज्ञात हो जाएगा कि याहवेह के प्रति श्रद्धा क्या होती है,

तब तुम्हें परमेश्वर का ज्ञान प्राप्‍त हो जाएगा.

क्योंकि ज्ञान को देनेवाला याहवेह ही हैं;

उन्हीं के मुख से ज्ञान और समझ की बातें बोली जाती हैं.

खरे के लिए वह यथार्थ ज्ञान आरक्षित रखते हैं,

उनके लिए वह ढाल प्रमाणित होते हैं, जिनका चालचलन निर्दोष है,

वह बिना पक्षपात न्याय प्रणाली की सुरक्षा बनाए रखते हैं

तथा उनकी दृष्टि उनके संतों के चालचलन पर लगी रहती है.

मेरे पुत्र, तब तुम्हें धर्मी, बिना पक्षपात न्याय,

हर एक सन्मार्ग और औचित्य की पहचान हो जाएगी.

क्योंकि तब ज्ञान तुम्हारे हृदय में आ बसेगा,

ज्ञान तुम्हारी आत्मा में आनंद का संचार करेगा.

निर्णय-ज्ञान तुम्हारी चौकसी करेगा,

समझदारी में तुम्हारी सुरक्षा होगी.

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