सूक्ति संग्रह 10:31-32
धर्मी अपने बोलने में ज्ञान का संचार करते हैं,
किंतु कुटिल की जीभ काट दी जाएगी.
धर्मी में यह सहज बोध रहता है, कि उसका कौन सा उद्गार स्वीकार्य होगा,
किंतु दुष्ट के शब्द कुटिल विषय ही बोलते हैं.
सूक्ति संग्रह 11:1-8
अशुद्ध माप याहवेह के लिए घृणास्पद है,
किंतु शुद्ध तोल माप उनके लिए आनंद है.
जब कभी अभिमान सिर उठाता है, लज्जा उसके पीछे-पीछे चली आती है,
किंतु विनम्रता ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है.
ईमानदार की सत्यनिष्ठा उनका मार्गदर्शन करती है,
किंतु विश्वासघाती व्यक्ति की कुटिलता उसके विनाश का कारक होती है.
प्रकोप के दिन में धन-संपत्ति निरर्थक सिद्ध होती है,
मात्र धार्मिकता मृत्यु से सुरक्षा प्रदान करती है.
निर्दोष की धार्मिकता ही उसके मार्ग को सीधा बना देती है,
किंतु दुष्ट अपनी ही दुष्टता के कारण नाश में जा पड़ता है.
ईमानदार की धार्मिकता ही उसकी सुरक्षा है,
किंतु कृतघ्न व्यक्ति अपनी वासना के जाल में उलझ जाते हैं.
जब दुष्ट की मृत्यु होती है, उसकी आशा भी बुझ जाती है,
और बलवान की आशा शून्य रह जाती है.
धर्मी विपत्ति से बचता हुआ आगे बढ़ता जाता है,
किंतु दुष्ट उसी में फंस जाता है.