सूक्ति संग्रह 10:21-30
धर्मी के उद्गार अनेकों को तृप्त कर देते हैं,
किंतु बोध के अभाव में ही मूर्ख मृत्यु का कारण हो जाते हैं.
याहवेह की कृपादृष्टि समृद्धि का मर्म है.
वह इस कृपादृष्टि में दुःख को नहीं मिलाता.
जैसे अनुचित कार्य करना मूर्ख के लिए हंसी का विषय है,
वैसे ही बुद्धिमान के समक्ष विद्वत्ता आनंद का विषय है.
जो आशंका दुष्ट के लिए भयास्पद होती है, वही उस पर घटित हो जाती है;
किंतु धर्मी की मनोकामना पूर्ण होकर रहती है.
बवंडर के निकल जाने पर दुष्ट शेष नहीं रह जाता,
किंतु धर्मी चिरस्थायी बना रहता है.
आलसी संदेशवाहक अपने प्रेषक पर वैसा ही प्रभाव छोड़ता है,
जैसा सिरका दांतों पर और धुआं नेत्रों पर.
याहवेह के प्रति श्रद्धा से आयु बढ़ती जाती है,
किंतु थोड़े होते हैं दुष्ट के आयु के वर्ष.
धर्मी की आशा में आनंद का उद्घाटन होता है,
किंतु दुर्जन की आशा निराशा में बदल जाती है.
निर्दोष के लिए याहवेह का विधान एक सुरक्षित आश्रय है,
किंतु बुराइयों के निमित्त सर्वनाश.
धर्मी सदैव अटल और स्थिर बने रहते हैं,
किंतु दुष्ट पृथ्वी पर निवास न कर सकेंगे.